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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
दस्तावेज तथा प्रमाणित सबूत आदि उक्त पेढ़ी के पास आज भी मौजूद
हैं।
इ.स. 1965 में एक इकरारनामें द्वारा बिहार राज्य सरकार ने इस पहाड़ के सम्बन्ध में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनों के सारे हक स्वीकार किये हैं।
इ.स. 1990 में गिरीडीह (बिहार राज्य) की अदालत ने उक्त पहाड़ के विषय में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनों के सारे हकों को स्वीकार करते हुए ऐतिहासिक निर्णय दिया है।
इ.स. 1993 में बिहार सरकार ने न्यायालय में ऐसी स्पष्टता करते हुए लिखित दस्तावेज द्वारा बयान किया है कि 'पारसनाथहिल'' का सम्पूर्ण नियंत्रण, मालिकी कब्जा एवं संचालन जो श्वेता. मू.पू. जैनों का स्थापित हुआ है इस में हमें बीच में नहीं आना है।
दिगम्बर भाई-बहनों को उक्त तीर्थ में रही हुई 20 टूकों और श्री गौतम स्वामीजी की ढूंक में सिर्फ भक्ति करने (WORSHIP) का ही अधिकार है।
हमें ज्ञात हुआ है कि हाल में बिहार सरकार एक अध्यादेश हुक्म जारी करने जा रही है जिसके मुताबिक समस्त तीर्थ पहाड़ का वहीवट मालिकी कब्जा श्वेता. मू.पू. जैनों से छीन कर सरकार अपनी ओर से नई 13 सदस्यों वाली कमेटी को सौंपना चाहती है । इस प्रकार पवित्र तीर्थ का वहीवट आदि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनों से, सरकार छीनना चाहती है।
धार्मिक तीर्थों में हस्तक्षेप करना सरकार के लिए शोभनीय और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com