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संक्षिप्त जैन इतिहास |
विलक्षण है । किन्तु देश, नगर व राजाके नाम इस कथाका लीला क्षेत्र भृगुच्छके आसपास ही प्रगट करते हैं । देशका ' वांमि ' नाम अनोखा है | यह शब्द संभवत: नागों के वास बामीका द्योतक है; जिससे भाव उस प्रदेशके होसकते हैं कि जिसमें नागलोक रहने हों । सिंध- कच्छवर्ती देशको यूनानियोंने नागों के कारण पाताल नाम दिया भी था । नाग लोगों के मूल स्थान रसातल (मध्य एशिया) के दो भाग में शक लोग रहते थे। इसी कारण भृगुकच्छके आसपासके देशको नागों शकादिके वासस्थान रूपमें दिगंबराचार्य 'वांगी' नामसे उल्लिखित करते हैं। निस्सन्देह वह भृगुकच्छवर्ती देश होना चाहिये: क्योंकि गिरिनगर - अंकलेश्वर आदि नगर उसीके पास हैं । 'गर्गसंहिता' में नहपानकी राजधानीका उल्लेख 'पुर' रूपमें हुआ है; जिससे स्पष्ट है कि वह एक प्रसिद्ध और समृद्धिशाली नगर था । वस्तुतः प्राचीन कालमें भृगुकच्छकी ऐसी ही स्थिति रहती थी । इस अवस्था में उसका उल्लेख वसुंधरा रूपमें करना अनुचित नहीं है। उक्त श्वेतांबर कथा नहवाण (नहपान ) का सम्पूर्ण चरित्र प्रगट करनेके लिये नहीं लिखी गई है, बल्कि माया शल्यके द्रव्यप्रणिधि भेदके उदाहरण रूपमें उसका उल्लेख किया गया है। वैसे ही 'श्रुतावतार' में भी दिगम्बर जैन आगम ग्रन्थके लिखे जानेकी घट
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१ - इंहिका० भा० १ पृ० ४५९ २ - जविमोसो०, २४।४०८. 'स्वकं पुरं' । ३ -भगुकच्छ बौद्धकाल से एक प्रसिद्ध चन्दरगाह और लाट देशकी राजधानी रहा है | बनास्ना०, पृ० २० ४ - 'मायायाम् ' सा च द्विवा - द्रव्यप्रणिधिः भावप्रणिधिश्च । तत्र द्रव्यप्रणिवी उदाहरणम्.... अभिधान राजेन्द्रकोष, जविओोसो, भा० १६ पृ० २९१.
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