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________________ ८८] संक्षिप्त जैन इतिहास। (४) गुम साम्राज्य और जैनधर्म । (सन् ३२०-५०० ई०)* ईसाकी प्रारम्भिक शताब्दियोंके अंधकारापन्न इतिहासको पार ___कर जब हम कुछ उजालेमें पहुंचते हैं, तो गुप्त राजवंशका आदि- एक नये वंशको भारतमें राज्याधिकारी पाते पुरुष चंद्रगुप्त प्र० । हैं । यह था गुप्तवंश ! गुप्तवंशीय राजाओंके नामोंके अंतमें गुप्तनाम रहता था, इस कारण यह वंश 'गुप्त' नामसे प्रख्यात हुआ था । इस वंशका सर्व प्रथम राजा चंद्रगुप्त नामका था । इतिहासमें यह चन्द्रगुप्त प्रथमके नामसे परिचित है । ईसवी तीसरी शताब्दिके लगभग पाटलिपुत्रपर जैन धर्ममें ख्याति प्राप्त लिच्छवि वंशका अधिकार था । चंद्रगुप्त प्रथ. मने इसी लिच्छविवंशकी राजकुमारी कुमार देवीसे विवाह करके पाटलीपुत्रको अपने आधीन किया था । इसी राजासे गुप्तराज्यका नींवारोपण हुआ था । इस राजाने अपना संवत् चलाया था; जिसे कतिपय विद्वान् २६ फरवरी सन् ३२० ई०से, आरम्भ होना बताते हैं। संभवतः इसी तिथिको चन्द्रगुप्तका राज्यतिलक हुआ था। उसने * मम० जायसवालजीने आंध्रवंशके अन्तिम राजाका समय सन् २३१-२३८ ई० प्रगट किया है। (जविओसो० १६-२७९७ और आंध्रोंके पश्चात गुप्त राजाओं का राज्य हुआ शास्त्रों में कहा गया है। इस अपेक्षा 'हरिवंशपुराण' में गुप्तोंका राज्यकाल जो २२१ वर्ष लिखा है वह प्रायः ठीक बैठता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035244
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1934
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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