________________
44
"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
था। ई.सं. १९०५-१९१० के दरमियान पालगंज राजा को धन की आवश्यकता पड़ी। राजा ने पहाड़ बिक्री करने या रहन रखने की सोची उस पर कलकत्ता के रायबहादुर सेठ श्री बद्रीदास जौहरी मुकीम एवं मुर्थीदाबाद निवासी महाराज बहादुरसिंहजी दुगड़ ने राजा की यह मनोभावना जानकर अहमदाबाद के सेठ आणन्दजी कल्याणजी पेढ़ी को यह पहाड़ खरीदने के लिए प्रेरणा दी व सक्रिय सहयोग देने का आश्वासन दिया। श्री आणन्दजी कल्याणजी पेढ़ी ने खरीदने की व्यवस्था करके प्राचीन फरमान आदि देखे। सब अनुकूल पाने पर दिनांक ९.०३.१९१८ को रुपये दो लाख बयालीस हजार राजा को देकर यह पारसनाथ पहाड़ खरीदा गया जिससे पहाड़ पुनः जैन श्वेताम्बर संघ के अधीन आया। इस कार्य में इन महानुभावों का सहयोग सराहनीय है। उनकी प्रेरणा व सहयोग से ही यह कार्य सम्पन्न हो सका।
वि.सं. १९८० में आगमोद्धारक पूज्य आचार्य श्री सागरानन्दसूरिजी यहां यात्रार्थ पधारे। तब उनकी इच्छा पुनः जीर्णोद्धार करवाने की हुई। उनके समुदाय की विदुषी बालब्रह्मचारिणी साध्वीजी श्री सुरप्रभाश्री जी के प्रयास से वि.सं. २०१२ में जीर्णोद्धार का कार्य प्रारम्भ होकर सं. २०१७ में पूर्ण हुआ। यह तेईसवां उद्धार था। वर्तमान काल में सम्मेतशिखर पहाड़ पर की ३१ देहरियां, जलमन्दिर, गंधर्व नाला की धर्मशाला, मधुबन की जैन श्वेताम्बर कोठी तथा भोमियाजी का मन्दिर व धर्मशालाओं की व्यवस्था श्री जैन श्वेताम्बर सोसाइटी की देखरेख में है । हाट का प्रबन्ध व मेले की पुल
सेठ आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी के हाथ में है।'' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com