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सम्राट् खारवेल।
[४३ होता था। जनपद ग्रामीण जनताकी द्योतक है; जिनकी संस्था 'जनपद' कहलाती थी। उन लोगोंका शासन-प्रबंध उसके द्वारा होता था। इस प्रकार खारवेलने जनताको शासन प्रबन्धमें सम्मिलित कर रक्खा था। यही कारण है कि खारवेलके कलिङ्गसे बाहर लड़ाइयोंमें व्यस्त रहनेपर भी राज्यशासन समुचित रीतिस चाल रहा था। कलिङ्गतर राष्ट्रोंसे उन्होंने साम, दण्ड और संधि नीतियोंके अनुसार व्यवहार किया था । खारवेलके हाथोंमें राज्यकी बागडोर छोटी उम्रमें आई थी।
वह भी उस नन्हीं उम्रसे एक आदर्श राजा खारवेलका राजनैतिक बन गये थे। क्रोध और अत्याचार तो खारजीवन । बेलके निकट छूतक नहीं गया था । वह
एक जन्मजात योद्धा और दक्ष सेनापति होते हुए भी एक आदर्श नृप थे। उन्होंने अपनी प्रजाको प्रसन्न रक्खा था; जिसका उल्लेख उनने अपने शिलालेखमें बड़े गर्वके साथ किया है । खारवेल अपनेसे पहलेके राजाओं और पूर्वजोंका आदर करते थे । इस दृष्टिसे खारवेल अशोकसे बाजी लेजाते हैं; क्योंकि. अशोकने अपने पूर्वजोंका उल्लेख केवल अपनी महत्ता प्रगट करनेके लिये किया है। खारवेलके समयमें वास्तु विद्याकी उन्नतिको उत्तेजना मिली थी । उसने स्वयं बड़े २ महल, मंदिर और सार्वजनिक संस्था
ओंके भव्य भवन निर्मापित कराये थे । उनके द्वारा ललितकल की. भी विशेष उन्नति हुई थी। पूर्ण दक्ष कारीगरों द्वारा उनने सुन्दर पच्चीकारी और नक्कासीके स्तंभ बनवाये थे। सचमुच जब २ वह दिग्विजयसे झण्डा फहराते हुए लौटते थे, तब २ वह अपने राज्यमें
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