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इन्डो- वैक्ट्रियन और इन्डो पार्थियन राज्य ।
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संभवत: अजेसके पराक्रमसे ही शक राज्यका आधिपत्य तमाम उत्तर पश्चिमी भारत में जमना नदी तक स्थापित होगया था । उसने क्षत्रप' नियत करके पारस्य देशकी राजनीतिकी तरह अपना शासन व्यवस्थित किया था। उसके सिक्कोंपर 'महरजस रजरजस महातस अयस अथवा 'महरजस रजदिरजस महतस अयस' या ' महरजस नहतस श्रमिकस रजदिरजस अयस लेख मिलते हैं। महाराजा अजेस के समय ( ई० पूर्व प्रथम शताब्दि ) में तक्षशिला में जैनधर्म उन्ननिपर था। उस समय के बने हुए कई जैन स्तृप वहां आज भी भग्नावशेष हैं। एक स्तूपके भीतरसे नहाराजा अजेसके आठ तांबेके सिक्के, और एक छोटीसी सोनेकी डिबिया. जिसमें अस्थि - अंश स्वर्णके टुकडे और हाथीदांत एवं पाषाण मणिकायें रखे हुये थे, निकले थे। इन स्तूपोंकी बनावट ठीक मथुरा के जैन स्तूपकी बनावटके समान हैं । इन्हीं स्तूपोंके पासवाली इमारतों में से एक लेख अरेमिक (Aramaic) भाषाका ईसवीसन्से पूर्वका निकला है । भारतमें इस लिपि और इस भाषाक़ा यही एक लेख है । हत्भाग्य से यह अभीतक ठीक २ पढ़ा नहीं गया है। डॉ० बानेंट और प्रो० कौली इसमें एक हाथीदांतके महलके बनवाने का उल्लेख हुआ बतलाते हैं । किन्तु एक धार्मिकस्थान - स्तूप के निकट महलका बनना कुछ ठीक नहीं जंचता ! संभवतः यह महल 'जिन प्रसाद' अर्थात् जैन मंदिरका द्योतक होगा ।
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महाराज अजेसके समय में जैनधर्म
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१- तक्ष० पृ० १३. २- भाप्रारा० भा० २ पृ० १९६. ३-तक्ष० पृ० ७६-८०.
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