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सम्राट् खारवेल |
[ ४१ अनुष्ठान किया था। किंतु खारखेलके इस पराक्रम, चातुर्य और रणकौशलको देखकर दङ्ग रह जाना पड़ता है । एक ही वर्ष में वह कलिङ्गसे चलकर उत्तर भारतके राजाओं को जीतने हुये मगध जा बहुंचते हैं और वहां के राजाको परास्त कर डालते हैं ! उनका यह कार्य टीक नेपोलियनके दृङ्गका है !
इस महाविजयके साथ ही खाखेलको सुदूर दक्षिणके पाण्ड्य - देशक नरेश बहुमूल्य रत्न, हाथियोंको ले जानेवाले जहाज आदि पदार्थ भेंट में मिले थे । यह पदार्थ अद्भुत और अलौकिक थे। मालूम होता है कि खाखेलकी पाण्ड्यनरेश मित्रता थी ! इस प्रकार साम्राज्य विस्तार के इन प्रयत्नोंका फल यह हुआ कि कलिङ्गका साम्राज्य बढ़ गया । तथापि उस समयके प्रसिद्ध राज्य मगधपर अपना अधिकार जमाकर खारवेलने अपने आपको समग्र भारत में सर्वोपरि शासक प्रमाणित कर दिया । वह भारतवर्ष के सम्राट् होगए ।
यहां यह व्य है कि उस समय कलिंगकी गणना भारतवर्षमें नहीं होनी थी। इस कालके दो शतातत्कालीन दशा । ब्डि बाद समग्र भारतका उल्लेख 'भारतवर्ष' के नामसे होने लगा था । जैनधर्मका
पांड्यदेशके नरे
शकी भेंट |
इस
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समय बहु प्रचार था । मौर्य साम्राज्यके नष्ट होनेके पश्चात् अवश्य ही जैनधर्मकी प्रभा शिथिल हो गई थी । शुङ्गवंश एवं दक्षिणके सातवाहन वंश ब्राह्मण धर्मानुयायी थे। उनके द्वारा वैदिक धर्मको उत्तेजना मिली थी और अश्वमेधादि यज्ञ भी हुए थे । किन्तु खार
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