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इन्डा - वैक्ट्रियन और इन्डो पार्थियन राज्य । [6
आजकलके जैनियोंको प्रस्तुत इतिहास से देखना चाहिये कि उनके पूर्वजोंने किस प्रकार धर्मका गौरव प्रगट किया था । जीव मात्रका कल्याण करनेके लिये उन्होंने निःशंक वृत्ति स्वीकार की थी। जैनधर्मका मूल रूप उनके चारित्र से स्पष्ट है। आज भी उनके आदका अनुकरण करना श्रेयस्कर है। प्रस्तुत पुस्तक पाठकोंके लिये इस विषय में मार्गदर्शकका कार्य करे, यही हमारी अभिलाषा है | सचमुच इतिहासका कार्य ही यह है । वह सुधार और शौर्यका पाठ पढ़ाता है. मुर्दा दिलोंमें नये उत्साह और नये जोशको जगाता है ! भारतको आज ऐसे वीरभावोत्पादक धर्मकी आवश्यक्ता है ! भारत- संतान अपने वीर पूर्वजांको जाने और उन्हें पहचानकर उनके पराचिन्हों पर चलनेका प्रयत्न करे, यही भावना है। सचमुच :यह थे वह वीर जिनका नाम सुनकर जोश आता है | गोंमें जिनके अफसानोंसे चक्कर खून खाता है ||
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( १ )
इन्डो- वैक्ट्रियन और इन्डो पार्थियन राज्य
छत्रप व कुशन-साम्राज्य । (सन् २२६ ई० पू० से २०६ ई०) भारत के उत्तर में यूनानियोंने अपना राज्य स्थापित किया था । सम्राट् चन्द्रगुप्त के वर्णन में लिखा बैक्ट्रियन और पार्थि- जाचुका है कि मिल्यूकस नाइकेटर भारतसे यन राज्य । परास्त होकर बलख आदिकी ओर लौट गया था । सन् २६९ ई० पू० में सिल्यकसकी मृत्युके पश्चात् उसका पुत्र एण्टिओकस राजा हुआ परन्तु
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