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६०] संक्षिप्त जैन इतिहास। यह बड़ा दानवीर था । शिक्षित और युवा होनेपर भवड़का विवाह घेटी सेठकी पुत्री सुशीलासे स्वयंवर विधिसे हुआ था । भबड़ सानंद , कालयापन कर रहा था कि अचानक यवन सेनाका आक्रमण हुआ।
भवड़ इस लड़ाईमें बंदी हुआ और यवन लोग उसे अपने साथ लेगये । भवड़ वहां भी अपना धर्म-पालन करता रहा और उसने मंदिर भी बनवाये । उसने एक मासका उपबास किया और उसके पुण्यफलसे चक्रेश्वरीदेवीकी सहायता उसे प्राप्त हुई । उसकी सहायतासे भवड़ बन्धन मुक्त हुआ और तक्षशिलासे आदिनाथ प्रभुकी मूर्ति लेकर वह जहाजमें बैठा और महुआ आगया । अब सौभाग्यसे उसे समुद्रमें खोये हुए जहाज भी मिल गये । भवड़के दिन फिर गये । उस समय आचार्य वज्रस्वामीके उपदेशसे शत्रुजय तीर्थका उसने उद्धार कराया और खूब दान-पुण्य किया। श्री आदिनाथ भगवानकी प्रतिमा वहां बिराजमान कराई। वज्रस्वामी एक प्रतिभासम्पन्न साधु थे। उन्होंने दक्षिणके किसी बौद्ध सम्राटको जैनी बनाया था। श्वेतांबर संप्रदायमें भवड़ सेठ और वज्रस्वामी बहु प्रसिद्ध हैं।' न मालम इस श्वेतांबर कथामें कितना सत्य है ? कोशाम्बीके पुरातत्वसे वहांपर जैनधर्मका विशेष सम्पर्क रहा
प्रमाणित है । वहांसे कुशानकालका मथुरा कोशाम्बी राज्यमें जैसा एक आयागपट्ट मिला है; जिसे राजा जैनधर्म। शिवमित्रके राज्यमें शिवनंदिकी शिष्या
बड़ी स्थविरा बलदासाके कहनेसे शिवपालि
१-शत्रुजय माहात्म्य-गुसापरि० जैनवि०, पृ० ६५-६६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com