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संक्षिप्त जैन इतिहास |
वेलने जैनधर्मकी इस हीनप्रभाको द्युतिमान् बना दिया । जैन धर्मका पुनरुद्धार होगया । कलिङ्गमें तो वह बहुत दिनों पहले से राष्ट्रीय धर्म होरहा था । किन्तु जैन धर्मको उस समय तक केवल एक दर्शन सिद्धान्त मानना कुछ जीको नहीं लगता । ब्राह्मण वर्ण जैन धर्म में भी है | अतः जिन ब्राह्मणों को खारवेलने भोजन कराया था, उनका जैन होना बहुत कुछ संभव है । कल्पवृक्ष जैनशास्त्रोंमें मनवांछित फलको प्रदान करनेवाले माने गए हैं । खारवेल भी अपनी प्रजाके लिये कल्पवृक्षके समान सब कुछ प्रदान करके महान् उदार और प्रजावत्सल बनना चाहता था । इसीलिये उन्होंने कल्पवृक्षका दान किया था । करुणाभावसे सब प्राणियोंको दान देना जैन धर्म उचित बतलाता है । जैन शास्त्रोंमें क्षत्री साधुओंका विशेष उल्लेख मिलता है । खारवेलके समय वह एक प्रख्यात् साधु समुदाय होरहा था । खारवेल जैनधर्मावलम्बी था, परन्तु वैदिक विधानानुसार उसका महाराज्याभिषेक हुआ और उसने राजसूय यज्ञ भी किया था । इससे यह बिल्कुल स्पष्ट है कि तब जैन धर्ममें साम्प्रदायिक कट्टरता इतनी नहीं थी कि वह प्राचीन राष्ट्रीय नियमोंके पालन में बाधक होता । खारवेल प्रजाहितैषी राजा थे। वह नहीं चाहते थे कि वह एक स्वाधीन राजाकी तरह शासन करें और प्रजाको पराधीनताका कटु अनुभव चखने दें। इसीलिये उन्होंने 'जनपद' और 'पौर' संस्थायें
खारवेलका राज्य
प्रबंध ।
स्थापित कीं थीं । यह संस्थायें आजकलकी म्युन्सिपल और डिस्ट्रिक्ट बोर्डोंके समान थीं । 'पौर' संस्था पुर
अथवा राजधानीकी संस्था थी। जिसके परामर्शसे वहांका शासन
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