________________
•
अन्य राजा और जैन संघ । [ ७९ श्वेतांबर संप्रदाय में अपने मनोनीत ढंगपर द्वादशांगवाणीका पुनरुद्धार किया गया था। जिन प्रतिमाओंका रूप भी इस संप्रदायने बदल दिया था । श्वेतांबर साधु वस्त्र धारण करने लगे थे । इन मान्यताओंको लक्ष्य करके श्वेतांबर संप्रदाय में वस्त्र सहित अवस्थासे भी - मोक्ष प्राप्त कर लेना विधेय ठहराया गया था। श्री मुक्ति, केवली कवहार आदि बातें भी स्वीकार की गई थीं । किन्तु दिगम्बर सम्प्रदाय में प्राचीन मान्यताओंको ही स्थान मिला रहा और इस संप्रदायके अनुयायियों में तबतक पुरातन रीतिरिवाजों की मान्यता रही; यद्यपि दिगम्बर संघ भी चार भागों में विभक्त होगया था और ग्रह- स्थोंमें भी अनेक उपजातियां उत्पन्न होगई थीं ।
अब भी दिगम्बर जैन धर्मका द्वार प्रत्येक प्राणीके लिये खुला हुआ था । जिस प्रकार भगवान महावीरजीके समय में विदेशियों और चोर, डाकुओंके समान पतित लोगों को उनके धर्ममें शरण मिली थी; वैसे ही इसकाल अर्थात् ई० सन्के प्रारम्भमें भी शकोंक सदृश विदेशी लोगों और वेश्यायों जैसे पतित व्यक्तियोंको जैन रीत्यानुसार धर्माराधन करने का अवसर मिला था । नहपान राजा विदेशी शक जातिका था, पर तो भी जैनमुनि होकर उन्होंने हमें द्वादशाङ्ग वाणीका आंशिक ज्ञान कराकर बड़ा उपकार किया है । देवसंघके जैनमुनियोंने देवदत्ता नामक वेश्या के घर में चातुर्मास व्यतित करके
जैन धर्मके पतित पावन रूपको स्पष्ट कर दिया था। इतना ही क्यों ?
१ - ईऐ, भा० २० पृ० ३४६ 'यो देवदत्ता वेश्यागृहे वर्षायोगो स्थापितवान् सहदेवसंवश्चकार ||४||
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com