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इन्डो-चैक्ट्रियन ओर इन्डो पार्थियन राज्य। [२३ किया था । उक्त संग्राम इस घटनाका ही द्योतक है । उधर दिगम्बर जैन शास्त्र · श्रुतावतार ' में भी एक नरवाहन राजाका उल्लेश्वः हैं । इसके विषयमें वहां कथन है कि वह वांमि देशकी वसुन्धग नगरीका राजा था । उसकी मुरूपा नामक गनीके कोई पुत्र नहीं था, जिसके कारण वह दुःखी रहती थी । राजश्रेष्टी नुबुद्धिके कहनेसे नरवाहनने पद्मावती देवीकी पूजाकी और पुष्योदयमे उसके एक पुत्र हुआ । उसका नाम पद्म रक्खा गया । नरवाहनने इस हर्ष घटनाके उपलक्षमें सहस्रकृट एवं अन्य अनेक जिन मंदिर बनवाये । धर्म प्रभावनाके लिये ग्थयात्रायें निकलवाई । कालांतरमें नरवाहनके राजनगरमें एक जैन संघ आया। जिसमें उसका मित्र मगधका राजा मुनि था । उसके उपदेशसे नरवाहन मुनि होगये । सुबुद्धि श्रेष्टी भी मुनि होगया। ये ही दोनों मुनि गिरिनगर (जूनागढ़) धरसेनाचार्यके निकट आगम शास्त्रकी व्याख्या सुननेके लिये गये थे । उमे सुनलेनेके पश्चात् उन्होंने अंकलेश्वरपुर (भडोच-भृगुकच्छ) में घटखण्डागम शास्त्रकी रचना की थी। ये क्रमशः भूतबलि और पुप्पदन्त नामसे प्रसिद्ध हुए थे" । यह कथा उक्त श्वतांबर कथासे नितांत
१-जविओसो०१६ पृ० २५१-२८२. २-सिद्धांतसारादिसंग्रह (मा० ग्रं०) पृ० ३१६-३१८. ३-'गिरिनगरसमीपे गुहावासी धरसेनमुनीश्वरोऽग्रायणीपूर्वस्य यः पंचमवस्तुकस्तस्य तुर्य्यप्राभृतस्य शास्त्रस्य व्याख्यानप्रारंभ करिष्यति ।............भूतबलिर्नामा नरवाहनो मुनिर्मकिश्यति............सद्बुद्धिः पुष्पदंतनामा मुनिर्भविष्यति ।. ............ तन्मुनियं अंकलेसुरपुरे गत्वा मत्वा षडंगरचनां कृत्वा शास्त्रेषु लिखाप्य....इत्यादि।" -विबुधश्रीधरकृत: श्रुतावतार | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com