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श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय
पिता
स्वर्गवास - अहमदाबाद 1993 में माता - श्रीमती भूरी बहन
- श्रीमान् चिमनभाई श्री चिमनभाई के लाड़ले सुसंस्कारी कान्तीलाल जी के 3 भाई तथा 3 बहिनें थी, उस समय 21 वर्ष की आयु में आपने लन्दन की बैंकिग परीक्षा प्रथम स्थान से पास की। बैंक में नौकरी की तथा 23 वर्ष की उम्र में पूज्य आचार्य श्री विजय प्रेमसूरीश्वर जी महाराज साहब से भगवती दीक्षा अंगीकार कर संसार सागर पार करने के लिए संयम पथ पर अग्रसर हो गये। तप, त्याग, ज्ञान की साधना के बल पर आप आचार्य श्री प्रेम सूरीश्वरजी महाराज साहब के प्रधान शिष्य रत्न बन गये थे। आप का नाम लेते ही आप के साथ जुड़े ऐतिहासिक कीर्तिमान जैसे धार्मिक शिक्षण शिविर, संघ एकता, शासन सेवा, सादा जीवन उच्च विचार, तप-संयम-ज्ञान व वैराग्य की साक्षात् मूर्ति आँखों के सामने उतर आती है। न्याय शास्त्र का सांगोपांग अभ्यास कर न्याय विशारद बने तथा अनेक ग्रंथों का सृजन कर साहित्य को सुनहरा बनाया। 59 वर्ष के संयमी जीवन में आप श्री ने 400 भाई बहनों को दीक्षा अंगीकार करा जैन शासन की गरिमा बढ़ाई इनमें से अधिकांश संयमी, ज्ञानी, तपस्वी एवं विद्वान चरित्र आत्माओं को जैन शासन को समर्पित किये जिनमें वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री जयघोष सूरीश्वरजी एवं धनपाल सूरीश्वरजी, धर्मजीत सूरीश्वरजी, धर्मगुप्त विजयजी, भद्रगुप्त सूरीश्वरजी, जितेन्द्र सूरीश्वरजी, गुणरत्न सूरीश्वरजी, राजेन्द्र सूरीश्वरजी, हेमचन्द्र सूरीश्वरजी, जगचंद्र सूरीश्वरजी,जयशेखर सूरीश्वरजी, चन्द्रशेखर विजयजी, रत्नसुन्दर विजयजी, हेमरल विजयजी, जयसुन्दर विजयजी, अभयशेखर विजयजी, भुवन सुन्दर विजयजी आदि प्रमुख हैं। आपने उग्र विहार कर जैन पताका को राजस्थान, गुजरात, सौराष्ट्र, बिहार, बंगाल, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश आदि देश के कोने-कोने में फहराया। आपने 17 वर्ष तक आयंबिल तप कर जीवन को रसना विजेता बनाया, जीवन भर फलफूल, मिठाई, नमकीन का त्याग किया। आपने जीवन में एक ही लक्ष्य रखा था और वह था मोक्ष की प्राप्ति। अत: आप क्षण भर भी फालतू नहीं खोते थे। 83 वर्ष की उम्र में 59 वर्ष का निर्मल संयम जीवन पाला तथा नवपद की बेजोड़ आराधना की, वर्धमान तप की 108 ओलीजी करीब 6000 से भी अधिक आयंबिल किये आप में सूत्रों को कंठस्थ
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