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संक्षिप्त जैन इतिहास । __ छत्रपवंशमें नहपानके अतिरिक्त उपरांत छत्रप रुद्रदामनके
पुत्र रुद्रसिंह जैनी होना संभव है। उसने छत्रप रुद्रसिंह जैनी। सन् १८०से १९६ ई०तक राज्य किया था।
उसका एक लेख चैत्र शुक्ला पंचमोका लिखा हुआ भग्न दशामें जूनागढ़से मिला है। जिसमें “केवलज्ञानसंप्राप्ताणां" पद मिलता है । इस पदके कारण, क्योंकि केवलज्ञान' जैनोंका एक पारिभाषिक शब्द है, बुल्हर आदि विद्वान् रुद्रसिंहको जैन धर्मानुयायी प्रगट करते हैं। जूनागढ़का 'बावा प्याराका मठ' और अपरकोटकी गुफाओंको भी विद्वान् जैनोंकी बताते हैं। श्रुतावतारसे गिरिनगर (जूनागढ़) के निकट स्थित गुफाओंमें दि० जैन मुनियोंका होना सिद्ध है । इन इमारतोंको छत्रप रुद्रसिंहने ही संभवतः बनवाया था। शक संवत्के विषयमें कोई निश्चित मत नहीं है । फर्गुसनने
उसे कनिष्कका चलाया हुआ अनुमान किया सक-सम्बत। है। किन्तु आज उस मतके विरुद्ध अनेक
प्रमाण मिलते हैं। पण्डित भगवनलाल और जैक्सन सा० इस संवतको नहपान द्वारा गुजरात विजयकी स्मृतिमें
१-आर्केलॉजिकल सर्वे रिपोर्ट ऑफ वेस्टर्न इन्डिया, मा० २ पृ० १४०. २-इंऐ०, भा० २० पृ० ३६३....३-'श्रुतावतार' में धरसेनाचार्यको गिरिनगरके निकटकी गुफाका निवासी लिखा है। (गिरिनगरसमीपे गुहावासी धरसेनमुनीश्वरो) और गिरिनगर जनागदका प्राचीन नाम है। (देखो कजाइ० पृष्ठ ६९८). ४-इंऐ०, मा० २० पृ. ३६४.५-भाप्रारा० भा० १ पृ० ३.
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