________________
७२] संक्षिप्त जैन इतिहास। जिनके निकटसे नहपान राजाने जैन मुनि होकर षटखण्डागम ग्रन्थकी रचना करके उसे ज्येष्ठ शुक्ला पंचमीके दिन अंकलेश्वर (भड़ौच) में लिपिबद्ध किया था । इसी कारण यह पवित्र दिन "श्रुतावतार" के नामसे प्रसिद्ध है। श्रीधरसेनाचार्य गिरनारकी चंद्र-गुफामें बिराजमान थे। वहींपर नहपान राजर्षि (भूतबलि मुनि) और सुबुद्धि श्रेष्ठी ( पुप्पदन्त मुनि) ने उनसे शास्त्र ज्ञान प्राप्त किया था। ये दोनों ऋषि उस समय वेणातटकपुरके जैन संघमें निवास ही करते थे। गिरनारसे ये दोनों ऋषि कुरीश्वर देशमें पहुंच थे और वहांपर इन्होंने चातुर्मास किया था । पश्चात् दक्षिण भारतकी ओर इनका विहार हुआ था । पुप्पदन्त मुनि अपने भानजे जिन पालितको मुनि बनाकर दक्षिणके वनवास देशको चले गये थे और भूतबलि मुनि दक्षिण मथुराको प्रस्थान कर गये थे। इसी जिन पालितके निमित्तसे षट् खण्डागम ग्रन्थकी रचना हुई थी।
श्री इन्द्रनन्दिकृत श्रुतावतार कथाके अनुसार इस घटनाके पहले जैनसंघ नन्दि, देव, सेन, वीर (सिंह) और भद्र नामक संघोंमें विभक्त होगया था। ये विभाग श्री अर्हद्वलि आचार्य द्वारा किये गये थे । इनमें कोई सिद्धांत भेद नहीं हैं। किन्तु श्रवणबलगुलके शिलालेख नं० १०८ से प्रगट है कि अकलंकस्वामीके स्वर्गवासके पश्चात् संघ देशभेदसे 'सेन', 'नंदि', 'देव' और 'सिंह' इन चार भेदोंमें विभाजित हुआ था। श्री पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार प्रगट
१-श्रुतावतार कथा, पृ० १६-२०
२-जैशिसं० भूमिका, पृ० १४५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com