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माकधन |
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चक्रवर्ती एल खारवेने अनेक संग्राम में अपना शौर्य प्रकट करके धर्मप्रभावना की थी। उनके भवसे यूनानी बादशाह दमित्रय भारत छोड़कर भाग गया था । जैन बार स्वास्खेलने पुनः स्वाधीन भारतकी प्रतिष्ठाको बाल बचा लिया यह सही वीर पर मांत्मा श्रावक थे । चन्द्रगुप्त तो अन्नमें जैन मुनि होगये थे । खारवेलने कुमारीपर्वत पर उग्रोग्र त्रत-उपवासको करके अपनेको क्षीण संमृत बना लिया था । अहिंसा को उन्होंने ठीक-ठीक समझा था और उसका प्रकाश अपने व्यक्तित्वमे खूब ही किया ! इसी लिये भारतीय विद्वान जैन धर्मको अपने वास्तविक रूपमें शक्तिशाली धर्म प्रकट करते हैं । वह कहते हैं कि वह कर्मवीरोंका धर्म है। अकमण्य पुरुषोंका नहीं ! वस्तुतः बात भी यही है ।
जैनाचार्य अपने देश और धर्मके लिये मनुष्यको कर्तव्यशील होनेका उपदेश देते हैं। एक श्रावकके लिये वात्सल्य धर्म वह हर तरह - जरूरत हो तो असिबलसे भी अपने धर्मात्मा भाइयोंकी रक्षा करना
religion but ( really ) irreligious, steeped in delusion; will terribly prosecute the people of Saurastra and proclaim the so-called Religious Conquest, contributing thereby to the glorification of the religiousness of his elder brother Samprati by sections of the Jain community." —Jbors, XVI p. 24. 1- Prof. Dr. B Seshagiri Rao, M. A., ph D., writes : "It appears to me that Jainism is a religion of strength......It is a worker's and not an idler's faith"-Jain Antiquary, I, 1. २ - आचार्य सोमदेव 'यशस्तिलकचम्पू' में कहते हैं:
" यः शस्त्रवृत्तिः समरे रिपुः स्यात्, यः कण्टको वा निजमंडलस्य । अस्त्राणि तत्रैव नृपाः क्षिपन्ति, न दीन- कानीन - शुभाशयेषु ॥ "
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