Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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( सम्यक्त्व की प्रतिज्ञा )
'मझे ग्रहण करलेने से; ग्रहण करनेवाले की इच्छा न होने पर भी मुझे उसको बलात् मोक्ष ले जाना पड़ता है, इसलिए मुझे ग्रहण करने से पहले यदि वह विचार करे कि मोक्ष जाने की इच्छा को बदल देंगे तो भी उससे काम नहीं चलेगा। मुझे ग्रहण करने के बाद, मुझे उसे मोक्ष पहुँचाना ही चाहिए। कदाचित् मुझे ग्रहण करनेवाला शिथिल हो जाए तो भी, यदि हो सका तो उसी भव में, अन्यथा अधिक से अधिक पन्द्रह भव में मुझे उसे मोक्ष पहुँचा देना चाहिए।' __कदाचित् वह मुझे छोड़कर मुझसे विरुद्ध आचरण करे अथवा प्रबल से प्रबल मोह को धारण करे तो भी अर्ध पुद्गल -परावर्तन काल के अन्दर मुझे उसे मोक्ष पहुँचा देना चाहिए, –ऐसी मेरी प्रतिज्ञा है।' (-श्रीमद् राजचन्द्र)
तीनलोक में सम्यग्दर्शन की श्रेष्ठता एक पलड़े में सम्यग्दर्शन का लाभ हो और दूसरे पलड़े में तीन लोक के राज्य का लाभ प्राप्त हो, तो वहाँ पर तीन लोक के लाभ से भी सम्यग्दर्शन का लाभ श्रेष्ठ है; क्योंकि तीन लोक का राज्य पाकर भी अल्पपरिमित काल में वह छूट जाता है और सम्यग्दर्शन का लाभ होने पर तो जीव अक्षय मोक्षसुख को ही पाते हैं।
- भगवती आराधना 746-47
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.