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अन्य राजा और जन संघ ।
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है । किन्तु जैन शास्त्र उन्हें गर्दभिल्लका पुत्र बताते हैं और गौतमीपुत्र संभवतः मेघस्वातिके पुत्र थे । इस भेदका सामञ्जस्य विक्रमादित्यको गर्द भिल्लका उत्तराधिकारी मानने से होजाता है ।
गर्दभिल्लवंश वस्तुतः आन्ध्रवंश से भिन्न है । जैन और अजैन शास्त्र उनका उल्लेख अलग-अलग ही करते हैं और यह निश्चित् है कि प्रतिष्ठानपुर में आन्ध्रवंश के राजा राज्य करते थे। अतएव प्रतिष्ठानपुरसे आया हुआ विक्रमादित्य गर्दभिल्लका पुत्र न होकर उत्तराधिकारी होना चाहिये । सोमदेवकी 'कथासरितसागर' से प्रगट है कि गौतमीपुत्रका वंशज कुन्तल शातकर्णि, जिसका राज्यकाल ७५-८३ ई० है, कलिंगके भिल्ल= ( गर्द भिल्ल) राजाका जामाता था और उसने पुनः शकोंको उज्जैनीसे भगाकर ' विक्रमादित्य' उपाधि ग्रहण की थी। इस प्रकार ' विक्रमादित्य ' उपाधिधारी राजा आन्ध्रवंश में दो हुए थे।' जैन लेखकने कुन्तलको गर्दभिल्लका जमाता जानकर पहले विक्रमादित्यको भ्रमसे उसका पुत्र लिख दिया प्रतीत होता है । इस दशामें पहले विक्रमादित्य अर्थात गौतमीपुत्र शातकर्णि जैन शास्त्रोंको विक्रमादित्य प्रगट होते हैं !
“ आवश्यकसूत्रभाष्य" से स्पष्ट है कि गौतमीपुत्रने नहपान शकको परास्त कर दिया था । उधर गौतमी पुत्र और ऋषभदत्तके शिलालेखों तथा नहपान के सिक्कों ने प्रमाणित है कि गौतमी पुत्रने नहपानको मालवा, सौराष्ट्र आदि देशों को शकोंसे मुक्त करदिया था । यह घटना ई० पू० ५८ की है। जैन शास्त्र भी विक्रमादित्यको
१ - जविओसो० भा० १६ पृ० २५१-२७८. २ - जविओोसो०,
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भा० १६ पृ० २५१ ।
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