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संक्षिप्त जन इतिहास । राजा विक्रमादित्य इस नामके राजाका तब कोई उल्लेख नहीं गौतमीपुत्र शातकर्णि। मिलता है। वास्तवमें विक्रमादित्य कोई
खास नाम न होकर केवल उपाधि मात्र है। इस अपेक्षा उस समयके इतिहासमें इस नामका कोई राजा न मिलना कुछ अनोखापन नहीं रखता । अतः आवश्यक है कि तत्कालीन राजाओंमें ऐसे किसी वीर और पराक्रमी राजाका पता चलाया जाय, जो विक्रमादित्य उपाधिका अधिकारी होसके । इस अपेक्षा अब प्रायः सब ही विद्वान् इस समय एक विक्रमादित्य राजाका होना स्वीकार करने लगे हैं। जैन शास्त्र कहते हैं कि वह गर्दभिलका पुत्र था। और प्रतिष्ठानपुरसे आकर उसने शकोंको परास्त करके भारतका विदेशी लोगोंसे उद्धार किया था। जैन, अजैन एवं शिलालेखीय आधारसे मम० काशीप्रसाद जायसवाल इस परिणामपर पहुंचे हैं कि यह विक्रमादित्य प्रतिष्ठानपुरके आन्ध्रवंशका गौतमीपुत्र शातकर्णि नामका प्रसिद्ध राजा था। 'गाथासप्तशती' के कर्ता राजा हालने (ई० सन् २१) एक गाथामें विकमाइच (विक्रमादित्य) की दानशीलताका वर्णन किया है। इस उल्लेखसे विक्रमादित्य उपाधिधारी राजाका उनसे पहले होजाना सिद्ध है। वस्तुतः आन्ध्रवंशमें गौतमीपुत्र शातकर्णि हालसे पहले होचुके थे। उनका समय ई० पूर्व १००-४४ है। जैन शास्त्र विक्रमादित्यको प्रतिष्ठानपुरसे आया बताते ही हैं और उनकी जीवनघटनायें भी गौतमीपुत्र शातकर्णिके जीवनसे मिलती हैं। इस कारण उन्हें गौतमीपुत्र शातकर्णी मानना ठीक
१-कैहिंइ०, भा० १ पृ० १६७–१६८, अलाहाबाद यूनीवर्सिटी स्टडीज, भा० २ पृ० ११३-१४७. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com