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इन्डो-पैक्ट्रियन और इन्डो पार्थियन राज्य। [१९ ~~~~~~
यह भी मालम होता है कि तबतक विवाह क्षेत्रकी विशातामें भी कोई संकोच नहीं हुआ था। वणिक सिंहकका विवाह एक कौशिक वंशीय क्षत्राणीसे हुआ था । अबतक वैश्य जातिकी उपजातियोंका प्रचार नहीं था और लोग चार वर्णों की अपेक्षा ही एक दूसरेका उल्लेख करते थे। किन्तु इस पुरातत्वमे उस समय अर्थात ई० पू० प्रथम शताब्दिमे ई० दूसरी शताब्दि तक जैन संघमें जो उथल-पुथल मची हुई थी. उसका खासा परिचय होता है। इसका विशेष वर्णन दिगम्बर और श्वेतांबर भेदका जिकर करते हुये आगे किया जायगा । 'दिगम्बर' अपनेको प्राचीन 'निर्ग्रन्थ' नामसे संबो. धित करते थे। पहले कहा जाचुका है कि इन्डों बैक्ट्रियन राजाओंने प्रांत
प्रांतमें छत्रप नियत करके शासन प्रबन्ध छत्रप राजवंश। किया था। कुशन कालमें यह छत्रप लेगा
उत्तर पश्चिमी भारतके कुशन राजाके सूबेदार थे। किन्तु अन्तमें इनका प्रभाव इतना बढ़ा कि मालवा. गुजरात, काठियावाड़, कच्छ, सिंध, उत्तर कोंकण और राजपूतानेके मेवाड, मारवाड़, सिरोही, झालावाड़, कोटा, परतापगढ़, किशनगढ़, डूंगरपुर, वांसवाड़ा और अजमेर तक इनका अधिकार होगया । ई० पू० पहली शताब्दिसे ई० चौथी शताब्दि तक भारतमें छत्रपके तीन मुख्य राज्य थे; दो उत्तरी और एक पश्चिमी भारतमें। तक्षशिला अर्थात् उत्तर पश्चिमी पंजाब और मथुराके छत्रप 'उत्तरी छत्रप" तथा पश्चिमी भारतके छत्रप 'पश्चिमी छत्रप' कहलाते थे। यह मूलमें
१-वीर वर्ष ४ पृ० ३०१.
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