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गुप्त साम्राज्य और जैन धर्म ।
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था । कहते हैं कि देवगढ़ में पाराशाह और उनके दो भाई देवपति और खेवपति बड़े प्रभावशाली थे | उनने देवगढ़ में कई एक जैन -मंदिर बनवाये थे ।
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स्कन्दगुप्तने हूणों को परास्त कर दिया था, परन्तु वे हताश नहीं हुये । उनके आक्रमण भारतपर बराबर
व राज्यप्रबन्ध ।
गुप्त राज्यकी अवनति होते रहे। उनके राजा तोरमाणने गुप्त राज्यका पश्चिमी देश जीत लिया । और सन् ५१० ई० तक राजपूताना, मालवा, गुजरात, मध्यप्रदेश आदि देश हणोंके आधीन होगये । इस छिन्न भिन्न होते हुये साम्राज्यकी दशाको सम्भालनेके लिये गुप्तवंशके अंतिम राजा भानुगुप्तने प्रयत्न किया, परन्तु उसे सफलता प्राप्त न हुई, और गुप्तवंश नष्ट होगया । इस वंशके संघ ही राजा बड़े योग्य और तेजस्वी थे । उन्होंने अपने अपने राज्यका अच्छा प्रबन्ध किया था, जिससे प्रजा सुखी थी । उससमयकी आर्थिक स्थिति बड़ी अच्छी थी । तब उत्तर और मध्यभारत में है आनेका मन सवामन तेल बिकता था और एक वा एक मनुष्य के तीन महीनेके भोजनके लिये पर्याप्त होता था। विद्वानोंका आदर भी विशेष था और साहित्य व कलाकी उन्नति भी खूब हुई थी ।
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गुप्तकालमें ब्राह्मण,
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जैन और बौद्धधर्म मुख्य थे । हैवेल सा० कहते हैं कि ई० तीसरी शताब्दितक प्रायः
९ - संप्रा जैस्मा०, पृ० ४७ । २- भाइ०, पृ० ९३ । ३ - भाप्रारा०
भा० २ पृ० २२६-२२७ ।
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