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६४] संक्षिप्त जैन इतिहास । 'शकारि' और उसे ई० पू० ५८ में उनपर विजय प्राप्त करते लिखते हैं । जैन ग्रन्थोंसे यह भी प्रकट है कि जब विक्रमादित्य इस असार संसारको छोड़गये तो उनके पुत्र विक्रम चरित्र अथवा धर्मादित्यने ४० वर्षांतक मालवापर राज्य किया । धर्मादित्यके पुत्र भैल्यने ११ वर्षतक उस देशपर शासन किशा । उपरांत नैल्यने १४ वर्ष तक राज्यकिया। नल्यका उत्तराधिकारी नहड़ वा नहद हुआ, जिसने १० वर्ष राज्य किया। उसीके समयमें सुवर्णगिरि (शिखिर सम्मेदजी) पर भगवान महावीरजीका एक विशाल मंदिर निर्माण हुआ था।' इन नामोंमें 'धर्मादित्य' उपाधि प्रकट होती है, और विक्रमचरित्र कुंतलशातकर्णि ( विक्रमादित्य द्वितीय ) के अपरनाम' विवमशील ' ( चरित्र-शील ) का द्योतक है। ____ कुंतलके समयमें शकोंद्वारा धर्मका विध्वंश पुनः होने लगा था। उसने शकोंको मार भगाकर धर्मरक्षा की थी। इसी लिये उसको 'धर्मादित्य ' कहा गया है। किन्तु वह गौतमी पुत्रका उत्तराधिकारी न होकर उसके बाद उस वंशमें उतना ही प्रख्यात राजा था। गौतमीपुत्रका उत्तराधिकारी श्री बिल्व पुलोमवि प्रथम था। उक्त नामोंमें 'भैल्य' को दिल =(भिल्व भैल्य) का अप्रभंश कह सक्ते हैं; किन्तु शेष दो नामोंका पता आन्ध्रवंशावलीमें लगाना कठिन है। 'नहद' संभवतः स्कन्दस्वातिका द्योतक हो। जो हो, यह स्पष्ट है कि जैन लेखकने क्रमवार और ठीक नामोंसे विक्रमादित्यके उत्तरा
१-जैसिमा० भा० १ किरण २-३ पृ० ३० । २-जविमोसो०, भा० १६ पृ० २०६। ३-जविमोसो० भा० १६ पृ० २७५-२७९ ।
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