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संक्षिप्त जैन इतिहास । कि उपजातियोंकी जड़ बौद्ध कालमें पड़ गई थी' और वह गुप्तकालमें आकर पल्लवित हुई थी ! अग्रवाल जातिकी उत्पत्ति लगभग इसी समय हुई थी। कहते
हैं कि अयोध्याके राजा मानधाताकी ५२ अग्रवाल वैश्य जाति। वीं पीढ़ीमें वीर निर्वाणसे ४९८१ वर्ष पूर्व
श्री नेमिनाथजीके तीर्थकालमें अग्रसेन नामक राजा थे। उनके पिता महावीर दिगम्बर मुनि होगये थे । उनके मुनि होनेपर राजकुमार अग्रसेनको वीर नि० पूर्व ४९४६ में राजगद्दी मिली थी। सन् ४५२१ वी० नि० पूर्वमें उन्होंने मिश्र देशके जैनधर्मी राजा 'कुरुषविन्दु' पर आक्रमण किया था और इस युद्ध में यह वीर गतिको प्राप्त हुये थे । राजा अग्रसेनने वेदानुयायी पातञ्जलि नामक ऋषिके उपदेशसे अपने पितृधर्म-जैनधर्मका परित्याग कर दिया था । यदि यह पातञ्जलि ऋषि पातञ्जलिभाप्य'के कर्ता हैं, तो राना उग्रोनका समय भगवान नेमिनाथजीके तीर्थमें होना अशक्य है; परन्तु ऐसा कोई साधन नहीं है जिसके आधारपर उक्त दोनों पातञ्जलि एक माने जावें ! जो हो, इन्हीं राजा अग्रसेनके १८ पुत्र हुये थे। जिस समय इन १८ पुत्रोकी संतान राजच्युत होगई, तो वह राजा र ग्रोनके नाम अपेक्षा ‘अग्रवाल' नामसे प्रसिद्ध हुई । प्राचीन जैन लेखमें इसका उल्लेख 'अग्रोत' वंशके रूपमें हुआ मिलता है। राजा अग्रसेनकी संतति में कई पीड़ियोंतक वैदिक धर्मकी मान्यता रही थी। किंतु उपरत आरोहापति राजा दिवाकरदेवके राज्यमें वीर नि० सं० ५१५ ५६५के लगभग (वि० सं० २७-७७
१-बुई०, पृ० ५५-५९ २-भाइ०, ९३-९९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com