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जबलपुर
ता. 18 जून 1998
'सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?"
त्रिवेणी संगम की आवश्यकता रहती है। आपने बुद्धि-बल की प्रतीक " सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?' पुस्तक के प्रकाशन का जो निर्णय लिया वह प्रशंसनीय एवं अनुमोदनीय है ।
पुस्तक का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार होना चाहिए । सत्यमेव जयते के लिए प्रबल और निरन्तर प्रयास करना अपना सुकर्तव्य है ।
नैतिकता और धार्मिकता को एक तरफ रख कर तीर्थों के प्रबन्ध में हक प्राप्त करने हेतु अनुचित और निन्दनीय प्रयास करना महापाप है ।
- गुर्वाज्ञा से उदयप्रभ विजय
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आचार्य श्री विजय सुशील सूरीश्वरजी म.सा. आचार्य श्री विजय जिनोत्तम सूरीश्वरजी म.सा.
" सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?" शीर्षक पुस्तक का प्रकाशन अत्यन्त आवश्यक था और है ।
समाज को सत्य जानकारी हेतु आपका प्रयास अतीव प्रशंसनीय है ।
रणकपुर तीर्थ
ता. 26 जून 1998
हार्दिक शुभकामना के साथ मंगल-आशीर्वाद
- गुर्वाज्ञा से जिनोत्तमसूरीश्वर
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