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संक्षिप्त जैन इतिहास। ब्राह्मणवर्णकी थी और उसके पुत्र उसके जीवनकालमें ही स्वर्गवासी होगये थे। फलतः उसके पौत्रका नन्हा बालक होना उचित है। खारवेलके शिलालेखसे यह प्रकट ही है कि बाल अवस्थासे ही कलिंगराज्यका भार उनपर आगया था। उपरोक्त पुस्तकोंके अतिरिक्त उड़ियाके “ मदल पञ्जि"
(Madal Panji) नामक ग्रन्थमें भी उड़िया ग्रन्थोंमें खारवेलका वर्णन भोज नामसे हुआ अनुमान खारवेल। किया जाता है। इस ग्रन्थसे राजा भोजके
राज्यका प्रारम्भ ई० पूर्व १९४से प्रमाणित होता है और खारवेल ई० पूर्व १९२ में युवराज हुए थे। संभवतः भोज नामकी प्रसिद्धिके कारण अथवा खारवेलके विरुद्ध भिक्षुराजके अपभ्रंश (भोजराज) के रूपमें यह नाम उक्त ग्रन्थमें खारवेलके लिये लिखा गया है। उक्त ग्रन्थसे प्रगट है कि खारवेल एक वीर, पराक्रमी, उदार, न्यायशील और दयालु राजा थे । उनके दरबारमें ७५० प्रसिद्ध कवि थे, जिनमें मुख्य कालीदास थे। उनके रचे हुये चनक और महानाटक नामक ग्रन्थ थे। महानाटकका प्रचार कहीं२ अब भी ओड़ीसामें मिलता है। खारवेलके द्वारा नावों, चरों और गाड़ियोंका प्रचार पहले२ कलिङ्गमें हुआ था। उन्होंने सारे भारतवर्षपर विजय प्राप्त की थी! सब ही राजाओंको अपना करद बना लिया था । सिन्धु देशके यवनोंको भी खारवेलने मार भगाया था।' ' सारला महाभारत' नामक उड़िया काव्यमें भी खारवेलका वर्णन
१-जविमोसो०, भा० १६ पृ० १९४-१९६ ।
२-जविमोसो०, भा० १६ पृ० २११-२१५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com