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संक्षिप्त जैन इतिहास । . अतएव महामहोपाध्याय श्री काशीप्रसादजी जायसवालके
शब्दोंमें यह स्पष्ट है कि कलिंगके सम्राट युवराज खारवेलका 'खारवेलके पूर्व पुरुषका नाम महामेघवाहन राज्याभिषेक ! और वंशका नाम ऐल चेदिवंश था।' मालूम
होता है कि खारवेलके पिताका स्वर्गवास उस समय होगया था, जब वह लगभग सोलह वर्षके थे। प्राचीनकालमें सोलह वर्षकी अवस्थामें पुरुष बालिग हुआ समझा जाता था । खारवेल जब सोलह वर्षकी अवस्थामें वालिग होगये, तो वह युवराज पदपर आसीन होकर राज्यशासन करने लगे थे । उस समयतक उनका राज्याभिषेक नहीं हुआ था। प्राचीन कालमें राज्याभिषेक २५ वर्षकी अवस्थामें होता था। अतः जब पच्चीस वर्ष के हुये तो उनका महाराज्य अभिषेक हुआ था और वह एक राजाकी तरह राज्यशासन करने लगे थे। जिस समय खारवेल राज्यसिंहासनपर आरूढ हुये उस समय उनका राज्य कलिङ्गमरमें विस्तृत था, जो वर्तमानका ओड़ीसा प्रांत जितना था। तब कलिङ्गकी प्रजाकी गणना भी खारवेलने कराई थी और वह ३५ लाख थी। जन समुदायकी गणना करानेका रिवाज मौर्योके समय सुतरां उनसे पहलेसे प्रचलित प्रगट होता है । अशोकके समयसे ही कलिङ्गकी राजधानी तोसलि थी। खारवेलने भी अपनी राजधानी वहीं की थी। उन्होंने कोई नवीन राजधानी स्थापित की हो , यह मालूम नहीं देता । उनकी राजधानीका उल्लेख ‘कलिङ्गनगरी' के नामसे
हुआ है।
१-नागरीप्रचारिणी पत्रिका. भा० १० पृ० १०२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com