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९४] संक्षिप्त जैन इतिहास। उसका उत्तराधिकारी उसका बेटा स्कंधगुप्त था । स्कंधगुप्तके समयमें भी हूणोंका आक्रमण हुआ था; किंतु उसने उनको लड़ाई में हरा दिया था । वह बड़ा वीर योद्धा था। उसका एक युद्ध दुलन्दशहरके जैन धर्मानुयायी पुप्यमित्र वंशीय राजाओंसे हुआ था और उसमें भी इसकी जीत हुई थी। यह पुप्पमित्र उस समय धन और सेनासे युक्त प्रबल राजा थे और कनिकके समयसे यह बुलन्दशहरमें जाबसे थे। स्कन्धगुप्तके राज्य कालमें गोरखपुर जिलेके पूर्वपटनेसे ९० मील कहौम ( ककुभग्राम ) ग्राममें एक भव्य जैन मंदिर मानस्तंभ सहित निर्मित हुआ था। स्तंभपर एक लेख गुप्त संवत १४१ ( ई० सन् ४६०) का है; जिससे प्रगट है कि साधुओंके संसर्गसे पवित्र, ककुभ - ग्राम-रत्न, गुणसागर, सोमिलका पुत्र महाधनी भट्टिपोम था । उनके पुत्र विस्तीर्ण यशवाले रुद्रसोम हुये और उनको मद्र नामक पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई। यह मद्र ब्राह्मण वर्णका था और यह गुरुओं और यतियोंमें प्रीतिमान था । इसीने आदिनाथसे आदिले पांच तीर्थङ्करोंकी प्रतिमायें स्थापित कराई। और स्तंभ बनवाया था। झांसी जिलेके देवगढ़ नामक स्थानमें भी जैनोंका प्राबल्य अधिक था । यह स्थान भी गुप्तसाम्राज्य के अन्तर्गत
१-भाप्रारा०, भा० २ पृ० २८७-स्कंधगुप्तके मिटारीवाले लेख में है, (पंक्ति १०)-विचलितकुल लक्ष्मीस्तम्भनायोद्यतेन क्षितितलशयनीये येन नीता बियामा । समु-(पंक्ति ११)-दितबलकोषान्पुप्यमित्रांश्च जित्वा क्षितिपचरणपीठे स्थापितो वामपादः ।
२-बंताजैस्मा० पृ० १८७-Corps. Irs. Ind. Vol. III. ३-संप्राजैस्मा०, पृ० ४-५।
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