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[ ८३ के अन्तर्गत) जैनाचार्य श्रीलोहार्यजीके उपदेशसे जैनधर्म फिर इस वंश में स्थान पागया; जिसे इस जातिके बहुत से लोग आज भी पालन कर रहे हैं । इस प्रकार अपने क्षत्री धर्मसे युत होकर अग्रवाल जाति व्यापार - प्रधान होजाने के कारण वैश्य वर्णमें परिगणित होगई है !" खंडेलवाल जाति की उत्पत्तिका समय भी करीवर यही है ।
यह जनश्रुति है कि वि० स० १ में खंडेलवालकी उत्पत्ति ! किसी जिनसेन नामक जैनाचार्यने राजपूतानेके खण्डेला नामक ग्रामके राजाको प्रभावित करके जैनधर्म में दीक्षित किया था । राजा के साथ उसके ८२ ग्रामोंके सरदार भी अपनी प्रजा समेत जैनी होगये थे । इन ८२ ग्रामोंके अतिरिक्त दो ग्रामोंके सुनार ( सोनी) भी जैनी हुवे थे। जैनाचार्य ने इनका उल्लेख 'खंडेलग्राम' की अपेक्षा ' खंडेलवालान्वय' के नामसे किया था । इसी कारण इनकी प्रसिद्धि खण्डेलवाल नामसे हुई है । राजभृष्ट होकर व्यापार करने लगने के कारण यह जाति भी वैश्योंमें गिनी जाने लगी है । उपरोक्त ८४ ग्रामोंकी अपेक्षा इस जातिमें ८४ गोत्र भी हैं । "
अन्य राजा और जैन संघ ।
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ओसवाल जातिका जन्म भी इसी ढंगपर हुआ कहा जाता है । ईस्वी दूसरी शताब्दिमें किसी जैनाचाने ओसिया नामक नगरके निवासी राजपूत लोगोंको जैनधर्मानुयायी बनाया था। इस
ओसवाल, जातिका प्रादुर्भाव |
१ - अग्रवाल इतिहास व बृजेश०
भा० १ पृ० ७१-७२ ।
,
२- खण्डेवाल जैन इतिहास व हि० भा० १ १०३३३ और
,
हिवि० भा० ५ पृ० ७१८ ।
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