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संक्षिप्त जैन इतिहास |
शक जाति के थे और पहले पहल विवाह सम्बन्ध केवल अपनः जातिमें करते थे । किंतु उपरांत यह लोग जैन और बौद्ध धर्म में दीक्षित होगये थे । वैदिक धर्मको भी इन लोगोंने अपनाया था । क्षत्रियोंके साथ इनका वैवाहिक सम्बन्ध भी होने लगा था ।
छत्रप नहपान ।
छत्रप वंशमें नहपान नामका राजा बहुत प्रसिद्ध था । उसका समय ई० प्रथम शताब्दिसे ईस्वी प्रथम शताब्दि तक विद्वान् अनुमान करते हैं । उसकी 'राजा' और 'महाछत्रप' उपाधियां थी जो उसे एक स्वाधीन राजा प्रगट करती हैं । नहपानका राज्य सुजरात, काठियावाड़, कच्छ, मालवा, नासिक आदि देशोंपर था । उसका जमाता ऋषभदत्त उसका सेनापति था । नहपान भ्रमकका उत्तराधिकारी था । इस भूमकके सिक्कोंमें एक ओर सिंह व धर्मचक्र तथा ब्राह्मी अक्षरोंका लेख अङ्कित मिलता है। यह चिह्न जैनत्वके बोतक हैं। भूमकके दरबारकी भाषा भी प्राकृत थी । नहपान निस्सन्देह जैन धर्मानुयायी था । दिगम्बर और श्वेतांबर दोनों ही जैन सम्प्रदायोंके शास्त्रोंमें उसका वर्णन मिलता है । श्री जिनसेनाचार्यने उसका उल्लेख ' नरवाह ' नामसे किया है और उसका राज्यकाल ४२ वर्ष लिखा है; जो ई० पूर्व ५८ तक अनुमान किया जाता है। जैन शास्त्रोंमें नहपानका उल्लेख 'नरवाहन' 'नरसेन' 'नहवाण' यदि रूपमें हुआ मिलता है । नहपानका एक विरुद 'भट्टारक' था
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१- भाप्रारा० भा० १५० २-३. २- भावारा० भा० १ पृ० १२- १३. ३ - जविओसो० भा० १६ पृ० २८९ ४ - राइ० भा० १ पृ० १०३.
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