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श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय
| संतों की अद्भुत महिमा • संतों की महिमा बड़ी अपार है। संत जहां पैर रख देते हैं, वही स्थान तीर्थ
बन जाता है। संत जो भगवद्विषयक बातें करते हैं, वही शास्त्र बन जाता है। संत का मिलना ही दुर्लभ है। यदि वे मिल गए तो काम बन गया। उनके वस्तु-गुण से ही काम बन जाता है। श्रद्धा होने पर काम हो इसमें कौनसी बड़ी बात है। जैसे अमृत का स्पर्श हुआ कि अमर बन गए, वैसे ही किसी प्रकार से भी संत-स्पर्श हो गया तो कल्याण हो ही गया। संत को पहचान कर उनकी सेवा करने से तो कल्याण होता ही है बल्कि उनके दर्शन से भी कल्याण होता है। संत-दर्शन होने पर ही भगवान की अनुभूति होती है। संत का मिलना अमोघ है यानि अचानक भी उनका संग हो गया तो वह खाली नहीं जाएगा। अन्त में कल्याण करके ही छोडेगा। संत और भगवान में भेद नहीं है, तभी तो नारदजी ने कहा- 'तस्मिस्तजने भेदाभावात्' यानि संत और भगवान में भेद का अभाव है, दोनों एक ही
जिसे संत ने स्वीकार कर लिया वह भगवान के द्वारा भी अपना लिया गया, इसमें कभी भूलकर भी संदेह न करें। संतों की डांट-फटकार भी वरदान है क्योंकि डांट-फटकार माता केवल
अपने बेटे पर ही कर सकती है, दूसरे पर नहीं। अत: वह संत मां हो गया। • जो संतों से हर हालत में जुड़ा ही रहता है वह अन्त में भगवान के हृदय
का टुकड़ा बन जाता है, चाहे संत कैसा ही व्यवहार करें। संत की कही वाणी, आश्वासन कभी खाली नहीं जाता, वे जो कह देते हैं, भगवान को वह सहर्ष स्वीकार है।
जिसने संत के हृदय का प्यार पा लिया उसके लिए तो भगवान मिलने के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com