________________
८६]
संक्षिप्त जैन इतिहास। अपना देश छोड़कर लम्बकांचन देशमें राज्य स्थापित करते लिखा है।" ___ यह घटना भी कलिङ्गसे यदुवंशियों (हरिवंशी) के अन्यत्र जानेके उल्लेखसे ठीक बैठती है । किन्तु कोई महाशय लम्बकांचन देशको द्वारिकाका निकटवर्ती अथवा उसका अपर नाम ही समझते हैं; । पर यह नाम द्वारिकाका अथवा उसके आसपासवाले किसी देशका नहीं मिलता। इस कारण लम्बकांचन देशको गुजरातमें मान लेना कटिन है । ' राजावली कथा ' में भी समन्तभद्र स्वामीके भ्रमण सम्बन्धी वर्णनमें एक देश ' लाम्वुश' भी उल्लिखित हुआ है और वह मणुवकहल्ली नामक देश अथवा नगरके बाद गिनाया गया है। इसका सादृश्य लम्बकांचनसे है । संभव है कि लाम्बुशका अपर नाम लम्बकांचन हो ।
___ मणुवकहल्ली देश दक्षिण भारतमें स्थित प्रतीत होता है। अतएव लावुश देश उसके समीप ही कहीं होना उपयुक्त है । यदि लम्बकाञ्चनको एक संयुक्त नाम माना जाय, तो प्रगट है कि 'लम्ब' तो 'लाम्बुश' का द्योतक है और 'काञ्चन' जैनोंके प्राचीन केन्द्र कांचीपुरका परिचायक होसक्ता है। इस दशामें लम्बकाञ्चन देश दक्षिणमें ठहरता है और उसका वहांपर होना इसलिये संभव है कि कलिङ्गसे आया हुआ राजकुल दक्षिणके निकटवर्ती प्रदेशमें कहीं ठहरेगा, वह एकदम गुजरात नहीं पहुँच जायगा । दक्षिण भारतके तामिल देशमें ईसवी प्रारंभिक शताब्दियोंमें लम्बकर्ण नामक क्षत्रिय प्रसिद्ध थे, यह बात इतिहाससे सिद्ध है। उधर पट्टावलीमें
१-लमेचूओंका इतिहास, पृ० १२-१५ । २-उत्कर्ष, वर्ष १ सं० ६ पृ० १४१। ३-रश्रा०, जीवनी पृ० ३२। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com