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गुप्त साम्राज्य और जैनधर्म ।
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बंगालमें इस कालमें पहाड़पुरका निग्रंथ संघ प्रसिद्ध था ।x
उसके अध्यक्ष आचार्य गुहनंदि, संभवतः नंदि बङ्गकलिङ्गमें जैनधर्म । संघके थे । बौद्धग्रंथ दाठावंसोसे प्रगट है कि
पटनाका तत्कालीन राजा पाण्डू भी जैनभक्त था। कलिङ्गमें जैनधर्म अब भी राष्ट्रधर्म बना हुआ था । वहांका गुहशिव नामक राजा दिगम्बर जैनधर्मका अनुयायी था ।+ इस प्रकार जैनधर्म उस समय उन्नत रूपमें था। विद्याके साथ ही ललितकलाकी भी उन्नति गुप्तराजाओंके समय
विशेष हुई थी। स्थापत्य भास्कर-शिल्प गुप्तकालकी ललितकला । और चित्रकारी तो इस समयकी देखते
___बनती है। संयुक्तप्रांतके झांसी जिलेमें ललितपुरके पास देवगढ़के जैनमंदिर इस समयके भास्कर शिल्पका सर्वोत्कृष्ट नमूना है। किंतु दुःख है कि जैनोंने इस रम्य और पवित्र स्थानके प्रति उदासीनता ग्रहण कर रक्खी है। सरकारी पुरातत्व विभागके अधिकारसे उन्होंने इसको लेलिया था किंतु बहुत प्रयत्नके बाद वह क्षेत्र पुनः जैनोंके हाथमें आया है । इस समय धातुकी अच्छी२ मूर्तियां बनी मिलती हैं। दिल्लीका लोहस्तम्भ भी इसी समयका बना हुआ अनुमान किया जाता है; जो अपने अदभुतपनके लिये प्रसिद्ध है । अजन्ताकी गुफाओंका आलेख्य और चित्रकारी सर्वोत्कृष्ट है । ये गुफायें बहुत प्राचीन हैं; परन्तु इनमें सबसे बढ़िया काम इसी समयका बना हुआ है। मथुरा और काशी भी ललितकलाके केन्द्र
xइंहिक्का० भा० ७ पृ० ४४१ ।
+दाठावंसो अ० २ व दिगम्बरत्व और दि० मुनि पृ० १२५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com