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संक्षिप्त जैन इतिहास।
(४) गुम साम्राज्य और जैनधर्म ।
(सन् ३२०-५०० ई०)* ईसाकी प्रारम्भिक शताब्दियोंके अंधकारापन्न इतिहासको पार
___कर जब हम कुछ उजालेमें पहुंचते हैं, तो गुप्त राजवंशका आदि- एक नये वंशको भारतमें राज्याधिकारी पाते पुरुष चंद्रगुप्त प्र० । हैं । यह था गुप्तवंश ! गुप्तवंशीय राजाओंके
नामोंके अंतमें गुप्तनाम रहता था, इस कारण यह वंश 'गुप्त' नामसे प्रख्यात हुआ था । इस वंशका सर्व प्रथम राजा चंद्रगुप्त नामका था । इतिहासमें यह चन्द्रगुप्त प्रथमके नामसे परिचित है । ईसवी तीसरी शताब्दिके लगभग पाटलिपुत्रपर जैन धर्ममें ख्याति प्राप्त लिच्छवि वंशका अधिकार था । चंद्रगुप्त प्रथ. मने इसी लिच्छविवंशकी राजकुमारी कुमार देवीसे विवाह करके पाटलीपुत्रको अपने आधीन किया था । इसी राजासे गुप्तराज्यका नींवारोपण हुआ था । इस राजाने अपना संवत् चलाया था; जिसे कतिपय विद्वान् २६ फरवरी सन् ३२० ई०से, आरम्भ होना बताते हैं। संभवतः इसी तिथिको चन्द्रगुप्तका राज्यतिलक हुआ था। उसने
* मम० जायसवालजीने आंध्रवंशके अन्तिम राजाका समय सन् २३१-२३८ ई० प्रगट किया है। (जविओसो० १६-२७९७ और आंध्रोंके पश्चात गुप्त राजाओं का राज्य हुआ शास्त्रों में कहा गया है। इस अपेक्षा 'हरिवंशपुराण' में गुप्तोंका राज्यकाल जो २२१ वर्ष लिखा है वह प्रायः ठीक बैठता है।
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