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संक्षिप्त जैन इतिहास |
१२० ई० पूर्व से आरम्भ हुआ था। राजा कुशान और उविमकब्धिसके लेखोंमें यही संवत मिलता है ।
दूसरा ऐतिहासिक शक संवत सन् ७८ से कुन्तल शातकर्णी द्वारा शकोंपर एक बार फिर विजय प्राप्त करनेके उपलक्षमें चला था । किन्तु जायसवालजी जैन शास्त्रोंक इस उल्लेख से कि वीर निर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने पश्चात शक राजा हुआ, सन् ७८ से शकद्वारा भी चला एक संवत मानते हैं । किन्तु इस जैन उल्लेस्वमें एक शक राजाका होना लिखा है, न कि उसमें शक संवतके चलनेका उल्लेख है। इस दशा में जैन गाथाओंके आधारसे एक
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१ - जवि ओसो० १६ ५० २३० - २४२. २- जविमोसो० भा० पृ० १६५० ३००.
३- 'णिव्वाणे वीरजिणे छत्रवाससदेसु पंचवरिसेसु ।
पण मासेसु गदेसु संजादो सगणिओ बहवा ॥ ८९ ॥ - त्रिलोकप्रज्ञप्ति । 'त्रिलोकसार' में इस गाथाको निम्नप्रकार लिखा गया है:'पण लस्सयवस्सं पणमास जुदं गमिय वीर णिव्वुइदो |
सगगजो तो कक्की चदुनवतियमहिय सगमासं ॥ ८५० ॥ श्री जिनसेनाचार्यने 'इग्विंशपुराण' में इसीको संस्कृत में इसप्रकार लिखा है : - 'वर्षाणां षट्शर्ती त्यक्त्वा पंचाग्रां मासपंचकं । मुक्ति गते महावीरे शकराजस्ततोऽभवत् ॥ '
इन गाथाओं में से किसी में भी शक संवत्के चलने या उसके प्रवर्तकका उल्लेख नही है । एकमात्र यही कहा गया है कि वीर निर्वा- णसे ३०५ वर्ष ५ महीने पश्चात् शक राजा हुआ । अतएव इनसे शद्वारा एक दूसरे संवत् के चलनेका पता नहीं चलता ।
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