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अन्य राजा और जैन संघ ।
[ ८७ यह कहा गया है कि सं० १४९ में राजा लोमकरण या लम्बकर्णकी संतानको लम्बकाञ्चन देश छोड़ना पड़ा था और वह राज्यसे हाथ धोकर राजपूताने की ओर चले आये थे । आठवीं शताब्दिके कवि धनपालने 'भविष्यदत्त चरित्र में लम्बकर्ण क्षत्रियोंको उज्जैनके आसपास बसा लिखा है । अतः यह संभव है कि दक्षिण भारत के लम्बकर्ण क्षत्रियोंका सम्बन्ध पट्टावलीके राजा लम्बकर्ण से हो । अपना राज गंवाकर इन क्षत्रियोंने वणिकवृत्ति गृहण कर ली थी । इसी कारण यदुवंशी लोमकरण या लम्बकर्णकी सन्तान लमेचू आज क्षत्री न होकर वैश्य है । इनका जन्म भी ईसवी सन् के प्रारम्भ हुआ प्रगट है ।'
इसी प्रकार अन्य जातियोंकी उत्पत्तिका पता लगाया जासक्ता है; किंतु यह बात नहीं है कि सब ही जैन जातियां राजभ्रष्ट क्षत्रियोंकी संतान हैं । प्रत्युत जैसवाल, पोरवाल आदि जातियां मूलमें वैश्य वर्णकी हैं । उनका नामकरण जायस व पोर नामक ग्रामोंकी अपेक्षा हुआ है । मागधी व्यापारियोंकी जाति तो पहलेसे प्रख्यात थी । ये बड़े वीर, पराक्रमी, चालाक और नीति-निपुण थे । पिता अपेक्षा यह व्यापारी थे और माता इनकी क्षत्री थीं। इस प्रकार उपजातियों की उत्पत्तिका इतिहास है । यह सनातन नहीं हैं; बल्कि विशेष कारणों से हजार डेढ़ हजार वर्ष पहले इनका जन्म हुआ था । इनके इतिहाससे प्रकट है कि एक वर्णके व्यक्ति किस तरह दूसरे वर्णके होते हैं !
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१ - वीर, भा० ७ पृ० ४७० - ४७१ । २ - ऐरि०, भा० ९ पृ० ७९ ।
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