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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
प्रतिकार किया। सन् 1973 में श्री जैन श्वे. (मूर्तिपूजक) श्री महावीर जी तीर्थ रक्षा समिति का गठन एवं रजिस्ट्रेशन होकर इस कार्य में पूरे मनोयोग से जुट गई। इस केस में जैन-अजैन 18 व्यक्तियों के बयान दर्ज हो चुके थे। 1991 में भारत सरकार द्वारा रामजन्म भूमि, बाबरी मस्जिद विवाद के अन्तर्गत एक नया एक्ट धार्मिक स्थलों की स्थिति सम्बन्धी 15 अगस्त 1947 का पारित हुआ जिसके अन्तर्गत दिगम्बर समाज की दरख्वास्त माननीय न्यायालय ने मन्जूर कर ली। इस आदेश के खिलाफ दो अपीलें श्वेताम्बर समाज द्वारा हाईकोर्ट की जयपुर बैंच में प्रस्तुत की गई जो मन्जूर कर ली गई। दिगम्बर कमेटी मंदिर परिसर में कोई रद्दोबदल, तोड़फोड एवं मूर्तियों को नहीं हटा सके, इसके लिए यथास्थिति रखने, कमिश्नर मुकर्रर करने एवं विडियोग्राफी फिल्म बनवाने के लिए श्वेताम्बर समाज ने एक स्टे एप्लिकेशन राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बैंच में लगाई। दिनांक 1.7.97 को यह एप्लिकेशन मंजूर होकर दिनांक 3.7.97 को दोनों तरफ के वकीलों की मौजूदगी में वीडियोग्राफी करवा ली गई है। फाइनल बहस की तारीख 19.8.97 निश्चित की गयी है।
तीर्थंकर स्वरूप जो तीर्थ हैं उनकी सेवाभक्ति और रक्षा करना तीर्थंकर के समान हैं जिनकी तन, मन, धन से रक्षा करनी चाहिए। जो भी महान् पुण्यशाली व्यक्ति, संस्थाएं ऐसे पुण्य कार्यों में लगी हुई हैं उनको सम्बल देना श्वेताम्बर समाज के हर संघ, संस्था और व्यक्ति का पूर्ण दायित्व एवं कर्तव्य है | समाज समय रहते जगेगा तो ही धर्म और तीर्थों की रक्षा होगी अन्यथा नये मंदिर बनते जावेंगे, पुराने तीर्थ छिनते जावेंगे।"
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