Book Title: Sammetshikhar Vivad Kyo aur Kaisa
Author(s): Mohanraj Bhandari
Publisher: Vasupujya Swami Jain Shwetambar Mandir
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Collbilde 16 જૈન ગ્રંથમાળા દાદાસાહેબ, ભાવનગર, ફોન : ૦૨૭૮-૨૪૨૫૩૨૨ 300४८४ ३ शिखर-विवाद और कैसा? श्री सम्मेद शिखरजी महातीर्थं सत्य को स्वीकार करने एवं असत्य को छोड़ने हेतु हमें निरन्तर तत्पर रहना चाहिए, यह मानवता एवं धर्म का प्रबल तकाजा है। -मोहनराज भण्डारी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नूतन जैन लघुतीर्थ, अजमेर के प्रेरक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com प.पू. निस्पृह, परमात्मभक्ति के अनन्य उपासक, शासनप्रभावक वात्सल्यमूर्ति, कच्छबागड देशोद्धारक, जिन भक्ति के अजोड़ प्रणेता, शुद्धसंयमधारक, आध्यात्मयोगी, आचार्य श्रीमद् विजय कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा, Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3703 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 卐 सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा ( सत्यों एवं तथ्यों का संक्षिप्त विवरण) (लेखक-सम्पादक श्री मोहनराज भण्डारी । अध्यक्ष : श्री जैन श्वेताम्बर श्री संघ (पंजी.) अजमेर अध्यक्ष : अ.भा. गोवा स्वतंत्रता सैनिक संघ जिला शाखा अजमेर प्रादेशिक प्रतिनिधिः आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी ( अहमदाबाद) पूर्व अध्यक्ष : अजमेर जिला पत्रकार संघ तथा अजमेर जिला श्रमजीवी पत्रकार संघ 62 महावीर कॉलोनी पुष्कर रोड, अजमेर (राज.) 0428432 (प्रकाशक श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मन्दिर पुष्कर रोड, अजमेर (राज.) (आर्थिक सहयोगीअनेकांत फाउन्डेशन, लुधियाना प्रथम आवृत्ति-2000 प्रकाशन तिथि- दीपावली 1998 मूल्य-दस रुपया मात्र पृष्ठ संख्या-140 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" गलत समाचारों के धोखे में न आवें तीर्थ व्यवस्था यथावत श्री सम्मेद शिखरजी महातीर्थ के सम्बन्ध में प्रतिपक्ष की ओर से गलत समाचारों का प्रकाशन कर भोले-भाले श्रद्धालुओं को भ्रमित किया जा रहा है। झूठे समाचारों पर विश्वास न करें। तीर्थ की व्यवस्था पूर्ववत है, अभी कोई परिवर्तन नहीं हुआ। कई केस न्यायालय में विचाराधीन हैं। यह स्पष्ट है कि संविधान के तहत श्री सम्मेद शिखरजी तीर्थ की व्यवस्था और आधिपत्य सन् १९४७ के पूर्व से 'श्वेताम्बर जैन समाज का है, उसे परिवर्तन करने के लिए संविधान में परिवर्तन करना होगा। ऐसा करने से देश के पचासों धर्मस्थलों के विवाद पुनः उठ खड़े होंगे जिस पर काबू पाना शासन के लिए दुष्कर हो जायेगा। -"श्वेताम्बर जैन"आगरा, 8 मई 98 सम्मेद शिखर तीर्थ के 10 लाख रु. किसने डकारे? श्री सुभाष जैन केवल झूठ का पोषण ही नहीं करते स्वयं अपने क्रोध का पोषण भी करते रहते हैं। "णमो तित्थस्स" के दिसम्बर अंक से तिलमिलाए व अपने आप पर क्रोधित श्री सुभाषजी तीन महीने उपरान्त भी शान्त नहीं हो पाए। अपने क्रोध-पोषण के कारण असंतुलित मस्तिष्क से अनाप-शनाप व अनर्गल बातें हैंडबिल के माध्यम से छाप कर अपने कथित सर्वोच्च नेतृत्व को शर्मनाक स्थिति में ला खड़ा कर दिया। वे आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी से पर्वत राज के जंगलों की आय के लालच को त्यागने की बात कहते हैं जब कि उन्हें पता नहीं कि आनन्दजी कल्याणजी ने ही बिहार सरकार के जंगलात विभाग को जंगल न काटने का निवेदन कर 1980 से ही जंगल कटवाना बंद कर दिया। उससे पूर्व मात्र 17 लाख के लगभग की बांस व लकड़ी वहां से निकली, जिसमें 10 लाख की लकड़ी तो साहू अशोक जैन ने अपनी रोहताश इण्डस्ट्रीज के लिए ली, जिसका पैसा आज तक नहीं दिया। यह स्पष्ट उदाहरण है तीर्थराज का पैसा दिगम्बर समाज के कथित सर्वोच्च नेता द्वारा डकारने का। हम तो इन बातों को दोहराना नहीं चाहते थे पर विवशतावश हैण्डबिल का स्पष्टीकरण बिन्दुवार देने के कारण लिखना पड़ा। के विद का हल तभी संभव है जब दिगम्बर समाज का नेतृत्व कुशल, सच्चे, ईमानदार व जैन धग के निमा का पालन करने वाले श्रावकों के हाथ में आए। -अप्रेल 1998 के "मो तित्यस्स"नई दिल्ली से साभार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " सम्मेद शिखर - विवाद क्यों और कैसा?" सम्पादक-लेखक की कलम से - 3 एक विशेष नम्र निवेदन सोये हुए व्यक्ति को जगाया जा सकता है लेकिन जो जागकर भी सोने का बहाना करे, उसे भला कौन जगाये और कैसे जगाये ? जैन धर्म के अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर के युग तक, जैन धर्म के समूचे अनुयायी जिस तरह से परस्पर सहयोगी और संगठित होकर चले उसी के परिणाम स्वरूप जैन धर्म नयी ऊंचाइयों को छूने की ओर बढ़ता ही गया और विश्व - मानव उससे उत्तरोत्तर प्रभावित होने लगा तथा जैन धर्म विश्व-धर्म बनने की क्षमता का आभास कराने लगा लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि भगवान महावीर के युग के पश्चात् जैन आचार्यों एवं साधु-सन्तों द्वारा व्यक्तिगत यशप्राप्ति की भावना के वशीभूत होकर जैन धर्म के आधारभूत सिद्धान्तों की पूर्णतया अनदेखी करने का दुःखद क्रम चला दिया गया । यह क्रम आनन-फानन में इतनी तेजी से चल पड़ा कि जैन धर्म के अनुयायी स्व-विवेक को छोड़ कर सम्प्रदायों और सम्प्रदायों के अन्तर्गत छोटे-छोटे गुटों में इस तरह बंटता जा रहा है कि आज वह कहीं रूकने का नाम नहीं ले रहा है । इस क्रम ने जैन धर्म को जितनी क्षति पहुँचाई है और पहुँचाता जा रहा है उसकी कल्पना भी आसानी से नहीं की जा सकती है। सच्चाई को समझने के लिए इतिहास के उस दौर का हम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" सब को ईमानदारी से अध्ययन करना चाहिए जहाँ से संगठित जैन समाज को बंटना पड़ा या हमने बांटने का महा पाप अपने सिर पर लिया। यह समय और परिस्थितियों की हमारे लिए खुली चुनौती है। यदि इस गम्भीर चुनौती को मिल-बैठकर स्वीकार न कर पाये तो इतिहास हमें कभी क्षमा नहीं करेगा । 4 यदि जैन धर्म के अनुयायी सम्प्रदायों और गुटों में बंट कर भी जैन धर्म के मूल सिद्धान्तों की हत्या न कर, त्यागतपस्या के क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को महत्व देते तो निश्चय ही ये सम्प्रदाय और गुट जैन धर्म को आगे बढ़ाने के स्वतः ही प्रतीक बन जाते और जैन धर्म के अनुयायियों का गौरव बढ़ता पर जैन धर्म के अनुयायियों ने बंटकर अपने को श्रेष्ठ बनाने की बजाय एक-दूसरे की निन्दा और आलोचना करने के साथ जो झगड़े- टंटें खड़े किये हैं वे जाने-अनजाने जैन धर्म का भयंकर अहित कर पाप के भागी बन रहे हैं। मतभेद तो परिवार के सदस्यों में भी होते हैं लेकिन मतभेद को मनभेदों तक फैलने अथवा फैलाने की प्रक्रिया को यदि कोई परिवार न रोक सके तो उस परिवार को नष्ट होने से बचाना कठिन ही नहीं असम्भव हो जाता है। आज जब कि समूचे जैन समाज को संगठित होकर जैन धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार में अपनी शक्ति और साधनों का सद् उपयोग करना चाहिए वहाँ प्रबन्ध में हक प्राप्ति के लिए तथाकथित विवाद खड़ें कर राजनीतिक प्रभाव के सहारे उन्हें हल करने-कराने का प्रयत्न करना समाज और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" . धर्म के साथ विश्वासघात करना है। वैसे तो हर व्यक्ति, सम्प्रदाय और समाज को अपना हक प्राप्त करने हेतु कानूनी-लड़ाई, लड़ने का अधिकार है लेकिन कोई व्यक्ति या सम्प्रदाय अपने धर्म या धर्म-स्थानों के हितों की उपेक्षा कर या उनका बलिदान देकर भी धार्मिक स्थानों पर हक प्राप्त करने का प्रयास करता है तो वह समूचे समाज के प्रति एक भयंकर पीड़ाजनक अपराध है। धार्मिक स्थानों सम्बन्धी विवाद में राजनीतिक प्रभाव के सहारे सरकार को हस्तक्षेप हेतु आमंत्रित करना या सरकारी हस्तक्षेप का स्वागत-समर्थन करना, जाने-अनजाने एक ऐसा जघन्य अपराध है जिसकी सजा आगे-पीछे जाकर समूचे समाज को एक दिन अवश्य भुगतनी पड़ती है। सम्मेदशिखर-विवाद को अनुचित और अनैतिक रास्तों के माध्यम से अपने प्रभाव के सहारे उलझा कर प्रबन्ध में हिस्सेदारी प्राप्त करने का स्वप्न देखने वालों को यह नहीं भूलना चाहिये कि इसके दूरगामी दुष्परिणामों की चपेट से वे स्वयं को भी नहीं बचा पायेंगे। सरकार को तो धार्मिक स्थानों में हस्तक्षेप करने का मात्र बहाना चाहिए और यह बहाना हम सहज ही उसे उपलब्ध करा देते हैं तो फिर धार्मिक स्थानों में उसके दखल को रोक पाना निश्चय ही सम्भव नहीं है। आज सरकार सम्मेद शिखरजी के मामले में हस्तक्षेप कर रही है तो कल श्री महावीरजी और बाहुबलिजी के मामले में भी बहुत आसानी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" से हस्तक्षेप कर गुजरेगी और अकेला दिगम्बर समाज प्रभावशाली और वजनदार विरोध निश्चय ही नहीं कर पायेगा। समय की मांग और परिस्थितियों का प्रबल तकाजा है कि हम गहराई और ईमानदारी से सोचे-समझें और किसी भी धार्मिक स्थल को सरकारी हस्तक्षेप का शिकार न बनने दें। दिगम्बर समाज में भी व्यायप्रिय, धर्मनिष्ठ और प्रबुद्ध लोगों की कमी नहीं है और इन्हीं लोगों से हम आग्रहपूर्वक नम्र निवेदन करना चाहेंगे कि वे गहराई और ईमानदारी से सम्मेदशिखर-विवाद के बारे में चिन्तन-मनन करें। केवल अति महत्वाकांक्षी राजनीति के खिलाड़ी कुछ नेताओं के भरोसे इस अहम मसले को न छोड़ें अन्यथा इसके दूरगामी परिणाम धर्म एवं समाज के लिए बहुत ही घातक होंगे। यदि दिगम्बर समाज के अशोकजी जैसे तौर-तरीकों से श्वेताम्बर समाज भी श्रवण बेलगोला के प्रबन्ध में हिस्सेदारी की मांग करे तथा उलटा-सीधा प्रचार करें तो क्या वह उचित एवं न्यायसंगत होगा तथा दिगम्बर समाज क्या उसे सहन कर सकेगा? प्रस्तुत पुस्तक-लेखन के पीछे हमारा उद्धेश्य किसी की भावना को ठेस पहुँचाना कतई नहीं है लेकिन कटु सत्य को प्रस्तुत करने में कहीं कोई अप्रिय शब्द का प्रयोग हो गया हो तो हम हृदय से अगाऊ क्षमाप्रार्थी हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?' 64 19 62, महावीर कॉलोनी, पुष्कर रोड, अजमेर (राज.) © 428432 एवं 620765 महा कवि कालीदास जयन्ती 98 ( अषाढ़ खुद एकम संवत् 2055 ) 7 अन्त में हम दिगम्बर समाज के महान् त्यागी-तपस्वी और विद्वान् आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज साहब के शब्दों को ही दोहराना चाहेंगे कि "धर्म के नाम पर झगड़े करने वाले अधर्मी हैं ।” अत: जैन धर्म में आस्था और विश्वास रखने वाला कोई भी व्यक्ति कम से कम अधर्मी न बनें यही हमारा विनम्र निवेदन है । मोहनराज भण्डारी कार्यवाहक अध्यक्ष स्वतंत्रता सेनानी संघ अजमेर जिला, अजमेर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" प्रस्तावना धार्मिक क्षेत्र में जब राजनीति का पदार्पण होता है तब विषम स्थितियों का जन्म स्वतः हो जाता है और यह विषम स्थितियां धर्म के अनुयायियों को आपस में इस तरह बांट गुजरती है कि धर्म की मूल भावना के प्रति भी हम जाने-अनजाने अपने कर्तव्य और दायित्व से भी मुंह मोड़ बैठते हैं । राजनीति में धर्म का वर्चस्व बढ़ता है तो सुख-शान्ति की लहर उत्पन्न होती है लेकिन धर्म में जब राजनीति अपने पांव पसारती है तो द्वेषकलह का जन्म होता है और उससे सभी को पीड़ित होना पड़ता है। महान् धार्मिक तीर्थ सम्मेद शिखर का तथाकथित विवाद जिस उलटे-सीधे रास्तों से उठाया गया और कानून के दायरे में ले जाया गया वह बहुत ही पीडाजनक बात है। इससे समूचे जैन समाज और जैन धर्म की प्रतिष्ठा को भारी आघात पहुँचना स्वाभाविक ही है। लेकिन इससे भी दो कदम आगे बढ़कर राजनीतिक प्रभाव और दुष्प्रचार के सहारे वर्षों से चली आ रही तीर्थ-व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर उसके प्रबन्ध में हक प्राप्त करने की कुटिल चालों का खेल-खेलने वाले यह न भूले कि इस धरती से ऊपर भी एक ऐसी अदालत है जहाँ न्याय, नैतिकता और ईमानदारी के अतिरिक्त किसी भी तरह की न तो पहुँच है और न कोई स्थान। कम से कम धार्मिक मामलों में तो गलत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" कार्य करने से हमें निश्चय ही डरना चाहिए।हम यहाँ तो धींगाधींगी और मनमानी कर लेंगे लेकिन प्रभु की अदालत में क्या जवाब देंगे? सम्मेद शिखर के तथाकथित विवाद को लेकर जिस तरह का दुष्प्रचार निरन्तर और व्यापक साधनों के मद में किया जा रहा है उसका हमें अपनी सामर्थ्य के अनुसार निराकरण करना चाहिए। यह समय की मांग और परिस्थितियों का प्रबल तकाजा प्रस्तुत पुस्तक की पाण्डुलिपी देखी, अच्छी लगी। पुस्तक लेखक-सम्पादक सुश्रावक श्री मोहनराजजी भण्डारी को मैं एक लम्बे समय से खूब अच्छी तरह से जानता हूँ। वे एक योग्य और अनुभवी लेखक व सम्पादक होने के साथ सार्वजनिक क्षेत्र के एक कर्मठ व्यक्ति हैं । भण्डारीजी कई सार्वजनिक व सामाजिक संस्थाओं के प्रमुख पदों से जुड़े होने के साथ ही अजमेर जिले के कई साप्ताहिक एवं पाक्षिक समाचार-पत्रों के भी सम्पादक के रूप में, उन्होंने अच्छी ख्याति प्राप्त की है। लगभग 45 वर्षों तक राष्ट्रीय पत्र दैनिक "नवज्योति" के समाचार-सम्पादक के पद से अवकाश लेने पर "नवज्योति" परिवार की ओर से उन्हें जो अभिनन्दन पत्र दिया गया उसके महत्वपूर्ण कुछ अंश यहां प्रस्तुत करना सामयिक होगा "आपकी कार्यकुशलता, सत्यता, कर्तव्य परायणता, कठोर श्रम एवं सरल स्वभाव का ही परिणाम है कि आप सदैव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 "सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" सफल व प्रगति करते रहे। आपका यह कार्यकाल गौरवमय व अच्छाइयों से भरा पूरा और निष्कलंक रहा जिसकी हम मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हैं। आपके कार्य क्षेत्र की सीमा केवल "नवज्योति " तक ही सीमित नहीं रही है किन्तु लोकोपकारी अनेक सार्वजनिक संस्थाओं में भी आपका सहयोग प्रेरणास्पद व महत्वपूर्ण रहा है । अन्याय का साहस पूर्वक, दृढ़ता एवं निर्भीकता के साथ प्रतिरोध करना आपका अन्यतम सुन्दर स्वभाव है । ऐसे अवसरों पर आप इस्पात की तरह दृढ़ रहते हैं जो टूट भले ही जाए पर मुड़ता नहीं ।" इसी तरह साधू मार्गी समाज के आचार्य एवं कई धार्मिक पुस्तकों के विद्वान लेखक श्री अभयमुनिजी महाराज ने श्री भण्डारीजी के बारे में "बिजोलिया किसान - सत्याग्रह " पुस्तक में लिखा है "मैं चाहूंगा कि समाज भण्डारीजी के सार्वजनिक- जीवन से प्रेरणा प्राप्त कर लाभान्वित हो। समाज में आप जैसे रत्न बिरले ही होते हैं। मैंने आपको निकट से देखा है, आप सहृदय हैं, ऐसा मेरा आत्मविश्वास है। मैं अधिकार पूर्वक भाषा में कह सकता हूँ कि श्री मोहनराजजी भण्डारी एक तपे हुए वरिष्ठ पत्रकार होने के साथसाथ सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मठ कार्यकर्ता भी हैं ।" अतः प्रस्तुत पुस्तक के बारे में मैं क्या कहूँ और क्यों कहूँ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 11 जब कि पुस्तक स्वयं पाठकों से परिचित होने उनके हाथों में पहुँच रही है। हां, मैं श्री मोहनराजजी भण्डारी को हार्दिक धर्मलाभ देना चाहूंगा कि उन्होंने स्थिति की नाजुकता को समझ कर यह पुस्तक लिखने का प्रशंसनीय कार्य, निस्वार्थ भावना से किया है। अहमदाबाद ता. 28 जून 1998 -उपाध्याय धरणेन्द्रसागर . (कई धार्मिक पुस्तकों के विद्वान् लेखक) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" | प्रकाशक के दो शब्द कई आचार्य भगवन्तों, विशेष रूप से शान्तिदूत आचार्य श्री नित्यानन्द सूरीश्वरजी म. सा. एवं विद्वान् पंन्यास भुवनसुन्दर विजयजी म.सा. की प्रेरणा और सलाह थी कि महान् पवित्र तीर्थ सम्मेद शिखर को लेकर उत्पन्न किये गये तथाकथित विवाद तथा बहु प्रचारित भ्रमकप्रचार का ठोस और न्याससंगत आधार पर निराकरण किया जाये। प्रभु की कृपा और आचार्य भगवन्तों के शुभ आशीर्वाद से श्रद्धेय श्री मोहनराजजी साहब भण्डारी, जो पिछले लगभग 50 वर्षों से अपनी पुस्तकों और कई समाचार पत्रों के माध्यम से एक प्रशंसनीय और प्रतिष्ठित विशेष पहिचान बनाये हुए हैं, ने मेरे विशेष आग्रह भरे अनुरोध पर अपनी अस्त-व्यस्त दिनचर्या के बावजूद सम्मेद-शिखर के तथाकथित विवाद के बारे में पुस्तक लेखन-सम्पादन के भार को वहन करना स्वीकार कर मुझे एक प्रकार से उपकृत किया है। इसके लिए किन शब्दों में आभार व्यक्त करूं, मेरे पास शब्द नहीं हैं। प्रस्तुत पुस्तक बहुत ही अल्प समय के बीच लेखन-सम्पादन से लगाकर मुद्रण तक अपना स्वरूप ले पाई है। ___मुझे तो इस बात की हार्दिक प्रसन्नता है कि हमारा यह लघु एवं सामयिक प्रयास प्रभु कृपा और भण्डारी साहब के कृपापूर्ण अमूल्य सहयोग से पूर्ण होकर पुस्तक रूप में आपके कर कमलों तक पहुँच रहा है। मेरा विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक "सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा?" आम लोगों को विशेषकर समाज के प्रबुद्ध विचारशील लोगों को नये सिरे से पुनः सोचने-समझने की प्रेरणा देगी। यह कटु सत्य है कि भ्रामक प्रचार और राजनीतिक दबाव के सहारे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 13 अर्जित उपलब्धि बालू का एक ऐसा ढेर है जो कभी भी न्याय की तेज हवा के झोके से ढह जायेगी। __अन्त में, मैं आदरणीय मंगलचंदजी सा भण्डारी, श्री जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ मद्रास-5 के पूर्व अध्यक्ष श्री बादलचन्दजी भण्डारी, श्री उमेशजी भण्डारी एम.कॉम एवं श्री जिनेन्द्रजी भण्डारी के प्रकाशनव्यवस्था को तीव्रगति दिलाने हेतु दिये गये सहयोग एवं हमारी मन्दिर समिति के अध्यक्ष आदरणीय डा. जयचन्दजी साहब बैद के उल्लेखनीय सहयोग के प्रति आभार प्रदर्शित करना चाहूंगा। 9, वीर लोकाशाह कॉलोनी पुष्कर रोड, अजमेर (राज.) 052754 पी.पी. 15 जून 1998 रिखबचन्द भण्डारी मंत्री-श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मन्दिर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 " सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" संदेश एवं शुभकामनाएं आचार्य श्री कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. यह जानकर खुशी हुई कि श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मन्दिर अजमेर एक ज्वलन्त विषय श्री सम्मेद शिखर- विवाद पर वरिष्ठ पत्रकार श्री मोहनराज भण्डारी से एक पुस्तक लिखवा रहा है। उक्त पुस्तक “सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?'' के मुख्य आलेख की प्रतिलिपी देखी, अच्छा प्रयास लगा । वैसे संसार सागर से पार उतरने के लिए तीर्थ भूमियां निश्चय ही एक जहाज के समान हैं । तीर्थ स्थानों का भ्रमण करने पर मनुष्य के भाव पवित्र एवं शुद्ध बनते हैं। ऐसे अवसर पर मनुष्य की तीर्थस्थानों के प्रति जितने अंशों में श्रद्धा होगी उतने ही अनुपात में वह पवित्रता का लाभ प्राप्त कर सकेगा । तीर्थ में आकर हमें क्लेश, कषाय एवं कदाग्रहों से मुक्त होने की सच्ची प्रार्थना करने का वास्तविक प्रयास करना चाहिए। इसके विपरीत तीर्थ के नाम पर हम क्लेश-कदाग्रह बढ़ायेंगे, कषायों को विशेष उद्दीप्त करेंगे तो तीर्थ की उपासना- सुरक्षा करने की हमारी पात्रता ही समाप्त हो जायेगी । सत्य एवं न्याय पक्ष के अतिरिक्त हम जो भी झूठ, कुटिलता, राजकीय दबाव एवं जोर जुल्म की राह से तीर्थ पर हक प्राप्त करने का प्रयत्न करेंगे तो वह हमारी सज्जनता पर एक कलंक ही प्रमाणित होगा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" 66 पवित्र एवं पूजनीय श्री सम्मेद शिखर महातीर्थ की पवित्रता सुरक्षित रहे, ऐसा कार्य करना प्रत्येक सुश्रावक का प्रथम एवं अन्तिम कर्तव्य एवं धर्म है । जिनकी तीर्थ के प्रति एवं तीर्थपति परमात्मा के प्रति पूजनीयता के पवित्र भाव हैं वे विवाद क्यों करेंगे ? कोर्ट का द्वार खटखटाना ही जहाँ गलत है वहाँ राजनीतिक प्रभाव के सहारे सत्यों और तथ्यों पर पर्दा डलवाने को तो अपराध ही कहा जायेगा । 15 हम अपना श्रावकाचार भूलकर उलटे-सीधे मार्ग का अवलम्बन करेंगे तो सत्य, न्याय और पूज्यों का आदर करने के महत्वपूर्ण कर्तव्य के साथ सरासर अन्याय करेंगे । सत्य, न्याय एवं तीर्थ की पूजनीयता को साक्षी कर, श्रावकश्रावक को मिल-बैठकर इस अनुचित विवाद को तुरन्त समाप्त करना चाहिए । यही हमारे धर्म और कर्तव्य की पुकार है । सब को सद्बुद्धि मिले और सत्य का आदर हो । इसी शुभ कामना के साथ नमो तित्थस्स. 1 - विजय कलापूर्ण सूरीश्वर खेरागढ़ (म. प्र. ) ता. 27. मई 1998 आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी म.सा. पत्र से ज्ञात हुआ कि "सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?'' पुस्तक छपने जा रही है। उक्त पुस्तक प्रकाशन से तीर्थ के विषय में वहाँ की वर्तमान www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" समस्या के विषय में लोगों को पूरी जानकारी मिलेगी, ऐसा मैं मानता आपके प्रयत्न के लिए धन्यवाद । अहमदाबाद -पद्मसागर सूरीश्वर ता. 27 जून 1998 **** आचार्य श्री जितेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. आप सम्मेद शिखरजी तीर्थ पर ऐतिहासिक दस्तावेज सहित “सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?'' शीर्षक पुस्तक लिख रहे हैं, जानकर खुशी हुई। मेरा विश्वास है कि आम लोगों को विशेष कर समूचे जैन समाज को विवाद की असलियत समझने में यह पुस्तक काफी सहायक होगी। इतना ही नहीं, सरकार को भी इन्साफ देने में विशेष सहयोगी एवं सहायक होगी। ___ आपका यह प्रयास, गलत और भ्रामक प्रचार से गुमराह हुए लोगों को नये सिरे से सोचने को प्रोत्साहित करेगा। यह कहूं तो अनुचित न होगा कि यह पुस्तक, न्याय, नैतिकता और ईमानदारी से सोचने वालों में एक नई जागृति उत्पन्न करेगी। नारलाई (राजस्थान) -जितेन्द्र सूरीश्वर ता. 20 मई 1998 **** आचार्य श्री नित्यानन्द सूरीश्वरजी म.सा. यह जानकार प्रसलता हुई कि श्री वासुपूज्य स्वामी जैन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" श्वेताम्बर मन्दिर अजमेर, सम्मेद शिखर- विवाद को लेकर "सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?'' शीर्षक पुस्तक का प्रकाशन कर रहा है। सम्मेद शिखर-विवाद को जिस तरह खड़ा किया गया और गलत प्रचार किया जा रहा है वह निश्चय ही जैन धर्म और जैन समाज की प्रतिष्ठा के कतई अनुकूल नहीं है । गलत तौर-तरीकों से विवाद खड़ा करना और राजनीतिक प्रभाव और झूठे प्रचार के माध्यम से अपने पक्ष को मजबूत करना समूचे समाज के साथ अपराध करना है। झूठे प्रचार का निराकरण करना आज की अनिवार्य आवश्यकता है। सुश्रावक एवं जागरूक चिन्तनशील वरिष्ठ पत्रकार श्री मोहनराज भण्डारी द्वारा लिखित और सम्पादित उक्त पुस्तक सही स्थिति से सभी को परिचित कराने में विशेष महत्वपूर्ण प्रमाणित होगी । पुस्तक की पाण्डुलिपी सरसरी नजर से देखी और पाया कि यह पुस्तक तो बहुत पहिले ही प्रकाशित हो जानी चाहिए थी। खैर । इस पुस्तक का व्यापक प्रचार-प्रसार कर समाज सेवा में पूरा-पूरा योगदान देना चाहिए। काश! इस पुस्तक का गुजराती भाषा में अनुवाद हो सके तो विशेष रूप से उपयोगी होगा । भादरा ( राजस्थान) - नित्यानन्द सूरीश्वर ता. 2 जून 1998 **** 17 आचार्य श्री हेमप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. प्रत्येक कार्य सिद्धि में बुद्धि-बल, धन-बल एवं एकता - बल की www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 जबलपुर ता. 18 जून 1998 'सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" त्रिवेणी संगम की आवश्यकता रहती है। आपने बुद्धि-बल की प्रतीक " सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?' पुस्तक के प्रकाशन का जो निर्णय लिया वह प्रशंसनीय एवं अनुमोदनीय है । पुस्तक का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार होना चाहिए । सत्यमेव जयते के लिए प्रबल और निरन्तर प्रयास करना अपना सुकर्तव्य है । नैतिकता और धार्मिकता को एक तरफ रख कर तीर्थों के प्रबन्ध में हक प्राप्त करने हेतु अनुचित और निन्दनीय प्रयास करना महापाप है । - गुर्वाज्ञा से उदयप्रभ विजय 44 आचार्य श्री विजय सुशील सूरीश्वरजी म.सा. आचार्य श्री विजय जिनोत्तम सूरीश्वरजी म.सा. " सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?" शीर्षक पुस्तक का प्रकाशन अत्यन्त आवश्यक था और है । समाज को सत्य जानकारी हेतु आपका प्रयास अतीव प्रशंसनीय है । रणकपुर तीर्थ ता. 26 जून 1998 हार्दिक शुभकामना के साथ मंगल-आशीर्वाद - गुर्वाज्ञा से जिनोत्तमसूरीश्वर **** Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" आचार्य पुण्यानन्द सूरीश्वरजी म.सा. यह जानकर आनन्द की अनुभूति हुई कि आप सम्मेद शिखर के तथाकथित विवाद के सम्बन्ध में पुस्तक प्रकाशित करने जा रहे हैं। सत्यों और तथ्यों से युक्त यह पुस्तक शीघ्र प्रकाशित करें। आपकी भावना अच्छी है। थासन देव! आपका मनोरथ सफल करें, यही प्रार्थना है । हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं। कोल्हापुर (एम.एस.) -पुण्यानन्द सूरीश्वर ता. 23 जून 1998 **** आचार्य श्री कमलरत्न सूरीश्वरजी म.सा. सम्मेद शिखरजी जैसे महान् और पवित्र तीर्थ की हमें हर कीमत पर सजग रह कर रक्षा करनी है। अन्यथा 20 तीर्थंकरों की निर्वाण जैसी पवित्र भूमि दूसरी कहाँ से लाओंगे! "सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?' पुस्तक का प्रकाशन एक सामयिक और अति सराहनीय कदम है। इस विद्वतापूर्ण कार्य के लिए हमारा हार्दिक आशीर्वाद। सादडी(पाली, राज.) -गुर्वाज्ञा से दर्शनरत्न सूरि ता. 5 जुलाई 1998 **** Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" आचार्य श्री नरदेवसागर सूरीश्वरजी म. सा. दिगम्बर समाज के तथाकथित कुछ नेता महान् पवित्र तीर्थ सम्मेद शिखरजी के प्रबन्ध में हक प्राप्त करने के लालच में जो उलटेसीधे राजनीतिक खेल, खेल रहे हैं उससे सम्मेद शिखरजी की पवित्रता और गरिमा नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो गया है । सच को झूठ में बदल कर तथा झूठ को सच बतलाने का जो व्यापक प्रचार-प्रसार किया जा रहा है उसके निवारण हेतु " सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?'' पुस्तक का प्रकाशन एक लघु प्रयास होते हुये भी अपने आप में एक बहुत ही महत्वपूर्ण, आवश्यक एवं सामयिक प्रयास है, हार्दिक बधाई । इस धार्मिक मामले में बिहार सरकार का हस्तक्षेप निन्दनीय होने के साथ ही झूठ को सच में बदलने वालों को संरक्षण और समर्थन देने का प्रयास मात्र है । 20 यदि पुराने फरमानों को न्याय और नैतिक दृष्टि से देखा जाये तो सम्मेद शिखर का तथाकथित विवाद बेबुनियाद और दूषित भावना का ही प्रतीक है। हम सभी, तीर्थ की पवित्रता और गरिमा की रक्षार्थ जागरूक एवं सक्रिय बनें तथा प्रभु! इस अनुचित और दुःखद षडयंत्र को असफल बनायें | साथ ही दिगम्बर समाज के तथाकथित नेताओं को सद्बुद्धि दे । अहमदाबाद ता. 1 जुलाई 1998 **** - गुर्वाज्ञा से चन्द्रकीर्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" आचार्य श्री अरिहन्तसिद्ध सूरीश्वरजी म.सा. यह तो सर्व विदित है कि सम्मेद शिखरजी महातीर्थ कई शतकों से श्वेताम्बरों का ही है तथा मालिकाना हक और व्यवस्था उसके पास चली आ रही है। दिगम्बरों को सिर्फ दर्शन-पूजन का हक है। फिर भी दिगम्बर समाज के कुछ तथाकथित नेता प्रबन्ध में हक पाने हेतु जो उलटा-सुलटा राजनीतिक खेल, खेल रहे हैं वह सरासर अन्यायपूर्ण है। सरकार धार्मिक स्थानों में हस्तक्षेप करेगी तो यह भारी जोखिम भरा कदम होगा। आप सम्मेद शिखरजी के बारे में जो पुस्तक प्रकाशित कर रहे वह निश्चय ही प्रशंसनीय और अनुकरणीय प्रयास है। हमारी हार्दिक शुभ कामनाएं आपके साथ हैं। तखतगढ़(पाली, राज.) -अरिहन्तसिद्ध सूरीश्वर ता. 6 जुलाई 1998 **** आचार्य श्री वीरेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. श्री महातीर्थ सम्मेद शिखर के संबंध में पुस्तक प्रकाशित करने का आपका सद्प्रयत्न सराहनीय है। थासन देव उन्हें सबुद्धि दें। आपका प्रयास सफल हो, यही शुभकामना है। मुम्बई (महाराष्ट्र) -वीरेन्द्र सूरीश्वर ता. 20 जुलाई 1998 **** Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" पंन्यास श्री कीर्तिचन्द्र विजयजी म.सा. अनादिकालीन जैन संस्कृति को जो गौरव-गरिमा प्राप्त है उसके प्रतीक हैं-मन्दिर, मूर्ति और तीर्थ । सच बात तो यह है कि जैन संस्कृति को विकसित करने एवं प्राणवान बनाये रखने में मन्दिर, मूर्ति और तीर्थों का उल्लेखनीय स्थान होने के साथ एक प्रकार से ये सजीव आधार भी है। जैन मन्दिर, मूर्ति और तीर्थ की पवित्रता एवं सुरक्षा को बनाये रखने की पहली और अन्तिम जिम्मेदारी है समूचे जैन समाज की । काश ! हम इसे अनुभव कर पायें । सरकारी हस्तक्षेप से इन्हें दूर रखकर ही हम इनकी पवित्रता और सुरक्षा का अपना दायित्व और धर्म निभा पायेंगे। समय की प्रबल मांग है कि हम सब को मिलकर ऐसा प्रयास करना चाहिए कि सरकारी हस्तक्षेप किसी भी कीमत पर कहीं भी पांव नहीं पसार पाये, तभी हम सही अर्थों में जैन कहलाने के अधिकारी हैं। बहुत ही पीड़ा का विषय है कि छोटे-मोटे तीर्थों के साथ महान् ऐतिहासिक एवं विश्व प्रसिद्ध तीर्थ सम्मेद शिखरजी के प्रबन्ध में मात्र हिस्सेदारी प्राप्त करने के लालच में उलटे-सीधे रास्तों से नित्य नये झगड़ें, आँख मीच कर खड़े किये जा रहे हैं और भ्रमित प्रचार एवं प्रभाव के सहारे अपने पक्ष को वजनदार बनाने का प्रयास करना धर्म एवं समाज के साथ विश्वासघात करना है और विश्वासघात से बड़ा कोई पाप नहीं है। हमें यह जानकर खुशी हुई कि प्रबुद्ध विचारक और सुयश प्राप्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 23 अनुभवी पत्रकार श्री मोहनराजजी भण्डारी सम्मेद शिखरजी के तथाकथित विवाद और भ्रान्तियों के निवारण हेतु “सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?' शीर्षक पुस्तक लिख रहे हैं। उक्त पुस्तक के सम्पादकीय की प्रतिलिपि ध्यान से देखी और लगा कि सभी को सही स्थिति समझने-सोचने में तथा सरकार को न्याय करने-कराने में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी, ऐसा हमारा अपना विश्वास है। यदि तत्काल इस पुस्तक का गुजराती भाषा में अनुवाद हो सके तो अधिक उपयुक्त होगा। वैसे यह पुस्तक तो बहुत पहिले ही प्रकाशित हो जानी चाहिए थी। हार्दिक मंगल कामनाओं के साथनगपुरा तीर्थ -कीर्तिचन्द्र विजय ता. 15 जून 1998 **** पंन्यास श्री भुवन सुन्दर विजयजी म.सा. अपने तीर्थ स्थानों की पवित्रता और सुरक्षा की रक्षा करना समूचे जैन समाज का प्रथम और अनिवार्य धर्म है जो लोग इस धर्म का पालन नहीं करते-करते उन्हें अपने को जैन कहलाने का कोई अधिकार नहीं है। समय की चुनौती को स्वीकार कर हमें भगवान महावीर के युग की ओर लौटना पड़ेगा। ___जैन धर्म आज जिन चुनौतियों के बीच से गुजर रहा है उनका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" प्रबल ताकाजा है कि समूचा जैन समाज संगठित हो । लेकिन खेद और आश्चर्य है कि जैन समाज को विघटन की ओर ढकेलने में कोई लज्जा और शर्म महसूस नहीं की जा रही है। तीर्थों के प्रबन्ध में हक प्राप्त करने का दुःखद दौर चल रहा है और वह भी गहरे भ्रामक प्रचार और राजनीतिक प्रभाव के सहारे, जो अत्यन्त निन्दनीय है। सम्मेद शिखरजी जैसे पवित्र और विश्व-विख्यात तीर्थ के प्रबन्ध में हिस्सेदारी प्राप्त करने के लिए उलटे-सीधे रास्तों से सरकारी हस्तक्षेप को आमंत्रित करना अथवा उसका समर्थन करना तीर्थों की पवित्रता और सुरक्षा को नष्ट करने जैसा महापाप है जिससे हमें हर हालत में बचना चाहिए। ____“सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?'' पुस्तक के आलेख की प्रतिलिपी देखकर प्रसन्नता हुई कि अनुभवी और प्रबुद्ध पत्रकार श्री मोहनराजजी भण्डारी ने अपनी इस पुस्तक में समूचे जैन समाज को सम्मेद शिखरजी के तथाकथित विवाद से परिचित कराने के साथ ही अनुचित रूप से हक प्राप्त करने की मलिन और लालची मनोवृत्ति को धर्म एवं समाज के लिए घातक बतलाया है जो सर्वथा सत्य है। -भुवनसुन्दर विजय ता. 10 जून 1998 सूरत **** पंन्यास श्री जयन्त विजयजी म.सा. सम्मेद शिखर-विवाद निश्चय ही जैन समाज को विघटन की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 5 ओर धकेलने की पृष्ठ भूमि तैयार कर रहा है। ऐसी स्थिति में जैन समाज के प्रबुद्ध लोगों को सम्प्रदाय की भावना से ऊपर उठ कर गम्भीरता से चिन्तन-मनन करना बहुत ही आवश्यक हो गया है। हमें यह जानकर अच्छी अनुभूति हुई कि प्रसिद्ध समाजसेवी एवं अनुभवी पत्रकार, जो 50 वर्षों से पत्रकार-जगत एवं समाज में सुविख्यात हैं, श्री मोहनराज भण्डारी "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?' शीर्षक पुस्तक लिख रहे हैं। पुस्तक के मुख्य लेख की पाण्डु लिपी देखी और बहुत अच्छी लगी। आशा है कि यह पुस्तक समूचे जैन समाज को सम्प्रदाय की भावना से ऊपर उठकर सोचने-समझने की प्रेरणा देगी। यदि इस पुस्तक का गुजराती और अंग्रेजी भाषा में अनुवाद हो सके तो समाज के हित में होगा । पुस्तक का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार हो यही हमारी मंगल कामना है। हम चाहेंगे कि केन्द्रीय सरकार पुस्तक में उल्लेखित सत्य और तथ्यों पर गम्भीरता से विचार कर ही कोई कदम उठायें। ढोल (उदयपुर) -जयन्त विजय ता. 2 जून 1998 **** श्री विक्रमसेन विजयजी म.सा. सुविख्यात पूजनीय तीर्थस्थल सम्मेद शिखरजी के तथाकथित विवाद के बारे में “सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?'' पुस्तक निकाल कर आप सेवा का बड़ा कार्य कर रहे हैं जो अनुमोदनीय है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?'' आशा है कि आपका यह सप्रयत्न समूचे जैन समाज को जागृत कर सही दिशा में चलने की प्ररेणा देगा जिससे तीर्थस्थल की पवित्रता और गौरव बरकरार रह सके। सरकारी हस्तक्षेप को आमंत्रित करना या अपने स्वार्थ हेतु उसका समर्थन करना पाप ही नहीं, महापाप का कार्य है। कोल्हापुर (एम.एस.) -विक्रमसेन विजय ता. 23 जून 1998 * * * * साध्वी सुमंगलाश्रीजी म.सा. “सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?' के लेखक, प्रसिद्ध पत्रकार एवं समाजसेवी श्री मोहनराजजी भण्डारी, यद्यपि मेरे व्यक्तिगत सम्पर्क में तो नहीं आये लेकिन इनके बारे में समाचारपत्रों एवं इनके द्वारा लिखित अथवा सम्पादित पुस्तकों की थोड़ी बहुत जानकारी अवश्य है। मैंने अपने हाल के सोजत (राज.) प्रवास के समय भण्डारीजी द्वारा सम्पादित पुस्तक "आओ जीवन सफल बनायें'' पुस्तक देखी, बहुत अच्छी लगी और मैंने पुस्तक की 10-15 प्रतियां भी मंगवाई। निष्पक्ष एवं सुलझे हुए व्यक्ति जब किसी तथाकथित विवादास्पद विषय पर कलम चलाते हैं तो निश्चय ही वास्तविक स्थिति से परिचित होने का अच्छा अवसर उपलब्ध होता है। “सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?' पुस्तक की सामग्री को बहुत ही ध्यान से देखी और पाया कि हम सभी को सम्मेद-शिखर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" 44 के तथाकथित विवाद से परिचित होने का सुअवसर मिलेगा और हम सभी धर्म एवं अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक होंगे। सुश्रावक भण्डारीजी के इस कथन से मैं पूरी तरह सहमत हूँ कि तीर्थ स्थानों के मामले में सरकारी हस्तक्षेप का स्वागत - समर्थन करना, समाज एवं धर्म के प्रति अन्याय करना है । हमारी तो प्रभु से यही हार्दिक प्रार्थना है कि सभी को सद्बुद्धि प्राप्त हो जिससे पवित्र और महान् तीर्थों में सरकारी हस्तक्षेप को घुसने का अवसर न मिले । भण्डारीजी ने जिस परिश्रम के साथ अत्यन्त अल्प समय में यह पुस्तक तैयार की है उसके लिए निश्चय ही वे हम सब की ओर से बधाई के पात्र हैं। मैं उन्हें इस शुभ कार्य के लिए हृदय से धर्मलाभ देना चाहूंगी | अजमेर-प्रवास ता. 7 जून 1998 27 ॥ जैन धर्म की जय हो ॥ **** - साध्वी सुमंगला Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" • यद्यपि मैं भारत से दूर ही नहीं बहुत दूर हूँ लेकिन अपनी मातृभूमि की गतिविधियां, विशेषकर जैन समाज की हलचल जानने के लिए सदा उत्सुक रहती भारत के महान तीर्थस्थल सम्मेत शिखरजी के तथाकथित विवाद को लेकर जैन समाज में जो उग्र हलचल चल रही है वह निश्चय ही भारी पीड़ाजनक है। ऐसे पवित्र स्थान को व्यक्तिगत स्वार्थ में उलझा कर विवादस्पद स्थिति उत्पन्न करना अक्षम्य अपराध है। वर्षों से चली आ रही परम्परा, को हक प्राप्त करने के लालच में छिन्न-भिन्न कर सरकार को दखल देने का अवसर उपलब्ध कराना किसी भी दृष्टि से न तो उपयुक्त है और न समाज व धर्म के हित में है। मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि इस पवित्र तीर्थस्थल के बारे में फैलाये गये और फैलाये जा रहे भ्रामक प्रचार के निवारण हेतु लोकप्रिय और अनुभवी पत्रकार आदरणीय मोहनराजजी साहब भण्डारी "सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा" शीर्षक पुस्तक लिख रहे हैं। यदि उक्त पुस्तक का सभी भाषाओं में, विशेषकर गुजराती और अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी प्रकाशित किया जाये तो बहुत ही सामयिक और उपयोगी होगा। हार्दिक शुभ कामनाओं के साथकोफू (टोकियो, जापान) -श्रीमती मीनू अथोक जैन ता. 9 अगस्त (शहीद दिवस) 1998 एम.कॉम. **** • हमें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि सुप्रसिद्ध समाजसेवी एवं चिन्तनशील अनुभवी वरिष्ठ पत्रकार श्री मोहनराजजी भण्डारी, सम्मेद शिखरजी महातीर्थ से सम्बन्धित तथाकथित विवाद के बारे में सत्यों और तथ्यों के साथ जो पुस्तक लिख रहें, वह स्तुत्य एवं अनुमोदनीय है। मैं ऐसा अनुभव करता हूँ कि तथाकथित विवाद से सम्बन्धित जानकारी श्वेताम्बर समाज के बहुत ही कम लोगों को है। ऐसी स्थिति में पुस्तक बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी। इस पुस्तक का व्यापक प्रचार-प्रसार पर्युषण महापर्व के अवसर पर अवश्य किया जावे। आपके उपरोक्त अति आवश्यक व सामयिक प्रयास की सफलता हेतु मैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" शासनदेव से प्रार्थना करता हूँ। उज्जैन (म.प्र.) -कान्तिलाल संघवी ता. 6 जून 1998 ट्रस्टी-श्री रिषभदेव छगनीराम पेढ़ी पारमार्थिक ट्रस्ट, उज्जैन एवं प्रादेशिक प्रतिनिधि-सेठ आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी (अहमदाबाद) **** • जैन समाज के एक सम्प्रदाय के तथाकथित कुछ नेता सम्मेद शिखर-विवाद को लेकर कानूनी कार्यवाही के अन्तर्गत मनवांछित लाभ प्राप्त नहीं कर पाये तो उन्होंने अपने राजनीतिक प्रभाव के सहारे प्रबन्ध में हक पाने का जो अशोभनीय और निन्दनीय खेल,खेला है वह महान तीर्थस्थल की पवित्रता और जैन धर्म के नाम पर एक कलंक है। न्याय और ईमानदारी का जोरदार तकाजा है कि सत्यों और तथ्यों पर पर्दा डालकर भ्रामक प्रचार के सहारे जैन-समाज में विघटन के बीज न बोये जायें। प्रस्तुत पुस्तक "सम्मेद शिखर-विवद क्यों और कैसा?" जहाँ निष्पक्ष एवं प्रबुद्ध लोगों को नये सिरे से सोचने की प्रेरणा देगी वहां आम पाठक को वस्तुस्थिति से परिचित कराने में निश्चय ही वजनदार रूप से सहायक होगी। चैत्रई -बी.सुभाषचन्द भण्डारी ता. 7 जुलाई 98 इनकम टैक्स प्रेक्टीशनर * * * * •आदरणीय जी.आर. भण्डारी के पत्र से यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि प्रसिद्ध समाजसेवी एवं सुपरिचित अनुभवी वरिष्ठ पत्रकार श्री मोहनराज सा. भण्डारी सम्मेद शिखर के तथाकथित विवाद के सम्बन्ध में "सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा?" नामक पुस्तक लिख रहे हैं। वास्तव में यह कार्य बहुत ही आवश्यक होने के साथ प्रशंसनीय एवं सराहनीय है। मैं हृदय से इसकी अनुमोदना करता हूँ। यह प्रकाशन तो बहुत पहिले हो जाना चाहिए था। मेरी जानकारी के अनुसार दिगम्बर समाज के कुछ तथाकथित नेताओं के पास 35 श्वेताम्बर तीर्थों की लिस्ट है और उलटे-सीधे रास्तों से प्रबन्ध में हिस्सेदारी प्राप्त करने की योजना है। उन्हें जहां-जहाँ इसमें सफलता नहीं मिले तो वे उन तीर्थों पर सरकारी नियंत्रण को आमंत्रित करने का प्लान बना रहे हैं। इनका एक ही उद्देश्य है कि तीर्थ, श्वेताम्बरों के पास नहीं रहें। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" मेरा तो यही नम्र निवेदन है कि श्वेताम्बर समाज, समाज के अग्रणीय महानुभाव एवं समूचा पूजनीय साधु-साध्वीजी वर्ग स्थिति की गम्भीरता को गहराई से समझें और संगठित रूप से जागरूक हों । प्रचार के मामलें में हमारी कमजोरी का विपक्ष जिस तरह लाभ उठा रहा है उसे हर कीमत पर रोका जाना चाहिए। जयपुर (राजस्थान ) - राजेन्द्रकुमार श्रीमाल ता. 2 जून 1998 30 **** • मुझे यह जानकर निश्चय ही प्रसन्नता हुई कि सम्मेद शिखर के तथाकथित विवाद के बारे में गम्भीर विचारक एवं अनुभवी- लोकप्रिय पत्रकार श्री मोहनराजजी भण्डारी से पुस्तक लिखवाकर प्रकाशित करने का निर्णय लिया है जो महत्वपूर्ण एवं सामयिक है। निश्चय ही यह कदम वासुपूज्य स्वामी मन्दिर समिति की गहरी सूझ-बूझ का अनुकरणीय प्रतीक है और जिसके लिए समिति हार्दिक बधाई की पात्र है। महान् तीर्थ सम्मेद शिखर के तथाकथित विवाद को लेकर जो भ्रान्तियां उत्पन्न की गई है और की जा रही हैं वह बहुत ही पीड़ाजनक और जैन धर्म एवं समाज की एकता को भारी आघात पहुँचाने वाली है। मुझे विश्वास है कि " सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?" प्रस्तुत पुस्तक, भ्रान्तियों के निवारण में एक मील का पत्थर प्रमाणित होगी । अन्तर की शुभ कामनाओं के साथ अजमेर ता. 21 जून 1998 - - प्रकाश भण्डारी आर. ई. एस. जिला शिक्षा अधिकारी **** " सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?" पुस्तक प्रकाशन के निर्णय के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । श्री अशोक जैन ने सम्मेद शिखरजी के तथाकथित विवाद को जबर्दस्ती प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाकर उल्टे-सीधे प्रचार द्वारा इतिहास को बदलने की कुचेष्टाएं की हैं और करते जा रहे हैं। अतः सत्य को उजागर करने में कोई कमी नहीं रखी जानी चाहिए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 31 __ आशा है कि उक्त पुस्तक सत्य को उजागर कर झूठ को बेनकाब करेगी। हार्दिक शुभकामनाओं के साथथाने (महाराष्ट्र) -जे. के. संघवी ता. 22 जून 1998 सम्पादक- "थाश्वत धर्म' **** • श्री जी.आर. भण्डारी (संयोजक-श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मन्दिर, अजमेर) द्वारा ज्ञात हुआ कि आप श्री सम्मेद शिखरजी तीर्थ के सन्दर्भ में एक प्रमाणिक पुस्तक लिख रहे हैं। आपका प्रयास सफल हो, यही शुभ कामना है। पुस्तक झूठे प्रचार का समाधान कराने में सहायक बने, इसी भावना-कामना के साथ पुन:-पुन: मंगल कामना। आगरा -वीरेन्द्रकुमार लोढ़ा ता. 31 मई 1998 **** सम्पादक "श्वेताम्बर जैन" साताहिक •सम्मेद शिखरजी तीर्थ के तथाकथित विवाद को लेकर श्री मोहनराजजी साहब भण्डारी सत्यों और तथ्यों के साथ पुस्तक लिख कर भ्रान्तियों का निवारण करने का जो सामयिक और आवश्यक प्रयास कर रहे हैं, वह प्रशंसनीय है। विश्वास है कि उक्त पुस्तक के माध्यम से सारी स्थिति स्पष्ट होगी एवं अपने पक्ष को सभी समझ पायेंगे। पुस्तक में कटु सत्य को भी सौम्य एवं सरलता से दर्शाया जायेगा। जयपुर -उत्तमचंद सचेती ता. 15 जून 1998 पूर्व अध्यक्ष-जवाहर नगर जैन संघ, जयपुर **** .श्री सम्मेद शिखरजी के तथाकथित विवाद के बारे में सत्य क्या है तथा झूठ का सहारा लेने वालों को सही सलाह देने हेतु "सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा?" शीर्षक पुस्तक प्रकाशित करने के आपके निर्णय का हम स्वागत करते हैं। राजनीति में धर्म का प्रवेश जहाँ देश को उन्नति की ओर ले जाता है वहां धर्म में राजनीति का प्रवेश देश और समाज को डूबो देता है। सम्मेद शिखर की भांति केशरियाजी तीर्थ को विवादित बनाकर प्रबन्ध में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 ". " सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा ? ' हिस्सेदारी प्राप्त करने का चक्र चल रहा है तथा चर्चा है कि राजस्थान के देवस्थान मंत्री श्री कटारियाजी तीर्थ के प्रबन्ध हेतु एक कमेटी का गठन कर रहे हैं जिसमें 3 सदस्य दिगम्बर और 3 सदस्य श्वेताम्बर समाज के होंगे। जब कि इस तीर्थ के प्रबन्ध की किसी भी कमेटी में आज तक दिगम्बर समाज का कोई सदस्य नहीं रहा है। उदयपुर (राज.) - के. एल. जैन ता. 2 जून 1998 मंत्री- राजस्थान जैन संघ **** " सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?" नामक पुस्तक प्रकाशन के निश्चय के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभ कामनाएं । इस सद्कार्य में भाई श्री मोहनराज सा. का हार्दिक योगदान सदा स्मरणीय रहेगा। शासन- देव आपको समग्र शक्ति दे। अजमेर ता. 10 जून 1998 - अमरचन्द लुणिया ( सदस्य कार्यकारिणी श्री जैन श्वे. मूर्ति पूजक जैन तीर्थ रक्षा ट्रस्ट, उत्तरी क्षेत्र, दिल्ली) **** Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 33 हर मामले में सरकारी हस्तक्षेप को आमंत्रित करना या हस्तक्षेप का समर्थन करना एक ऐसी भूल या गलती है जिसके परिणाम आगे जाकर बहुत गम्भीर एवं दुःखद भुगतने पड़ते हैं। विशेष कर धार्मिक मामले में तो जब-तब सरकारी हस्तक्षेप को आमंत्रित किया गया या उसका समर्थन किया गया परिणाम बहुत ही घातक निकले। सरकारों की अपनी एक मजबूरी है, वे आजकल धन-बल और वोटों की राजनीति के ऐसे चक्कर में घूम रही है जहां से सहज ही न्याय पाने की आशा करना स्वयं को धोखा देना है। देश के प्रमुख और विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक तीर्थ स्थल सम्मेद शिखरजी (बिहार) का मामला भी सरकारी चपेट में उल्टे-सीधे रास्तों और चोर-दरवाजे से पहुँचाया गया है। इस ऐतिहासिक तीर्थ स्थल पर पिछले लगभग 400 वर्षों से श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ का स्वामित्व है और श्री मूर्तिपूजक संघ की अ.भा. संस्था श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी पिछले कई वर्षों से इसका प्रबंध और संचालन करती आ रही ___ इधर लगभग 100 वर्षों से जैन समाज का ही एक अंग दिगम्बर समाज इस ऐतिहासिक तीर्थ स्थल के प्रबन्ध में हिस्सेदारी प्राप्त करने हेतु लड़ाई के हर उल्टे-सुल्टे रास्तों को आँखमीच कर अपनाता जा रहा है जिससे दिगम्बर और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 44 " सम्मेद शिखर - विवाद क्यों और कैसा?" श्वेताम्बर समाज में आपसी मतभेद उत्तरोत्तर गम्भीर रूप से बढ़ते जा रहे हैं । सब से पहिले दिगम्बर समाज ने अदालत का दरवाजा खट-खटाया लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। इसके बाद एक-एक कर कई अदालतों के दरवाजें खट-खटाने के बावजूद भी जब दिगम्बर समाज को वांछित सफलता नहीं मिली तो उसने बिहार सरकार को सम्मेद शिखर के प्रबन्ध को लेकर शिकायतें प्रस्तुत की और राजनैतिक दबाव का सहारा लेने का अन्तिम शस्त्र चलाया। - स्मरण रहे कि सम्मेद शिखरजी तीर्थ सन् 1593 में बादशाह अकबर ने श्वेताम्बर जैनाचार्य श्री हीर सूरीश्वरजी म.सा. को अर्पण कर पट्टा करवा दिया था। इसके पश्चात् अहमदशाह ने सन् 1760 में पुनः श्वेताम्बर जैनों का मालिकी हक और अधिकारों की स्वीकृति दी । सन् 1918 में ब्रिटिश सरकार ने भी रजिस्टर्ड कन्वेयन्स द्वारा श्वेताम्बर जैनों के पट्टे की मंजूरी प्रदान की। सन् 1933 में फिर ब्रिटिश प्रिवी कॉउन्सिल ने श्वेताम्बर जैनों के हक और मालिकी को स्वीकार किया । संख्या बद्ध लिटिगेशन के बाद प्रिवी कॉउन्सिल ने अपना अन्तिम फैसला 12.5.1933 को देकर इसकी पुष्टि की कि इस तीर्थ के स्वामित्व, प्रबन्ध, शासन एवं कब्जे का सम्पूर्ण हक श्वेताम्बरों को है तथा दिगम्बरों को केवल पूजा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 35 का अधिकार है। इतना ही नहीं, स्वयं बिहार सरकारद्वारा भीसन् 1965 में श्वेताम्बर जैनों की मालिकी और अधिकारों को स्वीकार किया गया।इनसबमुंह बोलते सत्य एवंतथ्यों के अतिरिक्त सन् 1990 में बिहार की जिला कोर्ट ने भी श्वेताम्बरों के अधिकार को स्वीकार किया। फिर भी कानूनी लड़ाई को यदि दिगम्बर समाज आगे बढ़ाता है तो यह उसके सोचने एवं समझने की बात है लेकिन अब तक की कानूनी लड़ाई के परिणामों से हताश होकर दिगम्बर समाज के नेता श्री अशोक जैन राजनैतिक दबाव का जो सहारा ले रहे हैं वह समूचे समाज और जैन धर्म को जाने-अनजाने ऐसी क्षति पहुँचाने का दूषित कार्य है जिसे इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा। राजनैतिक दबाव तो एक ऐसी गेन्द है जो कभी किसी एक ही हाथ में नहीं रहती है। समय और परिस्थितियां, इस गेन्द से बाजी जीतने का मनसूबा बनाने वालों को क्षणिक लाभ दिलवा भी गुजरे तो कोई आश्चर्य नहीं, लेकिन यह कटु सत्य है कि ऐसा लाभ न तो स्थायी हो सकता है और न इसके परिणाम आगे जाकर समूचे समाज के हित में हो सकते हैं। सरकारी हस्तक्षेप को आमंत्रित करना या समर्थन करने से सरकार के होसले जब तेजी से आगे बढ़ते हैं तब वे न दिगम्बर देखते हैं और न श्वेताम्बर। दोनों सम्प्रदायों के पवित्र और धर्मिक स्थलों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" घुसपैठ का मार्ग सहज ही सरकार के हाथ लग जाता है। यदि कोई व्यक्ति इर्ष्या या द्वेषवश पड़ौसी का घर लूटने या लुटवाने में किसी भी प्रकार से सहायक होने की भूल या गलती करता है तो उसे बड़ा आनन्द आता है लेकिन जब स्वयं का घर लुटता है तब उसे होश आता है कि पडौसी का घर लूटने या लुटवाने की भूल या गलती के दुष्परिणाम कितने भयंकर एवं पीड़ाजनक होते हैं। यही स्थिति ऐतिहासिक और समूचे जैन समाज के पवित्र और पूजनीय तीर्थ स्थल सम्मेत शिखरजी की बना दी गई है। आज सम्मेद शिखरजी के प्रबन्ध में सरकार हस्तक्षेप करने जा रही है तो कल निश्चय ही सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक तीर्थ स्थल श्री महावीरजी एवं श्रवण बेलगोला में भी सरकार बहुत आसानी से उनके प्रबन्ध में हस्तक्षेप कर गुजरेगी। जिसे निश्चय ही वजनदार चुनौती अकेला दिगम्बर समाज हर्गिज नहीं दे पायेगा। इस कटु सत्य को नजर-अन्दाज कर सम्मेद शिखर के प्रबन्ध में दिगम्बर समाज भागीदारी पाने के लालच में बिहार सरकार द्वारा सम्मेद शिखर में किये जा रहे हस्तक्षेप में सहायक या एक पक्ष बनने की जो भूमिका निभा रहा है वह स्वयं उसके लिए भी आगे जाकर आत्म-हत्या जैसा कदम साबित होगी। अब हम सम्मेद शिखरजी के प्रबन्ध के प्रति दिगम्बर समाज की मुख्य शिकायतों और प्रबन्ध में हिस्सेदारी पाने के प्रश्न को लेकर कुछ स्पष्ट और बेलाग चर्चा करना चाहेंगे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 44 अ. भा. दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष साहू अशोककुमार देश के एक बड़े उद्योगपति घराने से होने के साथ ही एक बड़े समाचार-पत्र समूह - बैनेट कॉलमेन कम्पनी (जो 'टाइम्स ऑफ इण्डिया" व " नव भारत टाइम्स" आदि का प्रकाशन करती है) के मालिक हैं और जिनका थोड़ा बहुत राजनैतिक प्रभाव भी है, ऐसे व्यक्तित्व से जैन धर्म और जैन तीर्थों को जहाँ सहयोग व संरक्षण मिलना चाहिए वहां ऐसा व्यक्तित्व स्वयं विवादों में एक पक्ष बन जाये तो इससे अधिक दुःखद स्थिति और क्या हो सकती है ? यह विवेक और गहराई से स्वयं अशोकजी के सोचने की बात है । 37 श्री अशोकजी सम्मेद शिखर के प्रबन्ध में अनुचित रूप से दिगम्बर समाज को हिस्सेदारी दिलाने का नेतृत्व करने की बजाय समूचे जैन समाज में एकता की मजबूत दीवार बनाने में अपने श्रम, साधन और व्यक्तित्व का ईमानदारी से उपयोग करते तो निश्चय ही उनकी कीर्ति बढ़ती लेकिन उन्होंने स्वयं से सम्बन्धित दिगम्बर समाज को विवाद के उस चौराहे पर ला खड़ा कर दिया है जहां से समूची जैन समाज की रही-सही एकता भी सदा के लिए समाप्त होने का स्पष्ट संकेत दे रही है । जहाँ तक सम्मेद शिखरजी के मालिकाना हक का प्रश्न है, दिगम्बर समाज का कहना है कि बादशाह अकबर और अहमदशाह के फरमान नकली हैं तो सब से पहिले इस बात का फैसला होना चाहिए कि यह फरमान नकली हैं या असली । जरा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 "सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" विवेक और धैर्य से सोचने की आवश्यकता है कि ऐसे जाली काम, आज की तरह पुराने जमाने में होना कतई सम्भव नहीं थे और फिर इन फरमानों को ब्रिटिश सरकार और स्वतंत्र भारत की सरकारों के साथ अदालतों की कार्यवाहियों में मान्यता कैसे मिलती ? फिर भी दिगम्बर समाज को मुंह बोलते तथ्यों और सत्यों पर भरोसा नहीं है तो उन्हें प्रबन्ध में भागीदारी पाने की लालसा के वशीभूत होकर अन्य उल्टे-सुल्टे रास्ते अपनाने की बजाय इन फरमानों को अदालतों के जरिये नकली साबित करने की ही पहल और परिश्रम करना था । अगर दिगम्बर समाज इस में सफल हो जाता है तो प्रबन्ध में भागीदारी प्राप्त करने का रास्ता स्वयं ही उनका सहयोगी बन जायेगा । · जहाँ तक सम्मेद शिखर पर अपर्याप्त सुविधाओं की शिकायत का प्रश्न है इसका जिम्मेदार स्वयं दिगम्बर समाज है । जब-तब सम्मेत शिखर में आवश्यक सुविधाओं को जुटाने का प्रयत्न किया गया दिगम्बर समाज ने अदालत के दरवाजें खटखटा कर स्टे आर्डर ले लिया। सम्मेद शिखर पर पावदान (सीढ़ियां ) बनाने के मामले तक में दिगम्बर समाज ने स्टे आर्डर लिया लेकिन उच्चतम न्यायालय के फैसले से 3.3.90 के स्टे आर्डर के हट जाने के पश्चात् वहाँ सीढ़ियां बनाने का निर्माणकार्य प्रारम्भ हो सका और दस लाख की लागत से, अधिकतर कार्य कभी का पूरा हो चुका है। इस निर्माण कार्य को लेकर भी दिगम्बर समाज ने प्रबन्धकों के विरूद्ध अवमान अनादर की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" याचिका नं. 224-94 दायर की है। ऐसी स्थिति में दिगम्बर समाज द्वारा अपर्याप्त सुविधाओं की शिकायत करना कहाँ तक और कैसे न्याय संगत कहा जा सकता है ? सच बात तो यह है कि दिगम्बर समाज किसी भी तरह केवल प्रबन्ध में भागीदारी चाहता है लेकिन प्रबन्ध में भागीदारी प्राप्त करने के लिए उल्टेसुल्टे रास्ते अपनाने से मनोवांछित सफलता भला कैसे प्राप्त होगी? इस ऐतिहासिक तीर्थ का संक्षिप्त परिचय और प्रबन्ध से सम्बन्धित कुछ तथ्यों का विवरण श्री ललित नाहटा द्वारा प्रस्तुत हम यहाँ ज्यों का त्यों दे रहे हैं जो समूचे जैन समाज को सही दिशा में सोचने की प्रेरणा देगा - तीर्थ परिचय "तीर्थाधिराज श्री सम्मेत शिखर जी (पारसनाथ), मधुबन, बिहार श्री सम्मेतशिखर तीर्थ तीर्थाधिराज ० श्री थामलिया पार्श्वनाथ भगवान, थ्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग ९० से.मी., जल मन्दिर (श्वेताम्बर मन्दिर)। तीर्थ स्थल ० मधुबन के पास समुद्र की सतह से ४४७९ फुट ऊंचे सम्मेतशिखर पहाड़ पर जिसे पार्श्वनाथ हिल भी कहते हैं। प्राचीनता ० यह सर्वोपरि तीर्थ सम्मेतशैल, सम्मैताचल, सम्मेतागिरी, सम्मेतथिखरि, समिदिगिरी आदि नामों से भी संबोधित किया जाता था। वर्तमान में यह क्षेत्र सम्मेतशिखर व Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" पारसनाथ पहाड़ के नाम से जाना जाता है । वर्तमान चौबीसी के बीस तीर्थंकर इस पावन भूमि में तपश्चर्या करते हुए अनेक मुनियों के साथ मोक्ष सिधारे हैं। पूर्व चौबीसियों के कई तीर्थंकर भी इस पावन भूमि से मोक्ष सिधारे हैं, ऐसी अनुश्रुति है । यह परम्परागत मान्यता है कि तीर्थंकरों के निर्वाण स्थलों पर सौधर्मेन्द्र ने प्रतिमाएँ स्थापित की थीं। बीच के कई काल तक के इतिहास का पता नहीं । लगभग दूसरी शताब्दी में विद्यासिद्ध आचार्य श्री पादलिप्तसूरिजी आकाशगामिनी विद्या द्वारा यहां यात्रार्थ आया करते थे, ऐसा उल्लेख है । उसी भांति प्रभावक आचार्य श्री बप्पभट्टसूरिजी भी अपनी आकाशगामिनी विद्या द्वारा यात्रार्थ आते थे । विक्रम की नवमीं शताब्दी में आचार्य श्री प्रद्युम्नसूरिजी सात बार यहां यात्रार्थ आये व उपदेश देकर जीर्णोद्धार का कार्य करवाया था । तेरहवीं सदी में आचार्य देवेन्द्रसूरिजी द्वारा रचित वन्दारुवृति में यहां के जिनालयों व प्रतिमाओं का उल्लेख है। कुंभारियाजी तीर्थ में स्थित एक शिलालेख में श्री शरणदेव के पुत्र वीरचन्द द्वारा अपने भाई, पुत्र व पौत्रों आदि परिवार के साथ आचार्य श्री परमानन्दसूरिजी के हाथों सं. १३४५ में यहां प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख है । 40 चम्पानगरी के निकटवर्ती अकबरपुर गांव के महाराजा मानसिंहजी के मंत्री श्री नानू द्वारा यहां मन्दिरों के निर्माण करवाने का उल्लेख सं. १६५९ में भट्टारक ज्ञानकीर्तिजी द्वारा रचित 'यशोधर चरित' में है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 41 सं. १६७० में आगरा निवासी ओसवाल श्रेष्ठी श्री कुंवरपाल व सोनपाल लोढा संघ सहित यहां यात्रार्थ आये जब जिनालयों का उद्धार करवाने का उल्लेख श्री जयकीर्तिजी ने “सम्मेतशिखर रास'' में किया है। आज तक अनेकों आचार्य मुनिगण व श्रावक, श्राविकाएँ एवं संघ यहां यात्रार्थ पधारे हैं । मुनिवरों ने सम्मेतशिखर तीर्थयात्रा, जैन तीर्थमाला, पूर्व देश तीर्थमाला आदि अनेकों साहित्यिक कृतियों का सृजन किया है जो आज भी गत सदियों की याद दिलाते हैं। वि. सं. १६४९ में बादशाह अकबर ने जगद्गुरु आचार्य श्री हीरविजयसूरिजी को श्री सम्मेतशिखर क्षेत्र भेंट देकर विज्ञप्ति जाहिर की थी । कहा जाता है कि उक्त फरमान पत्र की मूल प्रति अहमदाबाद में श्वेताम्बर जैन श्री संघ की प्रतिनिधि संस्था सेठ आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी में सुरक्षित है। वि.सं. १७४७ से १७६३ के दरमियान श्री सौभाग्यविजयजी, पं. जयविजयसागरजी, हंससोम-विजयगणिवर्य, विजयसागरजी आदि मुनिवरों ने तीर्थमालाएँ रची हैं जिनमें भी इस तीर्थ का विस्तार पूर्वक वर्णन है। सं. १७७० तक पहाड़ पर जाने के तीन रास्ते थे। पश्चिम से आने वाले यात्री पटना, नवाना व खडगदिहा होकर एवं दक्षिण-पूर्व की तरफ से आने वाले मानपुर, जैपुर, नावागढ़ पालगंज होकर व तीसरा मधुबन होकर आते थे। पं. जयविजयजी ने सत्रहवीं सदी में व पं. विजयसागरजी ने अठारवीं सदी में अपने यात्रा विवरण में कहा है कि यहां के लोग लंगोटी लगाते हैं। सिर पर कोई वस्त्र नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" रखते । सिर में गुच्छेदार बाल हैं। स्त्रियां कद रूपी भयभीत लगती हैं । उनके सिर पर वस्त्र रखने व अंग पर कांचलियां पहिनने की प्रथा नहीं है | कांचली पहिने देखने से उनको आश्चर्य होता है । भील लोग धनुष-बाण लिये घूमते हैं । जंगल में फल, फूल विभिन्न प्रकार की औषधियां, जंगली जानवर व पानी के झरने हैं। कुछ तीर्थ मालाओं में बताया गया है कि झरिया गांव में रघुनाथसिंह राजा, राज्य करता है। उनका दीवान सोमदास है । जो भी यात्री यात्रार्थ आता है उससे आठ आना कर लिया जाता है। एक और वर्णन है कि कतरास के राजा श्री कृष्णसिंह भी कर लेते हैं । रघुनाथपुर गांवसे 4 मील जाने पर पहाड़ का चढ़ाव आता है। यह भी कहा जाता है कि पालगंज यहां की तलेटी थी । यात्रीगणों को प्रथम पालगंज जाकर वहां के राजा से मिलना पड़ता था। राजा के सिपाही यात्रियों के साथ रहकर दर्शन करवाते थे। उस काल में पहाड़ पर क्या स्थिति थी उसका कोई खुला वर्णन नहीं मिल रहा है। वि.सं. १८०५ में मुर्थीदाबाद के सेठ महताबरायजी को दिल्ली के बादशाह अहमदशाह द्वारा उनके कार्य से प्रसन्न होकर जगत्सेठ की उपाधि से विभूषित करने व सं. १८०९ में मधुबन कोठी, जयपार नाला, जलहरी कुण्ड, पारसनाथ तलहटी का ३०१ बीघा 'पारसनाथ पहाड़'' उन्हें उपहार देने का उल्लेख है। वि.सं. १८१२ में बादशाह अबुअलीखान बहादुर ने पालगंजपारसनाथ पहाड़ को करमुक्त घोषित किया था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 43 इसी समय पहाड़ पर जलमन्दिर, मधुबन में सात मन्दिर, धर्मशाला व पहाड़ के क्षेत्रपाल श्री भोमियाजी का मन्दिर आदि बनवाये गये । इन मन्दिरों की भी इसी मुहूर्त में प्रतिष्ठा सम्पन्न होने का उल्लेख है। मन्दिर आदि का प्रबन्ध कार्यभार श्री श्वेताम्बर जैन संघ को सौंपा गया। इस प्रकार भाग्यवान जगत्सेठ श्री महताबचन्दजी की भावना सफल हुई। जगत्सेठ द्वारा किया गया यह महान कार्य जैन शासन में सदा अमर रहेगा। इस तीर्थ का यह इक्कीसवां जीर्णोद्धार माना जाता है। तदुपरान्त अनेक जैन संघ यात्रार्थ आने लगे। पहाड़ की चोटियों पर स्थित स्तूप, चबूतरे चिन्हिकायें मुक्त आकाश के नीचे आछादनहीन होने से भयंकर आँधी, वर्षा, गर्मी-सर्दी, व बन्दरों के थरारती कार्यों के कारण पुनः उद्धार की आवश्यकता हुई । अतः वि. सं. १९२५ से १९३३ के दरमियान उद्धार करवाकर विजयगच्छ के जिनशान्तिसागरसूरिजी, खरतरगच्छ के जिनहंससूरिजी व श्री जिनचन्द्रसूरिजी के अस्ते पुनः प्रतिष्ठा करवाई। यह बाईसवां उद्धार माना गया । इस उद्धार के समय भगवान आदिनाथ, श्री वासुपूज्य भगवान, श्री नेमिनाथ भगवान, श्री महावीर भगवान तथा शाश्वतः जिनेश्वरदेव श्री ऋषभानन, चन्द्रानन, वारिषेण व वर्धमानन की नई देरियों का निर्माण हुआ । मधुबन में भी कुछ नये जिनालय बने। यह पहाड़ जगत्सेठ को भेंट स्वरूप मिला हुआ होने पर भी जगत्सेठ द्वारा दुर्लक्ष्य हो जाने पर पालगंज राजा को दे दिया गया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" था। ई.सं. १९०५-१९१० के दरमियान पालगंज राजा को धन की आवश्यकता पड़ी। राजा ने पहाड़ बिक्री करने या रहन रखने की सोची उस पर कलकत्ता के रायबहादुर सेठ श्री बद्रीदास जौहरी मुकीम एवं मुर्थीदाबाद निवासी महाराज बहादुरसिंहजी दुगड़ ने राजा की यह मनोभावना जानकर अहमदाबाद के सेठ आणन्दजी कल्याणजी पेढ़ी को यह पहाड़ खरीदने के लिए प्रेरणा दी व सक्रिय सहयोग देने का आश्वासन दिया। श्री आणन्दजी कल्याणजी पेढ़ी ने खरीदने की व्यवस्था करके प्राचीन फरमान आदि देखे। सब अनुकूल पाने पर दिनांक ९.०३.१९१८ को रुपये दो लाख बयालीस हजार राजा को देकर यह पारसनाथ पहाड़ खरीदा गया जिससे पहाड़ पुनः जैन श्वेताम्बर संघ के अधीन आया। इस कार्य में इन महानुभावों का सहयोग सराहनीय है। उनकी प्रेरणा व सहयोग से ही यह कार्य सम्पन्न हो सका। वि.सं. १९८० में आगमोद्धारक पूज्य आचार्य श्री सागरानन्दसूरिजी यहां यात्रार्थ पधारे। तब उनकी इच्छा पुनः जीर्णोद्धार करवाने की हुई। उनके समुदाय की विदुषी बालब्रह्मचारिणी साध्वीजी श्री सुरप्रभाश्री जी के प्रयास से वि.सं. २०१२ में जीर्णोद्धार का कार्य प्रारम्भ होकर सं. २०१७ में पूर्ण हुआ। यह तेईसवां उद्धार था। वर्तमान काल में सम्मेतशिखर पहाड़ पर की ३१ देहरियां, जलमन्दिर, गंधर्व नाला की धर्मशाला, मधुबन की जैन श्वेताम्बर कोठी तथा भोमियाजी का मन्दिर व धर्मशालाओं की व्यवस्था श्री जैन श्वेताम्बर सोसाइटी की देखरेख में है । हाट का प्रबन्ध व मेले की पुल सेठ आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी के हाथ में है।'' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सम्मेद शिखर - विवाद क्यों और कैसा?" 44 45 इसी प्रकार श्री (ऑल इण्डिया) जैन श्वेताम्बर कॉन्फ्रेंस बम्बई के मानद् मंत्री राजकुमार जैन ने 9 मई 1994 को एक परिपत्र जारी करते हुए सम्मेद शिखरजी के तथाकथित विवाद पर विस्तृत प्रकाश डाला है जिसे हम यहाँ ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहे हैं — 66 'श्री सम्मेद शिखरजी समस्त जैन समाज के लिये एक पवित्रतम तीर्थ है, जहाँ हमारे 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकर निर्वाण को प्राप्त हुए हैं। परम्परा से इस तीर्थ का स्वामित्व, नियन्त्रण तथा कब्जा, श्वेताम्बर जैन समाज का रहा है। मुगल बादशाह अकबर ने पूरी छानबीन के उपरान्त, श्वेताम्बर समाज को इस हेतु फरमान सन् 1593 में दिया था। जो सनद अब तक हमारे पास सुरक्षित है | सन् 1760 में बादशाह अहमद शाह ने इसकी पुष्टि की थी। सन् 1918 में अंग्रेजी सरकार ने तथा 1933 में प्रिवी कॉउन्सिल, 1965 तथा 1990 में बिहार सरकार ने स्पष्ट रूप से श्वेताम्बर समाज के इस अधिकार, स्वामित्व तथा नियन्त्रण को विधिवत स्वीकार किया है । समस्त श्वेताम्बर समाज की प्रतिनिधि संस्था 'आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट' इसका संचालन कर रही है। आनन्दजी कल्याणजी किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है अपितु 'परम आनन्द' तथा 'सर्व कल्याण' का द्योतक है। यह ट्रस्ट 250 वर्ष पुराना है । समूचे भारत वर्ष से लगभग 130 प्रतिनिधि निर्वाचित होकर इस ट्रस्ट में नामांकित किये जाते हैं । तीर्थ स्थलों का उत्तम प्रबन्ध करने में आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट का शीर्ष स्थान है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" आप जानते हैं कि तीर्थाधिराज श्री सम्मेदशिखर के प्रश्न पर हमारे कुछ दिगम्बर भाइयों, विशेष रूप से साहु श्री अशोक जैन ने अनावश्यक एवं अनैतिक विवाद पैदा किया है । यह अति दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्होंने आपसी एवं समाज के अन्दरूनी विवादों को सुलझाने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री श्री लालूप्रसाद यादव की शरण ली है। अगर आप इस प्रस्तावित अध्यादेश के प्रस्तावों को देखें तो आप पायेंगे कि यह बहुत ही खतरनाक परम्परा की शुरुआत है और यह एक काला कानून सिद्ध होगा। दुर्भाग्य से यदि यह अध्यादेश लागू हो गया तो जैन समाज का अपने इस परम पावन तीर्थ पर से नियन्त्रण एवं स्वामित्व समाप्त ही हो जाएगा । भविष्य में बाकी तीर्थों (जैसे बाहुबलीजी, श्री महावीरजी इत्यादि) पर भी इसका दुरुपयोग होने का रास्ता खुल जायेगा | ____ हमें अपने दिगम्बर भाइयों को भी यह विनम रूप से बताना है कि दिगम्बर समाज के नेता (कल तक जो अपने को समस्त समाज का शीर्षस्थ नेता कहते थे) साहू अशोक जैन, अपने नेतृत्व को स्थापित करने के संकीर्ण और स्वार्थपूर्ण उद्देश्य के लिए किस प्रकार पूरे समाज के लिए कठिनाई पैदा कर रहे हैं। उनके धामक अभियान से इस पवित्र तीर्थ स्थान का भी वैसा ही हाल हो सकता है जैसा कि हमारे अन्य पुनीत तीर्थ "श्री केशरियानाथजी'' एवं 'मक्सीजी" का हुआ। अपने अनैतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए वे हर अवांछनीय साधन का उपयोग कर रहे हैं और अनेक प्रकार के झूठ एवं गलत तथ्यों का सहारा ले रहे हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" उदाहरण के लिए: 1. अपने समाचार पत्र 'नवभारत टाइम्स'' एवं ''टाइम्स ऑफ इण्डिया'' का दुरुपयोग करके वे निरन्तर यह धांति फैला रहे हैं कि प्रस्तावित अध्यादेश के अन्तर्गत गठित बोर्ड का अध्यक्ष जैन व्यक्ति होगा जबकि अध्यादेश में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। 2. बम्बई में आयोजित प्रेस कांफ्रेन्स में उन्होंने कहा कि सम्मेद शिखरजी पर आने वाले तीर्थ-यात्रियों में 75 प्रतिशत दिगम्बर हैं, (किस आधार पर, भगवान जाने) और कुछ दिन बाद दिल्ली में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि दिगम्बर तीर्थ यात्रियों की संख्या 90 प्रतिशत है | बम्बई से दिल्ली तक में कल्पना की उड़ान से उन्होंने 15 प्रतिशत वृद्धि कर दी। 3. "नवभारत टाइम्स'' और 'टाइम्स ऑफ इण्डिया'' में हमारे खिलाफ पक्षपात पूर्ण ढंग से लिखा जा रहा है। श्वेताम्बर समाज के पक्ष की जानकारी देश को नहीं दी जा रही है । बम्बई तथा दिल्ली में हमने जो प्रेस कांफ्रेंस की, उसमें इन समाचार-पत्रों के संवाददाता आए लेकिन उसके समाचार नहीं छापे। इतना ही नहीं, जो निष्पक्ष संस्थाएं हैं और इस प्रश्न पर भाईचारा, शांति एवं एकता बनाए रखने की अपीले कर रही हैं, उनके समाचारों को भी अपने समाचारपत्रों में वे स्थान नहीं दे रहे हैं। हमने इसके विरुद्ध अपनी आपत्ति प्रेस कॉउंसिल ऑफ इण्डिया में दर्ज कराई है। अनैतिकता की हद तो यह है कि 'नवभारत टाइम्स' तथा 'टाइम्स आफ इण्डिया'' इस सन्दर्भ में लगातार एक तरफा समाचार तोड़ मरोड़ कर बिना सन्दर्भ के और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" पक्षपात पूर्ण ढंग से छाप रहे हैं । एतद् हेतु अन्य महानुभाव तथा उनके व्यक्तित्व का प्रयोग किया जा रहा है । इसलिए हमारा निवेदन है कि पूरे पक्ष को समझने के लिए आप नवभारत टाइम्स'' और ''टाइम्स ऑफ इण्डिया'' पर विश्वास न करें। देश के अन्य समाचार पत्रों के माध्यम से सही वस्तुस्थिति की जानकारी लें। ___ 4. गत सप्ताह साहू श्री रमेशचन्द्र जैन ने सभी सांसदों को एक पत्र भेजा है जिसमें सफेद झूठ कहा गया है कि जैन समाज का 85 प्रतिशत वर्ग इस काले अध्यादेश का समर्थन कर रहा है । तथ्य तो यह है कि सारे देश में दिगम्बर भाइयों की संख्या जैनों की कुल संख्या की 30-35 प्रतिशत के लगभग है और पूरा दिगम्बर जैन समाज भी इसका समर्थन नहीं कर रहा है। मध्यप्रदेश में तो दिगम्बर समाज के एक वर्ग ने इस अध्यादेश के विरोध में अखबारों में वक्तव्य दिए हैं । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज एकजुट होकर इसका पुरजोर विरोध कर ही रहा है। तो ऐसे में 85 प्रतिशत की बात कहकर उन्होंने यह कहने का अनैतिक साहस किया है कि "स्थानकवासी'' और 'तेरापंथी'' इस काले अध्यादेश का समर्थन कर रहे हैं। हमारे इन दोनों प्रमुख समाज के भाइयों ने कभी इसका समर्थन नहीं किया तथा कभी इन तीर्थों पर अपनी दावेदारी नहीं जताई। श्वेताम्बर समाज में फूट डालने की कुटिल चाल वे चलना चाहते हैं, जिसमें वे सफल नहीं होंगे। जैन समाज का बहुमत इस अध्यादेश का विरोध कर रहा है और हमारी आपसे प्रार्थना है कि आप इस विषय में अपना प्रखर विरोध प्रकट करें ताकि वे झूठ के सहारे पवित्र तीर्थ की गरिमा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" को नष्ट न कर सकें। __5. श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन आचार्यों एवं मुनियों ने तो इसे अनुचित कहा ही है, युग प्रधान अणुव्रत अनुशास्ता पूज्य संत श्री तुलसीजी, आचार्य श्री महाप्रज्ञजी तथा प्रज्ञावान यशस्वी आचार्य श्री देवेन्द मुनिजी ने भी खुले शब्दों में सरकारी हस्तक्षेप की नीति पर अपनी असहमति जताई है। इस सन्दर्भ में आप अपने श्री संघ से तथा व्यक्तिगत रूप से भी विरोध पत्र महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री एवं बिहार सरकार के मुख्य मंत्री को भेजें। 6. हम यह भी कहना चाहते है कि :(क) प्राचीन समय से तथा कानूनी और व्यवहारिक दृष्टि से सम्पूर्ण श्री पार्श्वनाथ पर्वत का नियन्त्रण, प्रबंध और स्वामित्व श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज के पास रहा है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज की सामूहिक प्रतिनिधि संस्था श्री आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट इसका संचालन कर रही है। यह तथ्य बड़ा स्पष्ट है, गैर विवादित है और समय-समय पर बिहार सरकार एवं विभिन्न न्यायालयों द्वारा प्रमाणित है। बिहार का भूमि सुधार कानून 1953 धार्मिक तीर्थों पर लागू नहीं होता। इसलिए इस पवित्र तीर्थ का बिहार सरकार के पास स्वामित्व का प्रश्न ही नहीं है अपितु यह तीर्थ श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज के ही स्वामित्व एवं नियन्त्रण । में यथा पूर्व चल रहा है। (ख) दिगम्बर भाइयों को इस पवित्र तीर्थ पर पूजा का हक है और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" वे पूजा करते रहे हैं तथा कर रहे हैं और उनके इस अधिकार के प्रति हमारे मन में पूरा आदर है । परन्तु पूजा का अधिकार पाकर उन्हें सन्तोष नहीं है । वे तो अब बराबर का स्वामित्व एवं कन्ट्रोल चाहते हैं जो परम्परा अनुसार एवं विधि सम्मत नहीं है। (ग) हम इस परम पावन तीर्थ पर वे सभी विकास कार्य करने के लिए तैयार हैं जो आवश्यक हैं । इस सन्दर्भ में हम दिगम्बर भाइयों के सुझावों को आमन्त्रित करते हैं । प्रस्तावित विकास कार्य जैन सिद्धान्तों और परम्पराओं के विरुद्ध नहीं होने चाहिए।पहले जब कभी भी और जो कुछ भी विकास का काम हमने श्री सम्मेद शिखरजी पर शुरू किया, दिगम्बर भाई उसके विरुद्ध अदालत से स्टे आर्डर ले आए। स्वर्गीय साहू श्रेयांसप्रसादजी ने कहा कि आप विकास काम शुरू कर दीजिए, हम आपत्ति नहीं करेंगे। उनके कहने पर जब आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट ने काम करना शुरू कर दिया तो दिगम्बर भाइयों ने हमारे विरुद्ध अदालत की अवमानना का केस कर डाला। श्री सम्मेद शिखरजी का प्रश्न अदालत के सम्मुख है और इस सन्दर्भ में अदालत का जो भी निर्णय होगा उसे हम सादर स्वीकार करेंगे । साहू अशोकजी को भी अदालत के निर्णय का इंतजार और स्वागत करना चाहिए। अल्पसंख्यक धर्मानुयायों के धार्मिक मामलों में सरकार को हस्तक्षेप का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " सम्मेद शिखर - विवाद क्यों और कैसा?" 51 अधिकार नहीं है | जैनों के अधिकार भारतीय संविधान की धारा 25 एवं 26 के अन्तर्गत सुरक्षित हैं । अपितु 1991 में, अयोध्या के अतिरिक्त सभी अन्य धर्म स्थानों एवं उनके स्वामित्व में परिवर्तन का निषेध किया है । ऐसी स्थिति में बिहार सरकार श्री सम्मेत शिखर का अधिग्रहण कदापि नहीं कर सकती ।" इधर बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री लालूप्रसाद यादव एक अलग ही किस्म के राजनीतिक खिलाड़ी हैं। एक ओर बिहार प्राणलेऊ समस्याओं का भयानक जंगल बनता जा रहा है तथा दिन दहाड़े तीर्थ यात्री आये दिन लूट-खसोट के शिकार हो रहे हैं मगर उसकी लेशमात्र भी चिन्ता किये बिना सम्मेद शिखर के मामले में अपनी टांग घुसेड़ बैठे हैं । यदि हम भूलते नहीं हैं तो हमें स्मरण होना चाहिए कि दो सौ वर्षों का ब्रिटिश-शासन जहाँ हिन्दू-समाज को तोड़ने की जी तोड़ कोशिश करने के बावजूद भी सफल नहीं हो सका वहाँ जनता दल के तत्कालीन प्रधानमंत्री एवं सन्त सा प्रदर्शन करने वाले प्रथम नम्बर के स्वार्थी एवं चालाक श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपने छोटे से शासन काल को लम्बी और स्थायी जिन्दगी देने हेतु मण्डल का बण्डल फैंक कर हिन्दू-समाज में जहर के ऐसे बीज बोये हैं कि आज हिन्दू समाज दलित और सवर्ण के दो खेमों में प्रथम नम्बर के दुश्मनों की तरह बंट गया है और इसके दूरगामी परिणाम हिन्दू समाज को क्या भुगतने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" पड़ेंगे, इसकी कल्पना करने मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इसी तरह श्री विश्वनाथ प्रतापसिंह के प्रमुख और निकटतम साथीसहयोगी श्री लालूप्रसाद यादव ने सम्मेत शिखर के मामले में अपनी टांग घुसेड़ कर जो अध्यादेश प्रस्तुत किया है वह जैनसमाज को ऐसा छिन्न-भिन्न और प्रभावहीन कर देगा कि आज हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। सन् 1994 में लोकसभा में भी भू.पू. न्यायाधीश एवं भाजपा के सांसद श्री गुमानमल लोढ़ा ने बिहार में पारसनाथ सहित प्रसिद्ध जैन मन्दिर के तथाकथित अधिग्रहण की योजना पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त करते हुए केन्द्रीय सरकार से आग्रह किया कि वह देश भर के लगभग एक करोड़ जैनियों की धार्मिक भावनाओं का ख्याल करते हुए इसका अधिग्रहण न होने दें। इसी तरह सन् 1994 में राज्य सभा के शून्यकाल में कांग्रेस (इ) की श्रीमती चन्द्रिका अभिनन्दन जैन एवं श्री चिमन भाई पटेल ने कहा कि जैन धर्मावलम्बियों के इस पवित्र तीर्थ के अधिग्रहण सम्बन्धी बिहार सरकार के अध्यादेश से पूरा जैन समुदाय काफी चिन्तित है। उन्होंने केन्द्र सरकार से अपील की कि वह बिहार सरकार द्वारा केन्द्र सरकार के पास भेजे गये इस अध्यादेश पर अपनी सहमति न दें। इतना ही नहीं देश भर से श्वेताम्बर जैन समाज द्वारा बिहार के मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव द्वारा निम्नस्तर के राजनैतिक हथकण्डों के सहारे सम्मेद शिखर अधिग्रहण प्रस्ताव प्रस्तुत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ____www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" करने की कड़ी निन्दा करते हुए भारत के राष्ट्रपति महोदय तथा केन्द्रीय सरकार से इस अध्यादेश को तुरन्त निरस्त करने हेतु हजारों की संख्या में तार-पत्र और प्रस्ताव पास कर भिजवायें गये । 53 गत 31 मार्च 94 को तेरापंथी समाज की जैन महासभा दिल्ली ने एक प्रस्ताव पास कर कहा कि जैनों के सर्वाधिक पवित्र तीर्थ श्री सम्मेद शिखरजी (पारसनाथ हिल) के संदर्भ में बिहार सरकार द्वारा प्रस्तावित "बिहार श्री सम्मेद शिखरजी विनियमन अध्यादेश 1994 की तीव्र निन्दा करती है। जैन समाज, पूजनीय तीर्थों एवं धार्मिक तथा आन्तरिक मामलों में किसी भी प्रकार के प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सरकारी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा। अधिग्रहण का प्रस्तावित अधिनियम एक गलत शुरूआत है और इस परम्परा के दुरुपयोग की सम्भावना का खतरा अन्य जैन तीर्थों एवं पूजा स्थलों के लिए हमेशा बना रहेगा । प्रस्ताव में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, बिहार राज्य के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री महोदय से पुरजोर शब्दों में अपील की गई कि श्री सम्मेद शिखरजी के प्रति जैनों के भावात्मक एवं श्रद्धामय लगाव को देखते हुए प्रस्तावित अधिग्रहण अधिनियम (अध्यादेश) को तुरन्त रद्द करें।" स्थानकवासी समाज के आचार्य देवेन्द्र मुनिजी ने सम्मेत शिखरजी विवाद पर गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए गत 2 अप्रेल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" 94 को सेठ आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ श्रेणिक भाई कस्तूर भाई को एक पत्र में लिखा है " 'मैं सोचता हूँ एक ओर दिगम्बर परम्परा के महामनीषी आचार्य श्री विद्यानन्दजी महाराज जो एकता के सजग प्रहरी हैं, दूसरी ओर श्वेताम्बर समाज के मूर्धन्य मनीषी आचार्य श्री पद्मसागरजी महाराज, इन दोनों महामनीषियों को मिलकर जो प्रश्न समुपस्थित किया गया है उस पर चिन्तन कर यह निर्णय लेना चाहिए कि एकदूसरे के कार्य में हस्तक्षेप न किया जाये तभी समाज की एकता सुरक्षित रह सकेगी।” बिहार सरकार द्वारा प्रस्तावित अध्यादेश का दिगम्बर समाज की नेतागिरी करने वाले लोग जिस तरह की वकालात, स्वागत एवं प्रचार कर रहे हैं उससे स्वत: ही स्पष्ट होता है कि इस अध्यादेश को जारी करवाने में उन्होंने सभी प्रकार के हथकण्डों का प्रयोग किया है। 54 श्वेताम्बर समाज के मुख्य तीन सम्प्रदाय हैं— मन्दिर मार्गी साधु मार्गी व तेरापंथी समाज, इनको भी अध्यादेश में प्रबन्ध और मालिकाना हक दिलाने का प्रलोभन दिया गया है लेकिन साधुमार्गी व तेरापंथी समाज भी, सम्मेत शिखर विवाद में सरकारी हस्तक्षेप के सख्त विरूद्ध हैं। फिर भी श्रमण संस्कृति रक्षा समिति (दिगम्बर समाज) के संयोजक श्री सुभाष जैन द्वारा प्रसारित 27 मई 1994 के एक, छः पृष्ठीय लिफलेट में तथ्यों एवं सत्यों को जिस तरह तोड़-मरोड के प्रस्तुत किया गया है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 55 उसका बिन्दुवार उत्तर देने के बाद भी यह बहस कहीं रूकने वाली नहीं है क्योंकि कुतर्कों का क्या कभी कहीं अन्त हुआ है? झूठ एवं फरेब की भी हद होती है। उक्त लिफलेट में पता नहीं किस पिनक में दर्शाया गया है कि "समस्त जैन समाज इस अध्यादेश के प्रति बिहार सरकार का रिणी रहेगा"जब कि कुछ दिगम्बरों को छोड़ कर पूरा जैन श्वेताम्बर समाज (मन्दिरमार्गी, साधु-मार्गी एवं तेरापंथी) इस अध्यादेश की कड़ी निन्दा करते हुए इसे तुरन्त निरस्त करने की पुरजोर मांग कर रहा है। लोकसभा और राज्य सभा तक में इस अध्यादेश को निरस्त करने की आवाज उठी हैं। सुभाष जी! समस्त जैन समाज का अर्थ केवल दिगम्बर समाज के आप जैसे कुछ लोग तो नहीं होते हैं। यह तो आप भी खूब अच्छी तरह जानते हैं फिर सरकार एवं आम जनता को पग-पग पर भ्रमित कर आखिर उन्हें आप कहाँले जाना चाहते हैं? "संकटों की आन्धी में सम्मेत शिखरजी तीर्थ"पुस्तक में श्री संजय वोरा ने सत्यों एवं तथ्यों के सहारे वस्तुस्थिति को प्रस्तुत करते हुए पृष्ठ 39 पर लिखा है "अदालत के युद्ध द्वारा सम्मेत शिखर तीर्थ पर कब्जा जमाने में नाकाम हुए दिगम्बरों ने आखिरी उपाय के तौर पर बिहार की तत्कालीन लालूप्रसाद यादव की सरकार को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का खतरनाक खेल शुरू किया है। बिहार सरकार जो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" अध्यादेश जारी करना चाहती है उसका मसौदा पढ़ते ही इस बात का पता चल जाता है। बिहार की सरकार किस तरह से दिगम्बरों के मोहरे का किरदार निभा रही है इसका पता इस बात से चलता है कि सूचित अध्यादेश का पूरा मसौदा, प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री डी. के. जैन नामक दिगम्बर सदस्य ने तैयार किया है। ये महाथय सरकार के कानूनी सचिव भी रह चुके हैं। हालांकि दिगम्बर एक बात भूल रहे हैं कि अगर यह तीर्थ सरकार के अंकुश के तहत आ गया तो इसकी पवित्रता ही खत्म हो जायेगी और सम्प्रदाय को भी इसका मनोवांछित लाभ नहीं मिलेगा। बिहार सरकार के सूचित अध्यादेश की एक से ज्यादा दफाएं ऐसी हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि सम्मेत शिखरजी तीर्थ के संचालन में आखिरी सत्ता सरकार की ही होगी और यह तीर्थ जैनों का न रहकर एक भ्रष्टाचारी सरकारी महकमा बन जायेगा।" सम्मेद शिखर-विवाद के सम्बन्ध में "माया"ने अपने 15 मई 1994 के अंक में एक विस्तृत लेख प्रकाशित करने के साथ ही कुछ चित्र भी प्रकाशित किये थे। इसमें एक चित्र श्वेताम्बरों और दिगम्बरों की बैठक का है। इस चित्र के नीचे लिखा है-स्वयंभू पंचः श्वेताम्बरों और दिगम्बरों की बैठक में लालूप्रसाद यादव। उक्त लेख में 8 अप्रेल 94 की बैठक के दौरान बैनेट कॉलमेन कम्पनी (जो टाइम्स ऑफ इण्डिया-नवभारत टाइम्स आदि का प्रकाशन करती है) के मालिक साहू अशोककुमार जैन जो भारत वर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष हैं, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 57 दिगम्बर मतावलम्बी प्रतिनिधि के रूप में भाग लेते हुए कहा कि जब तक सम्मेत शिखरजी प्रबन्धन में दिगम्बरों को बराबर का प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा तब तक दिगम्बरों के वास्ते वहाँ पूजाअर्चना करना भी अब दुर्लभ है। श्री जैन ने आगे कहा कि लालू यादव ने प्रस्तावित अध्यादेश के माध्यम से सम्मेत शिखर जी प्रबन्धन बोर्ड में दिगम्बरों को भी बराबर का प्रतिनिधित्व देने का निर्णय लेकर सराहनीय काम किया है। उक्त लेख में स्पष्ट उल्लेख किया गया है ‘‘सम्मेत शिखरजी के प्रबन्धन में अपनी शिरकत के लिए जो दिगम्बर मतावलम्बी अरसे से परेशान थे, वे इस बात से काफी प्रसन्न हुए कि नये प्रस्तावित अध्यादेश में प्रबन्धन बोर्ड में उन्हें भी बराबरी का हक दिया गया है। श्वेताम्बरों को इसी बात का झटका लगा कि जो दिगम्बर मतावलम्बी उन्हें अदालत में मात नहीं दे सके वे लालू यादव के इस फैसले के माध्यम से उन्हें मात दे बैठे।'' कितनी बड़ी विडम्बना है कि कभी पुराने फरमानों को गैर जिम्मेदारी पूर्ण तरीके से फर्जी बतलाया जाता है, कभी यात्रियों की असुविधाओं को लेकर बवन्डर खड़ा किया जाता है तो कभी यह मांग की जाती है कि जब तक सम्मेत शिखरजी प्रबन्धन में दिगम्बरों को बराबर का प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा तब तक दिगम्बरों के वास्ते वहाँ पूजा - अर्चना करना भी मुश्किल है। उक्त तीनों ही मन-घडन्त बातें, फिर भी प्रबन्धन में हिस्सेदारी पाने का अधिकार नहीं दिलाती है। इसलिए अदालतों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 58 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" में असफल होने के बाद उलटे-सीधे रास्ते से लालू यादव को पटा कर जो खेल, खेला गया है वह समूचे जैन समाज के लिए गम्भीर रूप से विचारणीय विषय है। हम जानना चाहेंगे कि उक्त आरोपों और तर्कों के सहारे यदि दिगम्बरों के आधीन तीर्थों में श्वेताम्बर भी प्रबन्धन में हिस्सेदारी की मांग करें तो क्या दिगम्बरी इसे बर्दाश्त कर पायेंगे? और इस तरह की मांग नैतिक और कानूनी दृष्टि से भी बौद्धिक दिवालियेपन की सूचक होने के साथ ही समाज एवं धार्मिक क्षेत्र में जाने-अनजाने विनाश के बीज बोने वाली है। अशोकजी को यह नहीं भूलना चाहिए कि समाज को जोड़ने में वर्षों कड़ी मेहनत करनी पड़ती है लेकिन समाज को तोड़ने में कुछ क्षण ही पर्याप्त होते हैं । लालू यादव का सहारा लेकर मनोवांछित सफलता की प्रथम सीढ़ी जरूर पार कर ली गई है लेकिन अन्तिम सीढ़ी को पार करना लालू जैसा खेल नहीं है। लालू यादव अपनी करतूतों से जितने बदनाम हो गये हैं उतना शायद ही कोई राजनेता हुआ होगा। अब तक तो वे खतरों को खिलाया करते थे लेकिन कालचक्र ने पासा पलट कर रख दिया है एवं आज खतरें उन्हें खिला रहे हैं। सम्मेत शिखरजी के विवाद को लेकर "पंजाब केसरी" दैनिक ने भी एक विस्तृत लेख 16 मई 1994 को प्रकाशित किया था जिसका अन्तिम पैराग्राफ लालू यादव की कार्य-प्रणाली पर अच्छा प्रकाश डालता है जो निम्न प्रकार है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 59 "लालू यादव हालाकि धर्म निरपेक्षता का दम भरते हैं फिर भी वह जानबूझ कर धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं | गयाजी मन्दिर में उन्होंने जानबूझ कर विवाद खड़ा किया। अब वह अपने दलित प्रेम के कारण उसे नवबौद्धों को सौंपने की तैयारी कर रहे हैं। उनके वरदहस्त के कारण वहाँ पर बौद्धों ने हिन्दू मूर्तियों से तोड़फोड़ तक कर डाली। अपनी लीडरी की दुकान चमकाने के लिए वह हिन्दुओं और नवबौद्धों को भिड़ा रहे हैं। रांची के समीप जगन्नाथ के ऐतिहासिक मन्दिर को भी उन्होंने विवाद में उलझा दिया है। गत दिनों वैशाली में भगवान महावीर की जन्मस्थली पर भी कब्जा करने का प्रयास हुआ।लालू यादव ने हरिजन शंकराचार्य नियुक्त करने का शोथा छेड़ा। उनके ही एक कृपा पात्र पुलिस अधिकारी कुणाल किशोर ने पटना के हनुमान मन्दिर में हरिजन पुजारी नियुक्त किया है। लालू वोट बटोरने के लिए विभिन्न जातियों और सम्प्रदायों को आपस में लड़वा रहे है।' इसी तरह "राजस्थान पत्रिका" दैनिक ने अपने 10 जनवरी 1994 के अंक में जो सम्पादकीय लेख प्रकाशित किया है वह सम्मेत शिखरजी विवाद में लालू यादव की करतूत का अच्छा चित्रण प्रस्तुत करता है। सम्पादकीय लेख इस प्रकार है सम्मेद शिखर विवाद बिहार में प्रसिद्ध जैन तीर्थ सम्मेद शिखर के प्रबन्ध को लेकर श्वेताम्बर समुदाय और दिगम्बरों के बीच विवाद में बिहार सरकार • के इस फैसले ने आग में घी का काम किया है जिसमें प्रबन्ध की वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तन करने के लिए अध्यादेश जारी किया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" जाएगा। सरकार का इरादा है कि इस तीर्थस्थल के प्रबन्ध के लिए एक बोर्ड का गठन किया जाए जिसमें दोनों समुदायों के बराबर प्रतिनिधि हों और उसका अध्यक्ष कमिश्नर स्तर का कोई अधिकारी हो, जिसका सामान्यतया जैन दर्शन में विश्वास हो । दिगम्बर समाज का तर्क यह है कि इस तीर्थ की व्यवस्था बहुत खराब है और यात्रियों के लिए वर्तमान व्यवस्था, जिसका जिम्मा श्वेताम्बरों के हाथ में है, ठीक नहीं है । मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव का कहना है कि यह तीर्थ दोनों समुदायों का है और इसकी व्यवस्था दोनों समुदायों को मिलकर करनी चाहिए इसीलिए राज्य सरकार एक अध्यादेश जारी करके इसका अधिग्रहण करना चाहती है। इस सम्पूर्ण विवाद में एक बात उभर कर आती है कि सरकार क्या सभी धार्मिक स्थलों, तीर्थ स्थानों की व्यवस्था में अपना दखल करना चाहती है ? ऐसा नहीं है तो उसे सम्मेद शिखर जो श्वेताम्बर समुदाय का पवित्रतम तीर्थस्थल है और जिसकी व्यवस्था श्वेताम्बर समाज के ट्रस्ट के हाथ में है, में दखल करने की आवश्यकता क्यों पड़नी चाहिए ? किसी भी तीर्थ स्थान की व्यवस्था ठीक है या नहीं, यह मसला प्रबन्ध कर रहे ट्रस्ट और उस समुदाय के लोगों के ही तय करने की बात होनी चाहिए। यदि व्यवस्था के मुद्दे पर सरकारी दखल का रास्ता खोल दिया गया तो उसके काफी दूरगामी और गम्भीर परिणाम निकलेंगे। सम्मेद शिखर तीर्थ पर वेताम्बरों का अधिकार है या दिगम्बरों का अधिकार है, इसका फैसला अदालत कर सकती है, कार्यपालिका नहीं। सम्मेद शिखर तीर्थ का प्रबन्ध 1953 में आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट को सौंपा गया था Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 " सम्मेद शिखर - विवाद क्यों और कैसा?" 61 और तब से अब तक वहीं इसकी व्यवस्था देख रहा है। यदि प्रबन्ध में कोई खामी थी तो इस तीर्थस्थान के प्रबन्ध के सम्बन्ध में भारत सरकार, प्रिवी कॉउन्सिल व आजादी के बाद बिहार सरकार ने भी प्रबन्ध की जिम्मेदारी श्वेताम्बर समाज को क्यो सौंपी थी ? यदि आज उसके प्रबन्ध के सम्बन्ध में किसी को कोई शिकायत है तो उसके लिए अदालत का मार्ग खुला है। अदालत में यदि सम्मेद शिखर तीर्थ की मिल्कियत के सम्बन्ध में कोई सन्देह पैदा किया गया तो वह सन्देह भी तीर्थ के सरकार द्वारा अधिगृहीत करने से नहीं, अदालत के फैसले से ही निपटेगा | राज्य सरकार को इसमें दखल देने का कोई नैतिक अधिकार नहीं हो सकता । श्वेताम्बर और दिगम्बर समाज में इस मुद्दे को लेकर एक जबर्दस्त विवाद और टकराव की स्थिति है । यदि सरकार इसके प्रबन्ध में दिगम्बरों की भागीदारी करना चाहती है, उसके पीछे सरकार की नीयत क्या है ? केवल इस क्षेत्र का विकास तो नहीं हो सकता । जो ट्रस्ट आज इसका प्रबन्ध कर रहा है उसके साथ बातचीत करके इस दिशा में कदम उठाए जा सकते हैं, उसके लिए इसके प्रबन्ध में सरकारी दखल की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। श्वेताम्बर और दिगम्बर, जो दोनों ही जैन धर्म के अनुयायी हैं, उन्हें ही इस मुद्दे पर सोच-विचार करने देना चाहिए। वर्षों से जिस तीर्थ पर एक समुदाय का अधिकार है उसमें कोई बदलाव लाना भी हो तो यह बात दोनों समुदायों को मिलकर तय करनी है, सरकार को नहीं। कोई भी तीर्थ किसी वर्ग विशेष का नहीं हो सकता। भारत के सभी तीर्थ स्थलों में हर समुदाय के अनुयायी जाते रहे हैं और आज भी जाते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" हैं | राजस्थान के ऋषभदेव व महावीरजी में भी अजैन लोग बड़ी निष्ठा और आस्था से जाते हैं और उनके आने जाने पर प्रबन्धकों की ओर से कोई पाबन्दी नहीं है। वैष्णव तीर्थस्थलों की भी यही स्थिति है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, रामेश्वरम् कोई भी वैष्णव तीर्थ ऐसा नहीं है, जिसमें जैनियों के जाने पर प्रतिबन्ध हो । ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री का यह कथन बेमतलब है कि सम्मेद शिखर सम्पूर्ण जैन समाज का है। सम्मेद शिखर की यात्रा, अजैन भी करते आए हैं, और आज भी करते हैं । मिल्कियत के मुद्दे को प्रबन्ध की तथाकथित खामियों के साथ जोड़ने से ही यह विवाद अधिक उग्र हुआ है। लालूप्रसाद यादव के अब तक के व्यवहार से ऐसा भ्रम पैदा होता है कि उनका झुकाव एक पक्ष की ओर है। किसी भी मुख्यमंत्री को ऐसी धारणा पैदा नहीं होने देनी चाहिए। यदि इस तीर्थ की मिल्कियत पर कोई विवाद है तो इसका फैसला तो अदालत ही करेगी, जिसे सभी पक्षों को मान्य करना होगा। ऐतिहासिक दस्तावेज, सरकार के साथ हुए करारों के आधार पर ही फैसला हो सकता है । केवल प्रबन्ध में खामियों के आधार पर किसी भी धर्म के अनुयायियों की भावनाओं को आघात पहुंचाना न केवल अनुचित है, बल्कि यह विवाद को उग्र बनाने वाला साबित होगा। बिहार सरकार ने अभी कोई अध्यादेश जारी नहीं किया है। केवल अध्यादेश जारी करने का प्रस्ताव मात्र है लेकिन मुख्यमंत्री के बयानों ने शंकाएं पैदा कर दी हैं । दिगम्बर समाज को वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तन के लिए सरकार से मदद लेने की आवश्यकता नहीं होनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 63 चाहिए। यदि वे व्यवस्था में कोई सुधार चाहते हैं तो इसके प्रबन्धक ट्रस्ट से बातचीत करनी चाहिए। दोनों समुदाय एक ही धर्म के अनुयायी हैं, ऐसी स्थिति में ऐसे धार्मिक आस्था के मुद्दों को अदालत में घसीटना या राजनीतिक सत्ता का दखल किसी के हित में नहीं होगा, इस सच्चाई को समझना चाहिए। केवल प्रबन्ध में खामियों की आड़ में ऐसे पवित्र तीर्थस्थल को विवादास्पद बनाना किसी के हित में नहीं होगा। इस तीर्थस्थल की सम्पूर्ण जैन समाज में मान्यता है। आस्था के प्रश्न न तो अदालतें निपटा सकती हैं और न सरकारें । इस बुनियादी बात को समझ कर ही इस विवाद को हल किया जाना चाहिए।" प्रथम तो साहू अशोक जैन अपने ही समाचार-पत्रों में अपने को बार-बार जैन समाज का शीर्ष नेता छपवा कर सरकार और आम जनता को भ्रमित कर रहे हैं तथा किसी भी प्रमुख व्यक्ति के नाम से अपने पक्ष में मनघडन्त समाचार छपवा कर अपने साथ ही अपने अखबारों की विश्वसनीयता को भी खुले आम समाप्त कर रहे हैं। सम्मेद शिखर-विवाद को लेकर इनके अखबारों में जो कुछ छपा और छपता जा रहा है उसकी सारी पोल गत अप्रेल 1998 में "णमो तित्थस्स" में प्रकाशित निम्न लिखित दो उदाहरणों से स्वतः ही खुल जाती है ___ "साह अशोक जैन को उनके ही अखबार बार-बार जैन समाज का शीर्ष नेता लिख रहे हैं जबकि सचाई यह है कि साह अशोक जैन श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकवासी और तेरापंथ, इन चार घटकों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com 1OL Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" से केवल दिगम्बर समाज के नेता हैं तथा दिगम्बर समाज के दो धड़ों में से मात्र एक धड़े का नेतृत्व कर रहे हैं । उसमें भी 100 प्रतिशत लोग उन्हें अपना नेता माने, यह बात नहीं है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जैन संघ के 1/8 हिस्से से भी कम लोग उनके नेतृत्व को स्वीकार कर रहे हैं। इन्हीं के एक अखबार में 3 फरवरी 1998 के पृष्ठ 5 पर छपा कि श्वेताम्बर जैन समाज के सर्वोच्च ट्रस्ट आनन्दजी कल्याणजी के मानद सदस्य और खरतरगच्छ महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष उद्योगपति श्री हजारीमल बांठिया की ओर से प्रधानमंत्री श्री इन्द्रकुमार गुजराल को लिखे गए पत्र में उल्लेख किया है कि स्वतंत्रता की स्वर्ण जयन्ती वर्ष में भी भ्रष्ट नेता और अधिकारियों पर अकुंश नहीं लगा है किन्तु प्रतिष्ठित उद्योगपति साहू अशोक जैन को उत्पीड़ित किया जा रहा है जो सर्वत्र निन्दनीय है।'' जब कि श्री हजारीमलजी बांठिया से मैंने पूछा तो उन्होंने कहा कि मुझे तो इस विषय में कुछ पता भी नहीं एवं न ही मैंने ऐसा कोई पत्र दिया, मुझे तो खुद आश्चर्य हुआ, जब इस समाचार के तीनचार दिन बाद अपनी यात्रा से मैं हाथरस लौटा तो मेरे एक मित्र ने बताया कि अखबार में आपका वक्तव्य छपा है। सफेद झूठ लिखा जा रहा है। - ललित नाहटा। पग-पग पर भ्रामक प्रचार एवं धोखधड़ी कर प्रथम तो प्रबन्धन में हिस्सेदारी प्राप्त करना बहुत कठिन है। द्वितीय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 65 दिगम्बर समाज की सर्वश्रेष्ठ प्रवृत्ति-त्याग और उसकी उज्जवल छविको थोड़े से स्वार्थ के लिए कलंकित करना निश्चय ही स्वयं के पैरों पर कुल्हाडी मारने जैसा कृत्य है। हमें बहुत पीड़ा के साथ कहना पड़ रहा है कि सम्मेद शिखरजी के मामले में कितने निम्न स्तर तक धोखाधड़ी का खेल, खेला जा रहा है। 8 मई 1998 में "श्वेताम्बर जैन" में प्रकाशित सरकारी आदेश से हम सभी की आँखें खुल जानी चाहिए श्री ए.पी.सिंह उपायुक्त गिरीडीह (बिहार) ने एक पत्र 17 अप्रेल 1998 को महामंत्री श्री दिगम्बर जैन सम्मेदाचल विकास कमेटी मधुबन, शिखरजी गिरीडीह को लिखा है जो निम्न प्रकार ____विषय-अभूतपूर्व पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव सम्मेदशिखर के सम्बन्ध में। उपर्युक्त विषय के सम्बन्ध में आपके पत्रांक ५/९८-९९ दिनांक ११.४.९८ द्वारा मधुबन अवस्थित श्री दिगम्बर जैन सम्मेदाचल विकास कमेटी द्वारा पंचकल्याणक पूजा कार्यक्रम आयोजित करने की सूचना दी गयी है, जिसके लिए विधि-व्यवस्था बनाये रखने हेतु अधोहस्ताक्षरी के पत्रांक १३०५/ गो. दिनांक १२.४.९८ द्वारा पत्र निर्गत किये गये हैं, लेकिन विशेष शाखा द्वारा प्राप्त सूचना के अनुसार आप लोगों के द्वारा अभूतपूर्व पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव दिनांक २५.४.९८ से १.५.९८ तक होने जा रहा है तथा यह विवादित स्थल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?'' चौपड़ा कुण्ड पर मनाये जाने की सूचना है । जबकि यह स्पष्ट हो चुका है कि चौपड़ा कुण्ड एक विवादित स्थल है एवं विभिन्त न्यायालयों में मामले लम्बित हैं तथा इसी के अनुरूप ही आप लोगों द्वारा पर्चा भी छपवाया गया है। ___ अतः उपरोक्त के क्रम में स्पष्ट करना है कि आप लोगों द्वारा जिला प्रशासन के साथ धोखाधड़ी एवं गलत तथ्यों को प्रेषित किया गया है तथा पर्चा इसके विपरीत छपवाकर धार्मिक उन्माद पैदा करने एवं विधि-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न की जा रही है । आप दो दिनों के अन्दर स्पष्ट करें कि धार्मिक उन्माद पैदा करने एवं विधि-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न करने के लिए क्यों नहीं आप लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की जाय। फिलहाल उक्त पूरे कार्यक्रम पर रोक लगायी जाती है । यह भी स्पष्ट करें कि क्या यह पर्चा माननीय उद्य न्यायालय द्वारा दिये गये अध्यतन आदेश तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जंगल क्षेत्र में गतिविधि पर रोक तथा धार्मिक स्थल को १९४७ की स्थिति में बने रहने के नियम के प्रतिकूल यह कार्यवाही नहीं है ? प्रतिलिपि आरक्षी अधीक्षक/वन प्रमण्डल पदाधिकारी/अनुमण्डल पदाधिकारी, गिरिडीह को सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित । अनुरोध है कि आप तीनों व्यक्तिगत रूप से उपरोक्त स्थिति को नियमानुसार समीक्षा कर लें एवं एक सुस्पष्ट प्रतिवेदन दें कि क्या उक्त कार्यक्रम आयोजित होने दिया जाय या नहीं या नियमानुकूल है या नहीं ? ___ प्रतिलिपि उप विकास आयुक्त/अपर समाहर्ता, गिरिडीह को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित। जयपुर की "मणिभद्र"वार्षिक स्मारिका 1997 में प्रमुख तीर्थसेवी श्री भगवानदास पालीवाल के प्रकाशित लेख को यहाँ ज्यों का त्यों प्रकाशित किया जा रहा है जो दिगम्बर-समाज के उद्भव और महान् तीर्थों को विवादास्पद बनाने के दूषित चक्र के साथ ही अदालतों के निर्णय की संक्षिप्त जानकारी से आम जनता, विशेष कर समूचे जैन समाज को सही एवं वास्तविक स्थिति से परिचित होने में मदद मिलेगी ''ये निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि किस तारीख संवत अथवा सन् में दिगम्बर समाज श्वेताम्बरों से अलग हुआ, लेकिन यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि भगवान महावीर के निर्वाण के 609 साल बाद दिगम्बर आमनाय का प्रादुर्भाव हुआ। पहले जैन समाज जैन संघ के नाम से ही जाना जाता था। वर्तमान काल की अवसर्पिणी काल में 24 तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक हुए जो वर्तमान काल के तीसरे एवं चौथे भाग से सम्बन्धित हैं। इस काल के पाँचवें काल के तीन साल साढ़े आठ महिने बाद इस समाज का प्रादुर्भाव माना जाता है। दिगम्बर समाज के सारे ही बड़े तीर्थ दक्षिण में हैं। इसका एक सबसे बड़ा कारण उनके भद्रबाहू स्वामी जो उज्जैनी में थे, वहाँ पर अकाल पड़ने से दक्षिण की ओर चले गये। उन्होंने वहाँ तीर्थ स्थापित किये। मूर्ति निर्माण एवं मान्यताओं में भेदःदिगम्बर समाज के श्वेताम्बर समाज से अलग होने के साथ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" ही मूर्ति निर्माण एवं उनकी मान्यताओं में भिन्नता आने लगी। इन भेदों की कठोरता के बारे में श्रीरतनमन्दीरगणी की किताब 'भोजा प्रबन्ध' जो संवत् 1537 में लिखी गई थी के अनुसार गिरनार पहाड़ को लेकर प्रारम्भ हुई। इसका धर्मसागरजी द्वारा लिखित पुस्तक ‘प्रवच्छा परीक्षा' (संवत् 1629) में उल्लेख है। यह विवाद एक महीने तक लगातार चालू रहा । अन्त में अम्बिका देवी ने प्रकट होकर निर्णय दिया कि जो लोग स्त्री को मोक्ष का अधिकारी मानते हों वही इस तीर्थक्षेत्र के अधिकारी हैं । इस पर दिगम्बर लोग पीछे हट गये। आगे से कोई झगड़ा न हो इसलिए आगे से भगवान की बनने वाली मूर्तियों में दिगम्बर लोग पुरूष लिंग का चिन्ह बनाने लगे एवं श्वेताम्बर मूर्तियां बैठी हुई, पैर के नीचे कन्दौरा और लंगोट के लिए सलवट के निशान बनने लगे। ये भेद पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य में चालू हुए। आमनाओं की मान्यताओं में मुख्य भेद निम्नानुसार प्रचलित ____ 1. दिगम्बर आमनाय वाले स्त्री को मोक्ष का अधिकारी नहीं मानते हैं जबकि श्वेताम्बर मानते हैं। 2. दिगम्बर 24 तीर्थंकरों में से 5 को अविवाहित मानते हैं जबकि श्वेताम्बर केवल 3 को ही मानते हैं। 3. दिगम्बर साधु हथेली पर, उसी स्थान पर तथा उसी समय आहार ग्रहण करते हैं। श्वेताम्बर साधु घर-घर से आहार लाकर अपने ठहरने की जगह आहार करते हैं। 4. दिगम्बर 5 पाण्डुओं की मुक्ति नहीं मानते हैं जबकि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " सम्मेद शिखर - विवाद क्यों और कैसा?" श्वेताम्बर मानते हैं । 69 5. दिगम्बर आमनाय में द्रोपदी को सोलह सतियों में नहीं मानते हैं जबकि श्वेताम्बर मानते हैं । 6. दिगम्बर में तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव प्रकृति की अन्य बातों से मुक्त हैं जबकि श्वेताम्बर उन्हें मुक्त नहीं मानते हैं। 7. दिगम्बर में केवली पृथ्वी से चार आंगुल ऊपर चलते हैं, श्वेताम्बर इसे नहीं मानते हैं । 8. दिगम्बर में इन्द्र सौ हैं जबकि श्वेताम्बर में ये 64 हैं । 9. दिगम्बर में भगवान ऋषभदेव के माता पिता जुड़वा नहीं हुए थे, श्वेताम्बर में जुड़वा हुए थे ऐसा मानते हैं । 10. भगवान ऋषभदेव ने 5 मुष्ठी लोच किया था, श्वेताम्बरों ने 4 मुष्ठी लोच ही माना है । 11. भगवान महावीर केवल ज्ञान प्राप्त होने के बाद बीमार नहीं हुए पर श्वेताम्बर ऐसा नहीं मानते हैं । 12. दिगम्बर आमनाय में जैन आगम या जैनसूत्र का अस्तित्व में होना नहीं मानते हैं, जबकि श्वेताम्बर मानते हैं । तीर्थों के विवाद इस तरह दिगम्बरों ने श्वेताम्बरों से अलग होने के बाद बड़े तीर्थों पर कब्जे के लिए अनाधिकृत चेष्टाएँ शुरू कर दी एवं उन्होंने अपने हिसाब से तर्क प्रस्तुत करने शुरू कर दिए । इसी श्रृंखला में राजगिरि, पावापुरी, चंवलेश्वर, अन्तरिक्षजी, कुम्भोज गिरि और अभी हाल पटना स्थित गुलजार बाग कमलद्रह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" तीर्थ पर भी दिगम्बर समाज ने अपना प्रभुत्व जमाने के लिए चेष्टा शुरू कर दी। इसके बाद जो मुख्य तीर्थों पर विवाद चल रहे हैं उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है : 1. सम्मेतशिखर तीर्थ का विवाद : इस तीर्थ की मालकी, संचालन एवं अधिकार बहुत पुराने समय से श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय और संघ के हाथ में था। अकबर बादशाह एवं प्रिवी कॉउन्सिल ने भी इन पर अपनी मन्जूरी दी थी। दिनांक 5.2.65 को हुए द्वि-पक्षीय करार के जरिये इस सारे तीर्थ पर श्री आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट के अधिकारों का समर्थन किया था जो बिहार सरकार के साथ हुआ था। सेठ आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी ट्रस्ट ने दिगम्बरों के विरूद्व 1967 में पहाड़ पर निर्माण को रोकने के लिए मुकदमा दायर किया। दिगम्बरों ने भी सन् 1968 में मुकदमा दायर किया। दोनों मुकदमों का फैसला 3 मार्च, 90 को हुआ। इस फैसले के विरूद्ध श्वेताम्बर, दिगम्बर और बिहार सरकार ने रांची हाईकोर्ट में अपील दायर की। इसका फैसला 1 जुलाई 1997 को हुआ जिसके अनुसार 5.2.65 के करार को रद्द कर दिया । सेठ आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट को व्यवसायी ट्रस्ट माना तथा पूरे पहाड़ को सरकार ने अपने हाथ में ले लिया । समेतशिखरजी की चोटी पर आधा मील के फैलाव में बने हुए मन्दिरों को सम्पूर्ण जैन समाज का घोषित कर दिया। इस आदेश के खिलाफ आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट ने डबल बैंच में अपील दायर कर यथास्थिति के आदेश प्राप्त कर लिये हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 71 2. केशरियाजी का विवादः मेवाड़ महाराणा द्वारा व्यवस्था के लिए गठित 8 सदस्यों की कमेटी की शिथिलता के कारण देवस्थान विभाग ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। इसके लिए 1962 में राजस्थान हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। 30.3.66 के निर्णय में यह मन्दिर श्वेताम्बर घोषित कर दिया। राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की जिसके अन्तर्गत यह मन्दिर जैन घोषित हुआ। 1981 में श्वेताम्बर समाज एवं 1983 में दिगम्बर समाज ने अपीलें की जिसके लिए 2.2.97 को निर्णय दिया कि सरकार इसके लिए कमेटी का गठन करें । उपरोक्त आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने डबल बैंच में तथा हिन्दुओं ने हिन्दु मन्दिर घोषित करने की अपील दायर कर दी। 3. प्रसिद्ध तीर्थ श्रीमहावीरजी का विवादः यह तीर्थ दिल्ली-बम्बई रेलमार्ग पर स्थित है तथा इसी नाम से स्टेशन है। सड़क मार्ग से भी विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है। मूलनायक भूगर्भ से निकले मल्लियागिरी रंग के अति चमत्कारी हैं। शुरू से ही हिन्डोन, जिला सवाईमाधोपुर, के श्वेताम्बर पल्लीवाल पंचायत के हाथ में इसकी व्यवस्था रही। इस मन्दिर का निर्माण भरतपुर राज के दीवान जोधराज ने कराया। विजयगच्छ के महानन्दसागर सूरिजी द्वारा संवत् 1862 में इस मूर्ति की प्रतिष्ठा हुई। दिगम्बर समाज द्वारा कालान्तर में अनाधिकृत चेष्टा की गई और इस पर भी कब्जा करने की कोशिश चालू हुई। श्वेताम्बर पल्लीवाल पंचायत, खासतौर से स्वर्गीय श्रीनारायणलालजी पल्लीवाल ने इसका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" प्रतिकार किया। सन् 1973 में श्री जैन श्वे. (मूर्तिपूजक) श्री महावीर जी तीर्थ रक्षा समिति का गठन एवं रजिस्ट्रेशन होकर इस कार्य में पूरे मनोयोग से जुट गई। इस केस में जैन-अजैन 18 व्यक्तियों के बयान दर्ज हो चुके थे। 1991 में भारत सरकार द्वारा रामजन्म भूमि, बाबरी मस्जिद विवाद के अन्तर्गत एक नया एक्ट धार्मिक स्थलों की स्थिति सम्बन्धी 15 अगस्त 1947 का पारित हुआ जिसके अन्तर्गत दिगम्बर समाज की दरख्वास्त माननीय न्यायालय ने मन्जूर कर ली। इस आदेश के खिलाफ दो अपीलें श्वेताम्बर समाज द्वारा हाईकोर्ट की जयपुर बैंच में प्रस्तुत की गई जो मन्जूर कर ली गई। दिगम्बर कमेटी मंदिर परिसर में कोई रद्दोबदल, तोड़फोड एवं मूर्तियों को नहीं हटा सके, इसके लिए यथास्थिति रखने, कमिश्नर मुकर्रर करने एवं विडियोग्राफी फिल्म बनवाने के लिए श्वेताम्बर समाज ने एक स्टे एप्लिकेशन राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बैंच में लगाई। दिनांक 1.7.97 को यह एप्लिकेशन मंजूर होकर दिनांक 3.7.97 को दोनों तरफ के वकीलों की मौजूदगी में वीडियोग्राफी करवा ली गई है। फाइनल बहस की तारीख 19.8.97 निश्चित की गयी है। तीर्थंकर स्वरूप जो तीर्थ हैं उनकी सेवाभक्ति और रक्षा करना तीर्थंकर के समान हैं जिनकी तन, मन, धन से रक्षा करनी चाहिए। जो भी महान् पुण्यशाली व्यक्ति, संस्थाएं ऐसे पुण्य कार्यों में लगी हुई हैं उनको सम्बल देना श्वेताम्बर समाज के हर संघ, संस्था और व्यक्ति का पूर्ण दायित्व एवं कर्तव्य है | समाज समय रहते जगेगा तो ही धर्म और तीर्थों की रक्षा होगी अन्यथा नये मंदिर बनते जावेंगे, पुराने तीर्थ छिनते जावेंगे।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" जैन मुनियों द्वारा अध्यादेश का विरोध 15 अप्रेल 1994 को माननीय राष्ट्रपतिजी एवं बिहार के राज्यपाल महोदय को उपाध्याय यशोभद्र विजयजी म.सा. आदि ठाणा 14(उपाध्याय यशोभद्र विजय, पंन्यास पद्मसेन विजयगणि, मुनि शोभन विजय, मुनि जिनहंस विजय, मुनि पुण्यसुंदर, मुनि रविकान्त विजय, मुनि राजपाल विजय, पंन्यास जयसोम विजय, मुनि भुवनसुन्दर विजय, मुनि गुणसुन्दर विजय, मुनि अनंतबोधि विजय, मुनि जिनकीर्ति विजय, मुनि संयमबोधि, मुनि पुण्यरत्न विजय एवं मुनि जयदर्शन विजय आदि) ने तथ्यों सहित सम्मेद शिखर के बारे में अहमदाबाद से जो पत्र लिखा वह निम्न प्रकार है ___ "विषय:- पारसनाथ हिल-धार्मिक आंतरिक विषय में सरकारी हस्तक्षेप बिना जरूरत। ___“बिहार राज्य के गिरीडीह जिले में “पारसनाथ हिल'' के नाम से प्रचलित सम्मेद शिखरजी तीर्थ-पहाड़ का संचालन, नियंत्रण, मलिकी एवं कब्जा भारत वर्ष की श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ की प्रतिनिधि संस्था श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी, अहमदाबाद के हस्ते है। इस संदर्भ में ऐतिहासिक विगत निम्न प्रकार से है परम्परा से सम्मेद शिखर पहाड़ का संचालन श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनों के हस्ते चला आ रहा है। मुगल बादशाह शहंशाह अकबर के समय से इस विषय के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" दस्तावेज तथा प्रमाणित सबूत आदि उक्त पेढ़ी के पास आज भी मौजूद हैं। इ.स. 1965 में एक इकरारनामें द्वारा बिहार राज्य सरकार ने इस पहाड़ के सम्बन्ध में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनों के सारे हक स्वीकार किये हैं। इ.स. 1990 में गिरीडीह (बिहार राज्य) की अदालत ने उक्त पहाड़ के विषय में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनों के सारे हकों को स्वीकार करते हुए ऐतिहासिक निर्णय दिया है। इ.स. 1993 में बिहार सरकार ने न्यायालय में ऐसी स्पष्टता करते हुए लिखित दस्तावेज द्वारा बयान किया है कि 'पारसनाथहिल'' का सम्पूर्ण नियंत्रण, मालिकी कब्जा एवं संचालन जो श्वेता. मू.पू. जैनों का स्थापित हुआ है इस में हमें बीच में नहीं आना है। दिगम्बर भाई-बहनों को उक्त तीर्थ में रही हुई 20 टूकों और श्री गौतम स्वामीजी की ढूंक में सिर्फ भक्ति करने (WORSHIP) का ही अधिकार है। हमें ज्ञात हुआ है कि हाल में बिहार सरकार एक अध्यादेश हुक्म जारी करने जा रही है जिसके मुताबिक समस्त तीर्थ पहाड़ का वहीवट मालिकी कब्जा श्वेता. मू.पू. जैनों से छीन कर सरकार अपनी ओर से नई 13 सदस्यों वाली कमेटी को सौंपना चाहती है । इस प्रकार पवित्र तीर्थ का वहीवट आदि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनों से, सरकार छीनना चाहती है। धार्मिक तीर्थों में हस्तक्षेप करना सरकार के लिए शोभनीय और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 75 उचित नहीं है । धार्मिक स्थानों का संचालन उन-उन धर्म के सिद्धान्तों के मुताबिक उन-उन धर्म के श्रद्धालु, आराधक वर्ग करें और उसमें सरकार सुसहायक बने, यही सरकार के लिये उचित और कर्तव्य है। आथा है आप उक्त अध्यादेश को पारित नहीं होने देंगे।' एस.एम.जे.तीर्थ रक्षा ट्रस्ट का परिपत्र सम्मेद शिखर तीर्थ के मामले में जो भ्रान्तियां उत्पन्न की जा रही हैं उनके निराकरण हेतु एस.एम. जे. तीर्थ रक्षा ट्रस्ट अहमदाबाद ने जो परिपत्र, नवीनतम जानकारी उपलब्ध कराने के लिए प्रसारित किया है वह निम्न प्रकार है श्री सम्मेद शिखरजी तीर्थ के बारे में सदस्यगणों द्वारा नवीनतम प्रगति की जानकारी चाही जाती रही है । सही वस्तुस्थिति बताने हेतु हम यहां नवीनतम प्रगति संबंधी कुछ तथ्य प्रस्तुत करते • जैसी कि आम धारणा है कि हम सम्मेद शिखरजी संबंधी समस्त मुकदमें हार चुके हैं, सही नहीं है। • एकल पीठ के निर्णय के विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय पटना की रांची बैंच में हमने अपील की है और वे सभी (अपीलस्) स्वीकार कर ली गई हैं। अपीलस् (हाईफिन) लिस्ट में लग चुकी हैं और शीघ्र ही उनकी सुनवाई हो कर निर्णय हो जायेगा। कमेटी निर्माण से संबंधित निर्णय के विरुद्ध हमने माननीय उद्यतम् न्यायालय में एक एस.एल.पी. दायर की थी किन्तु माननीय उद्यतम न्यायालय ने इन्टमिडिमेटरी स्टेज पर ही इस मामले में दखल देने से इन्कार कर दिया किन्तु माननीय उद्यतम न्यायालय ने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" माननीय उच्च न्यायालय को उच्च वरीयता पर अपीलस् का निर्णय करने हेतु निर्देशित किया है। फिर भी, यह हमारी मुख्य अपील को किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं करेगी । 76 जैन श्वेताम्बर सोसायटी कलकत्ता ने भी इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय में एक एस. पी. एल. दायर की भी परन्तु माननीय उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करने का पुनः निर्णय किया । जैसा कि आप जानते है कि माननीय रांची पीठ ने आदेश दिया था कि बिहार सरकार, अपीलस् के निर्णय होने तक एक कमेटी का निर्माण करे और उसकी मदद से तीर्थ की व्यवस्था करें । समय-समय पर हमारे द्वारा विभिन्न एतराज किये जाने एवं विभिन्न मुद्दे उठाये जाने पर और भी कई कारणों से आज दिनांक 25 अप्रेल 1998 तक उक्त कमेटी का निर्माण नहीं किया गया है । जैसा कि सभी जानते हैं कि दिगम्बरी लोगों ने चौपड़ा कुण्ड पर अवैध निर्माण कार्य किया था और वे तीन मूर्तियां प्राण प्रतिष्ठा करने हेतु 1983 में वहां ले गये थे। इस बारे में और भी कई कानूनीवाद लम्बित चल रहे हैं । दिगम्बरी लोगों ने चौपड़ा कुण्ड में दिनांक 22.4.98 से 2.5.98 तक पंचकल्याण महापूजा हेतु विशाल समारोह प्रस्तावित किया और उसका प्रचार-प्रसार भी जोरदार किया । हमारे कड़े विरोध करने के बावजूद दिगम्बर लोगों ने झूठे एवं www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" गलत तथ्य प्रस्तुत कर दिनांक 12.4.98 को कलेक्टर डैप्यूटी कमिश्नर से महापूजा करने हेतु एवं सुरक्षा आदि प्राप्त करने हेतु आदेश प्राप्त कर लिये। हमें तत्काल कार्यवाही करनी पड़ी, विस्तृत तथ्यात्मक प्रतिवेदन तैयार कर हमने अपना पक्ष कलेक्टर डैप्यूटी कमिश्नर गिरीडीह एवं संबंधित अधिकारियों को प्रस्तुत किया। आपको यह जानकारी देते हुए हमें प्रसन्नता है कि वस्तुस्थिति की जानकारी प्राप्त होने पर कलेक्टर डैप्यूटी कमिश्नर ने न केवल अपने 12.4.98 के आदेश को निरस्त ही किया वरन् दिनांक 17.4.98 को नये आदेश प्रसारित किये कि पर्वत पर दिगम्बर लोगों द्वारा प्रस्तावित महोत्सव को मनाने की इजाजत नहीं दी जायेगी। उन्होंने दिगम्बर लोगों को दो दिन में अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित किया कि क्यों नहीं उनके विरुद्ध धार्मिक तनाव उत्पन्न करने एवं कानून और व्यवस्था बिगाड़ने का अपराधिक मामला दर्ज कर उनके विरुद्ध कार्यवाही की जावे। • इन प्रयासों के बावजूद दिगम्बर लोगों ने भयंकर दबाव जारी रखा मगर अन्ततः अधिकारियों के अपने आदेश दिनांक 20.4.98 के द्वारा दिनांक 22.4.98 से 2.5.98 (प्राण प्रतिष्ठा करने की प्रस्तावित तिथि) तक पर्वत पर धारा 144 लागू करनी पड़ी। • दिगम्बर लोगों को सरकार को यह लिखित में परिवचन देना पड़ा कि चौपड़ा कुण्ड में कोई निर्माण कार्य नहीं किया जायेगा और न ही मूर्ति की स्थापना की जायेगी। यह सूचना हमें विश्वस्त सूत्रों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 78 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" से प्राप्त हुई है। __ • सम्भवतः अपीलस की सुनवाई माननीय उच्च न्यायालय द्वारा ग्रीष्मावकाश के पश्चात् की जायेगी । जाने-माने सुप्रसिद्ध वकील जैसे श्री सिद्धार्थशंकर राय एवं हमारे पटना के पुराने वकील श्री वसुदेव प्रसाद को भी वकीलों की सूची में जोड़ा गया है। अन्य कोई जानकारी चाहे तो कृपया हमें पत्र लिखें। भवदीयवास्ते एस.एम.जे.तीर्थ रक्षा ट्रस्ट शाना भाई टी. शाह कार्यकारी निदेशक कार्यालय-लाल भाई दलपत भाई वन्दा, पन्कोर नाका अहमदाबाद 380008 सम्मेद शिखर जी के बारे में गठित कमेटी सम्मेद शिखरजी तीर्थ के बारे में सेठ आनन्दजी कल्याण जी पेढ़ी द्वारा (बिना तारीख का) प्रसारित पत्र जो हमें 19 अगस्त 98 को प्राप्त हुआ वह निम्नानुसार है विषय :- सम्मेतशिखरजी तीर्थ के बारे में। श्री समेतशिखरजी तीर्थ के लिये चल रहे विवाद के सम्बन्ध में अवगत कराया जाता है कि बिहार राज्य की मान्य उच्चन्यायालय के मध्यवर्ती (इन्टिरियम) हकम में सचित किये अनसार ही कमिटी गठित की जानी थी, उसके बारे में बिहार सरकार ने श्री सम्मेतशिखरजी तीर्थ के आधे मील के क्षेत्र के संचालन, व्यवस्था आदि करने के लिये कमिटी नियुक्त कर दी है जिसमें निम्नानुसार सदस्य रहेंगेराज्य सरकार के प्रतिनिधिः1. आयुक्त एवं सचिव-राजस्व भूमि सुधारणा विभाग, बिहार-पटना 2. स्थानीय आयुक्त, बिहार सरकार-नई दिल्ली 3. औद्योगिक विकास आयुक्त, बिहार-पटना 4. निर्देशक, विमानन सहविशेषसचिव, बिहार-पटना 5. उपायुक्त, गिरिडीह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" श्वेताम्बर समाज के प्रतिनिधिः 6. श्री कमलसिंहजी रामपुरीया, कलकत्ता 7. श्री हरखचंदजी नाहटा, दिल्ली 8. श्री अशोकभाई गांधी, अहमदाबाद 9. श्री शनाभाई टी.शाह, मुंबई 10. श्री आर.एस.जैन, कलकत्ता (इस बीच श्री जैन का दुःखद अवसान हुआ है, उनके स्थान पर नियुक्ति करने की कार्यवाही चल रही है।) दिगंबर समाज के प्रतिनिधिः 11. श्री बसंतलाल दोशी, मुंबई 12. श्री डी.के.जैन, नोयडा 13. श्री महावीरप्रसाद शेठी, गिरिडीह 14. श्री विजयकुमार जैन, गिरिडीह 15. श्री कैलाशचंद जैन, पटना कमिटी अपने संचालन के नियम अपने आप बनायेगी। यह आपकी जानकारी के लिये है। (वही.ट्रस्टी) ( हमें यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि सभी कार्य जब धर्मानुसार अर्थात् सत्यो एवं असत्य का विचार करके करते हैं तभी हम प्रभु-कृपा के पात्र बनते हैं। ___ -मोहनराज भण्डारी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80 "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" सम्मेद शिखरजी पर मालिकाना हक मात्र श्वेताम्बर जैन समाज का ही है भारत के सम्राट अकबर ने श्री विजय हीरविजय सूरीश्वरजी महाराज को दिल्ली आने का निमंत्रण दिया। उस प्रार्थना के अनुसार वे दिल्ली पधारें और वार्तालाप के दौरान उन्होंने सम्राट अकबर से पारसनाथ हिल के लिये श्वेताम्बर जैन समाज के पक्ष में एक फरमान जारी करने की प्रार्थना की। सम्राट अकबर ने श्वेताम्बरों के पक्ष में एक फरमान सोलहवीं शताब्दी में जारी किया। वह एक मिलकीयता का दस्तावेज है। कानून के अनुसार जो दस्तावेज तीस वर्ष पुराना हो और यदि वह उचित माध्यम द्वारा पेश किया जावे तो साक्ष्य के तौर पर मान्य होता है और साक्ष्य में बिना किसी सबूत के स्वीकार किया जाता है। इसके अतिरिक्त राजा रामबहादुर सिंह और साथी व नगर सेठ कस्तूरभाई मनुभाई और साथियों की अपील संख्या 125 सन् 1930 में प्रिवी कौंसिल के निर्णय के अनुसार पारसनाथ हिल के बाबत पालगांग एस्टेट द्वारा दिनांक 9 मार्च, 1918 को श्वेताम्बरों के पक्ष में बेचान नामा कानून की दृष्टि में वैध है और सम्बन्धित पक्ष उसको मानने के लिये बाध्य है। रेस्ज्यूडिकेटा के सिद्धान्त के अनुसार यह प्रश्न फिर नहीं उठाया जा सकता है। जो निर्णय दिया गया है वह अन्तिम निर्णय है, इसका कोई विरोध मान्य नहीं हो सकता है। पूजा-स्थान (स्पेशल प्रोवीजन) अधिनियम 1991 के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 81 अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी वर्ग के पूजा-स्थान या उसके भाग को किसी अन्य वर्ग के पूजा-स्थान या उसके भाग में नहीं बदल सकता है। पूजा-स्थान की धार्मिक पद्धति जो 15 अगस्त 1947 को लागू थी वह पद्धति ही आगे चालू रहेगी। सम्राट अकबर ने जब फरमान जारी किया तब दिगम्बर धर्मावलम्बियों ने कभी भी कोई एतराज नहीं किया। जिसका तात्पर्य यह है कि फरमान में जो स्थिति है वह उनको मान्य थी। अब वे एस्टोपल कानून के कारण न्यायालय के दरवाजे नहीं खटखटा सकते। शिखरजी की पहाड़ियों पर दिगम्बरी समाज की कोई मूर्ति नहीं है इसलिये वहां पर उनके अधिकारों की मांग करना सत्य से परे है। आनंदजी कल्याणजी कोई व्यापारिक संस्था नहीं है यह एक चेरीटेबल संस्था है जो कि पब्लिक चेरीटेबल ट्रस्ट एक्ट के तहत पंजीकृत (रजिस्टर्ड) है। इसका एक चेरीटेबल कमिश्नर है। इस संस्था के मेमोरेन्डम एवं आर्टीकल इस विचार की पुष्टि करते हैं। इसलिये अब यह स्पष्ट है कि इस विषय पर अब किसी बहस और तर्क करने की कोई आवश्यकता नहीं है सिवाय इसके कि यह स्वीकार कर लिया जावे कि पारसनाथ हिल्स (सम्मेद शिखरजी) श्वेताम्बर जैनियों का ही है। -मंगलचन्द बैद एडवोकेट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82 "सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?' छपते-छपते. " साध्वी रत्नशीला श्रीजी म.सा. एक सत्य को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं और इसी दौर से महान् और पवित्र विश्व-प्रसिद्ध सम्मेद शिखरजी का तथाकथित विवाद गुजर रहा है। जब झूठ, गन्दी राजनीति का संरक्षण पा जाता है तब स्थिति और भी भयानक हो जाती है। मैं तो केवल इतना ही कहना चाहूंगी कि सम्मेद शिखरजी के तथाकथित विवाद को कानून के दायरे में अब तक मिली असफलता से खिन्न होकर उसे गन्दी राजनीति के क्षेत्र में घसीटने के जो तौर-तरीकें अपनायें गये वे निश्चय ही समाज और धर्म के मूल हितों पर सीधा और गहरा प्रहार है । मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि चिन्तनशील और अनुभवी वरिष्ठ पत्रकार श्री मोहनराजजी भण्डारी, सम्मेद शिखरजी के तथाकथित विवाद के बारे में सत्यों और तथ्यों को "सम्मेद शिखरविवाद क्यों और कैसा ?' शीर्षक पुस्तक में प्रस्तुत करने का बहुत ही कठिन और अत्यन्त अनिवार्य शुभ कार्य कर रहे हैं । परिस्थितियों और समय का प्रबल तकाजा है कि इस पुस्तक के व्यापक प्रचार-प्रसार के दायित्व के प्रति हम सब जागरूक हों । - साध्वी रत्नशीला कुचेरा - नागौर (राज.) तां 15 सितम्बर, 1998 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" साध्वी शुभदर्शना श्रीजी म.सा. आज के कलयुग में सत्य की रक्षा करना जितना कठिन है, उतना ही अनिवार्य है। इतिहास-प्रसिद्ध एवं महान् पूजनीय तीर्थ-स्थल सम्मेद शिखरजी की सम्पूर्ण व्यवस्था और मालिकाना हक, जैन समाज के एक बड़े समुदाय(श्वेताम्बर जैन समाज) के हाथों में बहुत ही लम्बे अर्से से चला आ रहा है उसमें मात्र हक प्राप्त करने के लोभ से जो राजनीतिक खेल, खेला जा रहा है वह महान् तीर्थ की पवित्रता को नष्ट-भ्रष्ट करने के साथ ही जैन समाज की रही-सही एकता में विष घोलने जैसा महापाप है। यद्यपि सुश्रावक, सुप्रसिद्ध लेखक एवं जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार श्री मोहनराजजी भण्डारी मेरे सम्पर्क में तो नहीं आये लेकिन उनके बारे में जो कुछ सुना-पढ़ा और समझा उसके आधार पर कह सकती हूँ कि निष्पक्ष और सुलझे हुए अनुभवी विचारक होने के कारण ही सामाजिक एवं सार्वजनिक-जीवन में श्री भण्डारीजी काफी विश्वसनीय और लोकप्रिय हैं। मुझे खुशी है कि सम्मेद शिखरजी के तथाकथित विवाद के बारे में श्री भण्डारीजी जो तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह एवं राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के कर कमलों से सम्मानित हैं, "सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा ?' नामक पुस्तक लिख रहे हैं। प्रभु इनके सद्प्रयत्न को सफल बनायें, यही हार्दिक मंगलकामना है। मदनगंज-किशनगढ़ (अजमेर) -साध्वी शुभदर्शना ता. 15 सितम्बर, 1998 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?" तीर्थंकर स्वरूप जो तीर्थ हैं उनकी पवित्रता की सुरक्षा एवं रक्षा करना समूचे जैन समाज का प्रथम एवं अन्तिम धर्म एवं दायित्व है। जैन समाज, समय रहते जागृत होगा तभी धर्म एवं पवित्र तीर्थ-स्थलों की रक्षा हो सकेगी। 84 सम्मेद शिखर- विवाद न तो धर्म के अनुकूल है और न व्यवहारिक । कम से कम तीर्थंकरों के प्रति श्रद्धा और आस्था रखने वालों को ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जो तीर्थों की पवित्रता को नष्ट करने का कारण बने । मुझे प्रसन्नता है कि चिन्तनशील लोकप्रिय वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक श्री मोहनराजजी भण्डारी सम्मेद शिखरजी के पीड़ाजनक एवं समाज को विघटन करने वाले तथाकथित विवाद पर सारगर्भित पुस्तक लिख रहे हैं। आशा है कि श्री भण्डारीजी के इस सद्प्रयत्न का समाज, सम्प्रदायवाद से ऊपर उठकर मूल्यांकन करेगा। अजमेर ता. 17 सितम्बर, 1998 - डा. जयचन्द बैद एम.एस., एफ. ए. सी. एस. अध्यक्ष- श्री वासुपूज्य स्वामी जैन रेक्ताम्बर मन्दिर, अजमेर महान् त्यागी - तपस्वी मुनि श्री हितरूचि विजयजी महाराज साहब ने एक ऐसे विषय की ओर आम लोगों का ध्यान आकर्षित किया है जिसके बारे में भारी भ्रम फैला हुआ है । होमियोपथ की गोलियों को आयुर्वेदिक दवाओं की तरह शुद्ध और पवित्र समझ कर लोगों का झुकाव तेजी से होमियोपथ की ओर बढ़ता जा रहा है लेकिन होमियोपथ की दवाइयों के निर्माण में कितनी हिंसा और पाप छिपा हुआ है इसकी जानकारी आम जनता को प्रायः नहीं है । अहिंसा - प्रेमी और जैन समाज, होमियोपथ के बारे में वास्तविकता जानने के पश्चात् इसको प्रयोग में लेना तो दूर रहा इसे छूना भी पसन्द नहीं करेगा। -मोहनराज भण्डारी पत्रकार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?" 85 (पठनीय पुस्तकें (चिन्तनशील वरिष्ठ पत्रकार श्री मोहनराज भण्डारी द्वारा लिखित अथवा सम्पादित) जैन धर्म तब और अब ! दोषी कौन ? मूल्य - दो रुपये मात्र पृष्ठ संख्या - 16 .आओ जीवन सफल बनायें! मूल्य – बीस रुपये मात्र पृष्ठ संख्या - 90 .बिजौलिया किसान - सत्याग्रह (द्वितीय संस्करण) (भारत का सर्वप्रथम सफल अहिंसक किसान - आन्दोलन) मूल्य –आठ रुपये मात्र पृष्ठ संख्या - 104 -अंजना देवी चौधरी (आधुनिक राजस्थान की अहिंसक वीरांगना) मूल्य – दस रुपये मात्र पृष्ठ संख्या - 96 .श्री विजयसिंह पथिक (राजस्थान की जन जागृति के जन्मदाता) मूल्य – पांच रुपये मात्र पृष्ठ संख्या - 42 सम्मेद शिखर - विवाद क्यों और कैसा? मूल्य - दस रुपये मात्र पृष्ठ संख्या - 140 सम्पर्क सूत्रः उमेश भण्डारी एम.कॉम. 62, महावीर कॉलोनी, पुष्कर रोड, अजमेर (राज.) फोन: 428432 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय जैन लघुतीर्थ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मन्दिर अजमेर का संक्षिप्त परिचय 5 उपकार स्मरण फ्र श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मन्दिर (अजमेर) का निर्माण तपागच्छ जैनाचार्य प.पू. गच्छाधिपति 1008 वर्धमान तपोनिधि आचार्यदेव श्रीमद् विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा., कच्छबागड देशोद्धारक, निमग्न आध्यात्मिकयोगी प. पू. आचार्यदेव श्रीमद्विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म. सा. एवं राष्ट्रसन्त, युगदृष्टा प. पू. आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के आशीर्वाद एवं पावन प्रेरणा से सम्पन्न हुआ। -डा. जयचन्द बैद एम. एस. (अध्यक्ष) - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat प्रस्तुतकर्त्ताजी. आर. भण्डारी एडवोकेट www.umaragyanbhandar.com Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय ... IN एक सत्य ......इतिहास के पृष्ठों के अनुसार एक सत्य यह भी है कि..... तथ्यों से सुस्पष्ट है कि अजमेर प्रखण्ड जैन धर्म व संस्कृति का एक वैभवशाली क्षेत्र भगवान श्री महावीर स्वामी के समय में रहा है।..... और भगवान श्री महावीर स्वामी का इस क्षेत्र से अवश्य ही विहार हुआ है। कालांतर की इस भव्य नगरी का अब पुनः उदयकाल गुरु-भगवन्तों की असीम कृपा से आया एवं तीर्थ निर्माण का शंखनाद हुआ।..... इतिहास के पृष्ठों से लगभग 50 वर्ष पूर्व प.पू. पंजाब केसरी आचार्य भगवन्त 1008 श्रीमद्विजय वल्लभसूरीश्वरजी म.सा. ने अजमेर नगर में श्री वासुपूज्य स्वामी भगवान को मूलनायक के रूप में विराजमान करने का सुझाव जैन संघ, अजमेर के हित में दिया था।इसी क्रम में लगभग 35 वर्ष पूर्वत्रिपुटिक श्रीदर्शनविजयजी म.सा. एवं लगभग 25 वर्ष पूर्व आचार्य श्री विजयनन्दनसूरीश्वरजी म.सा. ने भी उपरोक्त सुझाव का समर्थन किया था। -श्री जैन श्वेताम्बर श्री संघ, अजमेर के प्रपत्र से साभार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय + मन्दिर निर्माण की प्रेरणा आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व पंजाब केसरी तपागच्छ आचार्य देव श्रीमद्विजयवल्लभ सूरीश्वरजी म.सा. का ऐतिहासिक केन्द्र नगर अजमेर में पधारना हुआ तब जैन संघ के हित में आप श्री ने अजमेर में भगवान श्री वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजमान करने का परामर्श दिया था। संयोग की बात है कि 50 वर्ष पश्चात् पंजाब केसरी का सद्परामर्श, आध्यात्मिकयोगी आचार्यदेव श्रीमद्विजय कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. द्वारा गत 4 जून 1985 को दी गई प्रेरणा और मार्ग दर्शन के अनुसार इस मन्दिर की स्थापना सन् 1991 में हुई। म विनम्र आभार॥ * प.पू. राजस्थान केसरी स्व.आचार्य श्रीमद्विजय मनोहर सूरीश्वरजी म.सा. * प.पू. कर्नाटक केसरी आचार्य श्रीमद्विजय भद्रंकर सूरीश्वरजी म.सा. • प.पू. मेवाड देशोद्धारक आचार्य श्रीमद्विजय जितेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. प.पू. युवक जागृति प्रेरक आचार्य श्रीमद्विजय गुणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. • प.पू. प्रवचनकार आचार्य श्रीमद्विजय वीरसेन सूरीश्वरजी म.सा. प.पू. पंन्यास प्रवर श्री धरणेन्द्र सागरजी म.सा. * प.पू. पंन्यास प्रवर श्री नरदेव सागरजी म.सा. * प.पू. शान्तिदूत, पंन्यास प्रवर श्री नित्यानन्द विजयजी म.सा. • प.पू. मुनि श्री जिनसेन विजयजी म.सा. • प.पू. मुनि श्री भुवन सुन्दर विजयजी म.सा. * प.पू. मुनि श्री कल्पतरु विजयजी म.सा. * प.पू. मुनि श्री कीर्तिचन्द्र विजयजी म.सा. (दि. 26 मई, 1991) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय नूतन जैन मन्दिर का परिचय स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में बड़े-बड़े शहरों का खूब विकास हुआ । आबादी बढ़ी, नगरों के साथ नई-नई कॉलोनियाँ बढ़ी और उनका सम्बन्ध शहरों से हो गया। राजस्थान प्रान्त के हृदय एवं आध्यात्मिक नगरी अजमेर में भी चारों ओर नई-नई कॉलोनियाँ बनने से वह विस्तृत हो गया । अजमेर से पुष्कर-मेड़ता-नागौर-बीकानेर मार्ग स्थित पुष्कर रोड पर भी एक के बाद एक नई जैन कॉलोनियाँ बनने से पुष्कर रोड - क्षेत्र जैन श्वेताम्बर समाज का एक प्रमुख गढ़ सा बन गया। शहर के अन्य मन्दिर इस क्षेत्र से लगभग तीन कि.मी. दूर हैं, जहाँ लोग इच्छा होते हुए भी नित्य न जा पाते हैं। आत्म-कल्याण के लिये परमात्मा के दर्शन-पूजन, आराधनासाधना-उपासना के लिये मन्दिर ही एक पवित्र एवं श्रेष्ठ धार्मिक स्थल है । अत: नई जैन कॉलोनियाँ बनने के साथ ही नया मन्दिर बनना नितान्त आवश्यक व अनिवार्य हो गया था । अतः पुष्कर रोड - क्षेत्र में जैन मन्दिर निर्माण की प्रारम्भिक प्रेरणा 12 जनवरी, 1983 को प. पू. राजस्थान केसरी, आचार्य भगवन्त 1008 श्री मनोहर सूरीश्वरजी म. सा. ने दी। पुष्कर रोड के जैन धर्मावलम्बियों के प्रबल पुण्योदय से प. पू. आचार्य श्री मनोहर सूरीश्वरजी म. सा. ने 12 जनवरी, 1983 को महावीर कॉलोनी स्थित समाजसेवी श्री मोतीलालजी मंगलचन्दजी भण्डारी (सोजत वालों) के निवास पर स्थिरता की। आचार्य श्री ने धार्मिक चर्चा समय कहा कि इस क्षेत्र में नूतन मन्दिर निर्माण हेतु जमीन निःशुल्क मिल जाये तो नूतन मन्दिर का निर्माण कार्य सहज ही सम्पन्न हो सकता है । उपस्थित बन्धुओं में श्री पुखराज पोखरणा, मंत्री - श्री वीर लोकाशाह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय गृह निर्माण समिति, अजमेर ने महाराज साहब की भावना से प्रभावित होते हुए तत्काल वीर लोकाशाह कॉलोनी (पुष्कर रोड) में एक प्लाट निःशुल्क दिलाने का प्रस्ताव आचार्य श्री की सेवा में रखा और उनके निवेदन पर आचार्य श्री ने भूमि का अवलोकन किया एवं उक्त प्लाट को नूतन मन्दिर निर्माण के लिये उपयुक्त बताया। 12 जनवरी, 1983 को इस क्षेत्र में नूतन मन्दिर के निर्माण का निर्णय लिया गया। आचार्य श्री की पावन निश्रा में एक समिति का गठन किया गया एवं जी.आर.भण्डारी को समिति का संयोजक बनाया गया। आचार्य श्री ने कुछ माह बाद नूतन मन्दिर निर्माण कार्य को अन्तिम रूप देने के लिये संयोजक को सादड़ी (पाली) बुलाया। सादड़ी के मन्दिरों का अवलोकन करते हुए निर्माण योजना को अन्तिम रूप दिया गया। सादड़ी से वापस आने के 5-7 दिन पश्चात् ही अचानक सूचना मिली कि आचार्य श्री का स्वर्गवास हो गया। हृदय को भारी धक्का लगा। __ स्मरण रहे कि आचार्य श्री जीवन पर्यन्त जैन मन्दिरों के निर्माण एवं जीर्णोद्धार के कार्यों को सदैव प्राथमिकता देकर जिन शासन की समर्पित व सराहनीय सेवा करते रहे हैं । आचार्य श्री के स्वर्गवास के पूर्व के उनके अन्तिम पत्र का सार संक्षिप्त में निम्न प्रकार हैविजय मनोहर सूरीश्वर आदि सादड़ी तत्र देव-गुरू भक्ति कारक श्री गनपतराज भण्डारी योग्य धर्मलाभ । पत्र मिला था। मिस्त्री भीकमचन्द प्लाट का नाप लेकर आ गया है । हमारे दिमाग में मन्दिर का प्लान बन गया है। प्लान के अनुसार सुन्दर-भव्य मन्दिर बनेगा.....आने-जाने वालों के लिये अवश्य ही दर्शनीय तीर्थ सा बनेगा । मेरा मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है। सभी को धर्मलाभ कहना। मनोहर सूरी का धर्मलाभ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय आचार्य श्री के आकस्मिक स्वर्गवास के कारण नूतन मन्दिर निर्माण योजना पर विराम लग गया।. स्व. आचार्य श्री की नूतन मन्दिर निर्माण योजना की कल्पना कैसे साकार हो? उसे कैसे पूरा किया जाये ? मैंने राजस्थान प्रान्त में विचरण करने वाले कई आचार्यों एवं मुनि भगवन्तों से व्यक्तिगत सम्पर्क किया। प्रायः सभी का एक ही जवाब था कि अनुकूल स्थिति होने पर आपको सूचित कर देंगे। न जाने कब अनुकूल स्थिति होगी.....भगवान जाने.....? जब आशा की किरणें दूर-दूर तक दृष्टिगोचर ही नहीं हो रही थी, तो हमने विचार किया कि निःशुल्क प्लाट वापस सोसायटी को सुर्पद कर दिया जाये। इस कार्यवाही का प्रारूप तैयार किया ही जा रहा था कि 18 मार्च, 1985 को सूचना मिली कि कच्छबागड़ देशोद्धारक, आध्यात्मयोगी आचार्य भगवन्त 1008 श्रीमद् विजय कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. आदि ठाणा लाखन कोटड़ी, अजमेर में विराजमान है। कब, कहाँ, कौन सी और कैसी ज्योति प्रकट होगी-कौन जाने ? आलोकमयीवाणी एवं ज्योतिर्मय जीवन से जन-जन के जीवन-देवता प.पू. आचार्य श्री कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. के अजमेर आगमन ने हमारी निराशा को तत्काल आशा में बदल दिया ..... आचार्य श्री का आगमन हमारे लिये ऐतिहासिक वरदान प्रमाणित हुआ। 18 मार्च, 1985 का यह दिन सदैव स्मरणीय रहेगा। आचार्य श्री से प्रथम बार ही सम्पर्क हुआ और आचार्य श्री ने जैन धर्मावलम्बियों की धार्मिक आस्था को देखते हुए निश्रा प्रदान करने की स्वीकृति प्रदान की। आचार्य प्रवर का यह उपकार सदैव ही स्मरणीय रहेगा। मार्च, 1985 से मई, 1985 तक आस-पास के क्षेत्रों में शासन की प्रभावना, धार्मिक अनुष्ठानों के कई आयोजन आचार्य श्री की निश्रा में सम्पन्न हुए।आचार्य श्री के विद्वान शिष्य प.पू. मुनिकीर्तिचन्द्रविजयजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय म.सा. (वर्तमान में पंन्यास) से हमारा बराबर सम्पर्क बना रहा। मुनिश्री की मदद से ही महान् आचार्य श्री की स्वीकृति मिली। 4 जून, 1985 को आचार्य श्री की निश्रा में मन्दिर निर्माण समिति की एक बैठक सम्पन्न हुई। उक्त बैठक में मन्दिर निर्माण योजना को अन्तिम रूप दिया गया। बैठक में मन्दिर में मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा को विराजमान करने एवं श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मन्दिर के नाम से संघ बनाने का ऐतिहासिक निर्णय हुआ। 20 जून, 1985- छत्तीसगढ, शिरोमणि प.पू. सा. श्री मनोहर श्रीजी म.सा. की विदुषी सा. श्री सुलक्षणा श्रीजी म.सा. एवं सा. श्री सद्गुणा श्रीजी म.सा. की पावन निश्रा में भूमि-पूजन, समाजसेवी मंगलचन्दजी भण्डारी एवं मूक समाजसेवी मास्टर श्री धनरूपमलजी मुणोत द्वारा किया गया। 17.मई, 1986- नूतन मन्दिर का खाद्-मुहूंत महोत्सव 17 मई, 1986 को सम्पन्न हुआ।खाद्-मुहूत, जे.एल.एन. अस्पताल, अजमेर के सुप्रसिद्ध शल्य चिकित्सक व मन्दिर के अध्यक्ष डा. जयचन्द बैद द्वारा किया गया। 12 जून, 1986- राजस्व मण्डल राजस्थान, अजमेर के सदस्य श्री मिलापचन्दजी जैन के कर कमलों से नूतन मन्दिर का शिलान्यास हुआ। 15 अप्रैल, 1988- समाजरत्न, सेठ आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी, (अहमदाबाद) के प्रादेशिक प्रतिनिधि श्रीमान् हीराचंदजी बैद (जयपुर) ने 15 अप्रेल, 88 को निर्माणाधीन नूतन मन्दिर के निर्माण कार्य का अवलोकन कर मार्गदर्शन प्रदान किया। (25 जून, 1988-प.पू. राष्ट्रसन्त, आचार्य भगवन्त 1008 श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के प्रथम शिष्य, पंन्यास श्रीधरणेन्द्रसागरजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय म.सा. की प्रेरणा से.....श्री के.आर.सेठ अहमदाबाद के आर्थिक सहयोग से निर्माणाधीन मन्दिर स्थल पर एक कमरा बना और 25 जून, 88 को सर्वप्रथम श्री वासुपूज्यस्वामी की प्रतिमा विराजित की गई। स्थापित प्रतिमा वास्तव में भगवान श्री वासुपूज्यस्वामी की अद्भुत, अलौकिक प्रतिमा प्रमाणित हुई। 17 इंच की इस प्रतिमा की अन्जनशलाका गच्छाधिपति, आचार्य श्री कैलाशसागर सूरीश्वरजी म.सा. के द्वारा वीर संवत 2501 माघ बदी 3 को राजनगर (अहमदाबाद) में सम्पन्न हुई। 10 मई, 1989- मूलनायक श्री वासुपूज्यजी (25 इन्च), श्री शान्तिनाथजी (21 इन्च), श्री विमलनाथजी (21 इन्च), श्री ऋषभदेवजी (17 इन्च), श्री चन्द्रप्रभुजी (17 इन्च), यक्ष-यक्षणि (15 इन्च), दादा श्री मणिभद्रजी (15 इन्च), माता श्री पद्मावती देवी (15 इन्च) की प्रतिमाओं (पाषाण) की अन्जनशलाका .....प.पू. आध्यात्मयोगी, आचार्य श्री कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. की पावन-निश्रा में भचाऊ (कच्छ-गुजरात) में 10 मई, 89 वैशाख सुदी 5 वि.सं. 2045 को सम्पन्न 26 मई 1991- प.पू. गच्छाधिपति, आचार्य श्री हेमप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय की कार्य-कौशल, व्यवहार-कौशल, प्रवचन-कौशल, विदुषी सा. श्री महाप्रज्ञा श्रीजी म.सा. की पावननिश्रा में नूतन मन्दिर में प्रतिमा प्रवेशमहोत्सव 26 मई,91 को हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि ..... इतिहास के पृष्ठों के अनुसार एक सत्य यह भी है कि ..... तथ्यों से सुस्पष्ट है कि अजमेर प्रखण्ड जैन धर्म व संस्कृति का एक वैभवशाली क्षेत्र भगवान श्री महावीर स्वामी के समय में रहा है।..... और भगवान श्री महावीर स्वामी का इस क्षेत्र से अवश्य ही विहार हुआ है। ..... कालान्तर की इस भव्य नगरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय का पुन: उदयकाल आया..... प. पू. आध्यात्मयोगी आचार्य श्री कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा एवं प. पू. न्यायविशारद, वर्धमान तपोनिधि, गच्छाधिपति आचार्य श्री भुवनभानु सूरीश्वरजी म.सा., प.पू. राष्ट्रसन्त, आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी म.सा. एवं विद्वान पंन्यास श्री कलाप्रभ विजयजी म.सा. के आशीर्वाद से ..... और तीर्थ निर्माण का शंखनाद हुआ। गुरु भगवन्तों का यह स्मरणीय उपकार अनन्त काल तक सदैव ही चिर- स्मरणीय रहेगा। 9 प. पू. तपस्वीसम्राट आचार्य श्री राजतिलक सूरीश्वरजी म.सा., कर्नाटक केसरी प.पू. आचार्य श्री भद्रंकर सूरीश्वरजी म.सा., मेवाड़ देशोद्धारक प.पू. आचार्य श्री जितेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा., प्रवचनकार आचार्य श्री वीरसेन सूरीश्वरजी म.सा., युवक जागृति प्रेरक प.पू. आचार्य श्री गुणरत्न सूरीश्वरजी म.सा., प्रशान्त मूर्ति प.पू. आचार्य श्री नरदेवसागर सूरीश्वरजी म.सा., शान्तिदूत आचार्य श्री नित्यानन्द सूरीश्वरजी म.सा., उपाध्याय श्री धरणेन्द्र सागरजी म.सा., पंन्यास श्री भुवनसुन्दर विजयजी म.सा., पंन्यास श्री कीर्तिचन्द्र विजयजी म.सा., मुनि श्री कल्पतरु विजयजी म.सा., आध्यात्मयोगी आचार्य श्री कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय की विदुषी सा. श्री नित्यधर्मा श्रीजी म.सा. एवं सा. श्री प्रफुल्लप्रभा श्रीजी म.सा. आदि गुरुभगवन्तों की असीम कृपा का सौभाग्य संघ को प्राप्त हुआ । पूज्य श्री की असीम कृपा एवं आशीर्वाद से ही भव्य - सुन्दर, ऐतिहासिक नूतन मन्दिर का निर्माण कार्य प्रगति पर है एवं शीघ्र ही नूतन मन्दिर, आध्यात्मिक नगरी अजमेर के ऐतिहासिक जैन लघुतीर्थ का स्वरूप प्राप्त कर लेगा। संघ सभी गुरु भगवन्तों का सदैव ऋणी रहेगा। लगभग 400 साधु-साध्वियों ने विहार क्रम में अजमेर स्थिरता के समय अपने पाद-स्पर्श से इस क्षेत्र को पावन किया है एवं निर्माणाधीन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय नूतन मन्दिर के निर्माण कार्य का अवलोकन कर संघ का मार्गदर्शन किया एवं इस क्षेत्र में मन्दिर निर्माण को आवश्यक बताया। सेठ श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी (अहमदाबाद), श्री शंखेश्वर भोयणि पेढ़ी (अहमदाबाद), श्री नाकोड़ा जैन तीर्थ (मेवानगरबाडमेर), श्री चन्द्रप्रभुजैन नया मन्दिर (मद्रास), श्री लाकडिया जैन तीर्थ उपधान समिति, लाकडिया (कच्छ-गुजरात), श्री विले पारले श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ एण्ड चेरीटीज (मुम्बई), श्री जैन मित्र मण्डल (पालनपुर), सेठ श्री कल्याणजी सोभागचन्द जैन पेढ़ी (पिण्डवाडा), श्री नरसी भाई हीरजी भाई घाणीधर (कच्छ) एवं मद्रास, बैंगलोर, मुम्बई, अहमदाबाद आदि कई मन्दिर पेढ़ियों के सराहनीय सहयोग से पुष्कर रोड के एक मात्र पवित्र-श्रेष्ठ व धार्मिक स्थल जैन मन्दिर को भव्य-सुन्दर बनाने का प्रयास संघ ने किया है और कर रहा है। नूतन मन्दिर को लघुतीर्थ का स्वरूप प्राप्त हो इसी क्रम में नूतन मन्दिर से लगभग 100-125 मीटर की दूरी पर गत वर्ष (अगस्त, 1997) में एक विशाल भूखण्ड दस हजार वर्ग फुट का खरीदा गया। इस विशाल भूखण्ड पर जैन आराधना भवन, जैन-भोजनशाला, धर्मशाला, पुस्तकालय आदि के निर्माण की योजना विचाराधीन है। तीर्थस्थल में उपलब्ध सभी सुविधाओं का समावेश अनुकूलता के अनुसार किया । जायेगा। संघ आभारी है..... प.पू. 1008 वर्धमान तपोनिधि, न्यायविशारद, आचार्य श्री भुवनभानु सूरीश्वरजी म.सा. एवं मुनि श्री भुवन सुन्दर विजयजी म.सा. (वर्तमान में पंन्यास) का जिन्होंने 1989 में मन्दिर के निकट ही जैन उपाश्रय के निर्माण का सुझाव दिया था एवं योजना को क्रियान्वित करने व उत्साहवृद्धि के लिये श्री जिनशासन सेवा समिति धोलका (अहमदाबाद) के प्रमुख समाजरत्न श्री कुमारपाल वि.शाह को प्रेरणा देकर 11 दिसम्बर, 1989 को साठ हजार रुपये का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय सहयोग दिलवाया। इधर संघ जमीन क्रय करने का प्रयास कर रहा था, संयोग नहीं बैठा । पूज्य श्री की असीम कृपा व दिव्य आशीर्वाद से अगस्त, 1997 में विशाल भूखण्ड को संघ ने क्रय किया। इसी भूखण्ड पर निर्माण योजनाओं का प्रारूप तैयार किया जा रहा है। सम्भवतः चार्तुमास (1998) के पश्चात् शिलान्यास महोत्सव सम्पन्न होगा। इस हेतु संघ, जैनाचार्य श्री नित्यानन्द सूरीश्वरजी म. सा. (कुचेरा - नागौर) से, पावन - निश्रा प्रदान करने के लिये सम्पर्क बनाये हुए हैं। हम आभारी हैं, कृतज्ञ हैं कई मन्दिरों के निर्माण सहयोगीसमाजरत्न स्व. श्रीमान् शंकरलालजी मुणोत (ब्यावर), स्व. श्री डी. एस. भण्डारी भू.पू. अध्यक्ष श्री विर्लेपारले श्वेताम्बर मू.पू. जैन संघ (मुम्बई) का..... जिन्होंने जीवन पर्यन्त नूतन मन्दिर निर्माण में समर्पित सहयोग प्रदान किया। आपका सहयोग सदैव ही स्मरणीय रहेगा। अजमेर 15 जुलाई, 1998 11 आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि आध्यात्मिक नगरी अजमेर का यह जैन लघुतीर्थ प्रभु भक्तों के लिये महान् कल्याणकारी धर्म स्थल बनेगा..... हजारों भव्यात्माओं के लिये तारणहार बनेगा । - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat - जी. आर. भण्डारी संयोजक श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मन्दिर, अजमेर www.umaragyanbhandar.com Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय श्री कलापूर्ण सस योगी आचार्य श्री maheb रीश्वर जा म.सा अभूत महोत्सव 1997-1998 चरण कमलों में कोटि-कोटि वन्दना।। चरणों की रज मंगलचन्द बैदी एडवोकेट गोविन्द भवन, मालविया रोड विले पारले (पूर्व) मुम्बई -57 06149712 Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय 13 AIMIMARom आचार्य श्री कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. का अजमेर आगमन प.पू. आध्यात्मिकयोगी, आचार्य भगवन्त 1008 श्रीमद्विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. आदि ठाणा का 22 मार्च 1985 को आध्यात्मिक नगरी "अजमेर" में भव्य प्रवेश हुआ। आचार्य श्री का आशीर्वाद एवं निश्रा नूतन मन्दिर निर्माण के लिये संघ को मिली। आध्यात्मिकयोगी इस शताब्दी के महान् सन्त ही नहीं, प्रभु-भक्ति के परम प्रतीक भी है । प्रभु के प्रति उनकी अनन्य भक्ति देख कर हम भाव-विभोर हो जाते हैं। -श्री गौतम सुमन सम्पादक - "अध्यात्मक वाणी", चैनई Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय भूमि पूजन प.पू. आध्यात्मिकयोगी, आचार्य श्रीमद् विजय कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. द्वारा प्रेषित भूमि-पूजन मुहूत 20 जून, 1985 को सानन्द सम्पन्न। पावन निश्रा - छत्तीसगढ़ शिरोमणि प.पू. सा. श्री मनोहर श्री जी म.सा. की विदुषी सा. श्री सुलक्षणा श्री जी म.सा. एवं सा. श्री सद्गुणा श्रीजी म.सा.। भूमिपूजन कर्ता- समाजसेवी श्री मंगलचन्द भण्डारी एवं मास्टर श्री धनरूपमल मुणोत, अजमेर hendihomeomomome Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय खाद् मुहूत नूतन मन्दिर का खाद्-मुहूंत महोत्सव 17 मई, 1986 को सानन्द सम्पन्न । खाद् मुहूत कर रहे है जे.एल.एन. अस्पताल, अजमेर के सुप्रसिद्ध शल्य चिकित्सक व मन्दिर-कमेटी के अध्यक्ष डा. जयचन्द बैद। www.umaragyanbhandar.com Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय मन्दिर का शिलान्यास 12 जून 1986 को नूतन मन्दिर का शिलान्यास महोत्सव सम्पन्न हुआ। शिलान्यास कर्ता-श्री मिलापचन्द जैन सदस्य- राजस्व मण्डल राजस्थान, अजमेर। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय शिलान्यास महोत्सव 12 जून, 1986 का एक दृश्य मन्दिर सलाहकार बोर्ड के संयोजक वरिष्ठ पत्रकार श्री मोहनराज भण्डारी, समाजरत्न श्री शंकरलाल मुणोत (नूतन मन्दिर निर्माण के प्रमुख सहयोगी व सलाहकार) से विचार-विमर्श करते हुए। पास में बैठे हुए- मास्टर श्री धनरूपमल मुणोत, श्री मिलापचन्द जैन व श्री कुशलचन्द संचेती आदि। . Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय मन्दिर का अवलोकन आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी, अहमदाबाद के प्रादेशिक प्रतिनिधि, समाजरत्न श्री हीराचन्द बैद (जयपुर) 15 अप्रेल 1988 को निर्माणाधीन नूतन मन्दिर का अवलोकन करते हुए तथा आवश्यक सलाह देते हुए। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय श्रीवासुपूज्यस्वामीने नमः॥ राष्ट्रसत अवीण्य सारसीवर जनाव की प्रेरणा से श्री के.आर.सेठ, अहमदाबाद द्वारा निर्मित 25 .00 अस्थायी रूप से विराजित भगवान की प्रतिमा सन 1988 में राष्ट्रसन्त आचार्य भगवन्त श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी म.सा. के सुशिष्य विद्वान् पंन्यास प्रवर श्री धरणेन्द्रसागरजी म.सा. जब अजमेर पधारे तब निर्माणाधीन श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मन्दिर का अवलोकन कर प्रसन्नता व्यक्त करने के साथ ही प्रेरणा दी कि इस क्षेत्र की आस-पास की कॉलोनियों के जैन धर्मावलम्बियों को जिन दर्शन-पूजन की तत्काल सुविधा उपलब्ध कराने हेतु फिलहाल अस्थायी व्यवस्था की जानी चाहिए। महाराज साहब की उक्त प्रेरणा से अहमदाबाद के समाजसेवी श्री के. आर.सेठ ने एक कमरा बनवाया जिसमें अस्थायी रूप से भगवान श्रीवासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा की स्थापना 25 जून, 1988 को की गई। उक्त चित्र उसी समय का है। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय मूल मन्दिर में प्रतिमाजी का प्रवेश प.पू. कार्य कौशल, व्यवहार कौशल, प्रवचन कौशल विदुषी सा. श्री महाप्रज्ञा श्रीजी म.सा. आदि ठाणा चार 26 मई 1991 को प्रतिमाजी के मन्दिर में प्रवेश के समय क्रिया कराती हुईं। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय प्रतिमाजी को विराजमान करते समय का चित्र समाजसेवी श्री छगनलाल जालोरी मूलनायक श्री वासुपूज्य भगवान की प्रतिमाजी को 26 मई 1991 को विराजमान करते हुए। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय गत 26 मई 1991 को प्रतिमा प्रवेश महोत्सव पर समाजरत्न श्री हीराचन्द बैद (जयपुर) का स्वागत करते हुए मन्दिर के अध्यक्ष डा. जयचन्द बैद। प्रसिद्ध उद्योगपति एवं प्रमुख समाजसेवी श्री सुगालचंद जैन चैन्नई, गत 3 अक्टूबर, 1997 को अजमेर में जैन आराधना भवन की जमीन आदि का अवलोकन कर आवश्यक जानकारी प्राप्त करते हुए तथा श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ मद्रास-5 के पूर्व अध्यक्ष एम. बादलचंद भण्डारी, मन्दिर कमेटी के अध्यक्ष डा. बैद एवं मन्दिर कमेटी के संयोजक जी.आर. भण्डारी जानकारी कराते हुए। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय 23 प.पू. आगम विशेषज्ञ, आचार्य श्री धर्मधुरन्धर सूरीश्वरजी म.सा. निर्माणाधीन मन्दिर के निर्माण कार्य का अवलोकन करने के बाद दिशा-निर्देश देते हुए। मआ प.पू. युवक जागृति प्रेरक, शताधिक दीक्षादाता, आचार्य श्री गुणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. से विचार-विमर्श करते हुए मन्दिर के संयोजक जी.आर. भण्डारी। परमात्मा के दस हजार बार नामस्मरण से जो लाभ नहीं होता है, वह एक बार जिनेश्वर प्रतिमा के आलम्बन (दर्शन) से हो सकता है। -पंन्यास भद्रंकरविजय Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय । प.पू. शान्तिदूत गणिवर्य श्री नित्यानन्द विजयजी म.सा. (वर्तमान में आचार्य) 6 जनवरी, 1989 को निर्माणाधीन नूतन मन्दिर के निर्माण कार्य का अवलोकन करते हुए। Varbhandar-Umara Surat Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय 2 प.पू. आध्यात्मयोगी, आचार्य भगवन्त श्री कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा., मुनि श्री कलाप्रभ विजयजी म.सा., मुनि श्री कीर्तिचन्द्र विजयजी म.सा., मुनि श्री कल्पतरू विजयजी म.सा. आदि ठाणा के आध्यात्मिक नगरी अजमेर में नगर-प्रवेश का चित्र। प.पू. मुनि श्री कीर्तिचन्द्र विजयजी म.सा. (वर्तमान में पंन्यास) के आशीर्वाद से ही प.पू. आचार्य श्री की पावन-निश्रा, मार्गदर्शन, आशीर्वाद एवं प्रेरणा का लाभ संघ को मिला। प.पू. पंन्यास प्रवर श्री कीर्तिचन्द्र विजयजी म.सा. तीर्थ निर्माण के अमर स्तम्भ के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे।आपकी विलक्षण प्रतिभा से ही मन्दिर निर्माण का विरोध कर रहे कुछ भटके हुए लोगों को सन्मार्ग मिला। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय प.पू. आचार्य श्री जितेन्द्र प.पू. आचार्य श्री गुणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. सूरीश्वरजी म.सा. प.पू. विशालगच्छनायक, आचार्यदेव श्रीमद् विजय भुवनभानु सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न प.पू. मेवाड़ देशोद्धारक, प्रतिष्ठा शिरोमणि आचार्यदेव श्री जितेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.विशेषकर राजस्थान में विद्यमान प्राचीन जैन मन्दिरों के जीर्णोद्धार एवं नूतन मन्दिरों के निर्माण का कार्य युद्धस्तर पर करवा रहे हैं। आज के समय में यही जिनशासन की श्रेष्ठ सेवा है। इसके माध्यम से ही धार्मिक आस्था पैदा होती है तथा प्राचीन जैन संस्कृति का रक्षण भी होता है। _ मेवाड़ देशोद्धारक के शिष्यरत्न प.पू. विश्वशान्ति प्रणेता, शताधिक दीक्षादाता, युवक जागृतिप्रेरक आचार्य श्री गुणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. मन्दिरों के निर्माण, जैन साहित्य के प्रकाशन एवं धार्मिक शिविरों के माध्यम से जिनशासन की अनुमोदनीय सेवा कर रहे हैं। पुष्कर रोड के नूतन मन्दिर निर्माण में भी आपका मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद संघ को मिला। समय-समय पर प्राप्त आपका मार्गदर्शन-सहयोग एक ऐसा Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय 27 सम्बल है, जो मन्दिर-कार्य को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर कर रहा है। पादरली, जिला जालोर (राज.) के श्री हीराचंदजी साहब साकरिया के दो पुत्र श्री जेठमलजी व श्री गणेशमलजी ..... वर्तमान में जिन शासन के सितारे आचार्य श्री जितेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य श्री गुणरत्न सूरीश्वरजी म. सा. के नाम से सुविख्यात हैं। --किशन माहेश्वरी सी.ए., सी. एस. - उमेश भण्डारी एम. कार. दर्शन-पूजन से उपवासों का लाभ | "भगवान के दर्शन का विचार मन में उत्पन्न होते ही एक उपवास का लाभ, दर्शन के लिये उठते समय दो उपवास का, गमन के प्रारम्भ में तीन उपवास, गमन करने पर चार उपवास, कुछ चलने पर पाँच उपवास, आधा मार्ग जाने पर पन्द्रह उपवास, मन्दिर दृष्टिगत करने पर तीस उपवास, मन्दिर के पास जाने पर 6 माह के उपवास, मन्दिर का द्वार देखने पर बारह माह के उपवास, प्रदक्षिणा (फेरी) देने पर 100 वर्ष के उपवास, भगवान की धूप आदि से पूजा करने पर 1000 वर्ष के उपवास का और जिनेश्वर भगवान की स्तुति करने से अनन्त पुण्य का लाभ होता - पद्य चरित्र व उपदेश प्रासाद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय पूज्य स्वामी नूतन मन्दिर के निर्माण का एक दृश्य प.पू. राजस्थान केसरी, आचार्य भगवन्त श्री मनोहर सूरीश्वरजी म.सा. 12 जनवरी, 1983 को पुष्कर रोड के जैन धर्मावलम्बियों से नूतन मन्दिर निर्माण की चर्चा करते हुए। प.पू. आचार्य श्री ने इस क्षेत्र में उस समय जो जैन लघुतीर्थ के निर्माण की कल्पना की थी वह प. पू. गुरु भगवन्तों के आशीर्वाद से अब साकार होने जा रही है। bandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय श्री.बावरन्यजनबेताम्बर मदिर उकरण, अजमेर (राज) नूतन मन्दिर का साईट प्लान एवं इन्सेट में मन्दिर-निर्माण के प्रेरक, शुद्ध संयम धारक, आध्यात्मयोगी, आचार्य श्री कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. । आचार्य श्री अपने जीवन के पचहतर वर्ष पूर्ण कर चुके हैं। आध्यात्मयोगी एवं दिव्य पुरुष के अमृत महोत्सव वर्ष 19971998 के उपलक्ष्य में जैन लघुतीर्थ का अनूठा उपहार आध्यात्मिक नगरी अजमेर के जैन धर्मावलम्बियों के लिये ..... जो जन-जन की श्रद्धा, आस्था एवं प्रेरणा का स्त्रोत बनकर एक ध्रुव नक्षत्र की भांति सदा दमकता रहेगा। आचार्य श्री के विराट और निस्सीम व्यक्तित्व को परिभाषित करने का हर प्रयास बाल-चेष्टा जैसा है। -दलपतराज भण्डारी साहित्य सुधाकर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय आचार्य विजय कलापूर्ण सूरीश्वर शंखेश्वर (गुजरात) 2 फरवरी, 1991 सुश्रावक गनपतराज भण्डारी, । जोग धर्मलाभ। .....अजमेर में शिखरबन्द भव्य जिन मन्दिर शहर की एक अपूर्व शोभा के साथ परमात्मा, भक्तों की श्रद्धा-भक्ति का एक अद्भुत प्रतीक बनेगा। तुम्हारा प्रयास, हार्दिक भाव एवं अनेक संघों तथा महार सहकार का यह भव्य परिणाम है। परमात्मा की कृपा से आपके प्रयास सफल हों। यही हमारी मंगल आसीस है।..... -कल्पतरू विजय का धर्मलाभ। आचार्य विजय भुवनभानु सूरीश्वर ईरोड (तामिलनाडू) 17 सितम्बर, 1991 सुश्रावक गनपतराजजी भण्डारी, मुनि भुवनसुन्दर विजय का धर्मलाभ। ..... 26.5.98 को नूतन जिनालय में प्रतिमाजी विराजमान हो रहे हैं, जानकर अत्यधिक प्रसत्रता हुई धन्यवाद। नूतन मन्दिर का संशोधित नक्शा व जैन उपाश्रय का नक्शा अच्छा है। कार्य सम्पन्न सुचारू रूप से होवें ऐसी शासन देवों से प्रार्थना करते हैं। पूज्य गुरुदेव श्री आदि की शुभाशीष-शुभेच्छा आपके साथ ही है। हम मन्दिर निर्माण में आपके सहयोग की बहुत सराहना करते हैं। उपाश्रय निर्माण भी करवाइये ........ धर्म आराधना में खूब वृद्धि करें। -मुनि भुवनसुन्दर का धर्मलाभ। बम्बई आचार्य पद्मसागर सूरी 19 दिसम्बर, 1990 सुश्रावक श्रीमान् गनपतराजजी भण्डारी, योग्य धर्मलाभ। ..... संशोधित मन्दिर का नक्शा सुन्दर है। शिल्प की दृष्टि से भी शुद्ध है। यह नक्शा ज्यादा आकर्षक रहेगा। उपाश्रय का प्लान भी सुन्दर है। आप सब जनों की मेहनत अनुमोदनीय है। ..... धर्म आराधना में अभिवृद्धि करेंगे। -(ह.) आचार्य पद्मसागर सूरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय आचार्य गुपरलसूरी पिण्डवाडा (राज.) 12 जनवरी, 1991 सुश्रावक गनपतराजजी भण्डारी, योग्य धर्मलाभ। ..... जिन मन्दिर व उपाश्रय का नक्शा देखा। संशोधित नक्शे के अनुसार नूतन मन्दिर का निर्माण कराना ज्यादा अच्छा होगा। श्री वासुपूज्य स्वामी का मन्दिर बनाने का जो लक्ष्य रखा है। उसमें पूर्णतया विजय प्राप्त करें। यही शुभेच्छा है। आपका समर्पित सहयोग सराहनीय है। ..... ____-आचार्य गुणरत्नसूरी का धर्मलाभ। *** ** पंन्यास धरणेन्द्रसागर पालीताणा (गुजरात) 12 दिसम्बर, 1990 सुश्रावक गनपतराजजी भण्डारी, योग्य धर्मलाभ। ..... श्री वासुपूज्य स्वामी नूतन मन्दिर का कार्य प्रतिदिन अति उन्नति के शिखर पर चल रहा है, यह जानकर प्रसन्नता हुई। नूतन मन्दिर का संशोधित नक्शा देखा, मन्दिर आकर्षक बनेगा। संशोधित नक्शे से भविष्य में एक लघु तीर्थ थोड़े समय में ही आगे आवेगा। ..... -(ह.) धरणेन्द्रसागर ***** पंन्यास नित्यानन्दविजय लुधियाना (पंजाब) 7 फरवरी, 1991 श्री जी.आर.भण्डारी, योग्य धर्मलाभ। ..... श्री वासुपूज्य स्वामी के नूतन जिनालय में आप 26.5.91 को परमात्माप्रतिमाओं का प्रवेश करवाने जा रहे हैं, जानकर प्रसन्नता हुई। हमारी मंगल कामनाएं स्वीकार करें। नूतन जिनालय को और अधिक भव्य एवं आकर्षक रूप देकर लघु जैन तीर्थ का रूप प्रदान करने को प्रयत्नशील हैं, जानकर हार्दिक हर्ष हुआ। आपकी हार्दिक अभिलाषा अवश्य सफल हो। यही शासन देव से प्रार्थना है। ..... आपकी श्रद्धा-सद्भावना सराहनीय है। -(ह.) पंन्यास नित्यानन्द विजय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय आचार्य राजतिलक सूरीश्वर सावरकुन्डला (गुजरात) 7 जून, 1997 धर्मानुरागी जी.आर. भण्डारी धर्मलाभ पूज्य श्री शाता में है ..... स्वास्थ्य ठीक है। 15.6.97 तक यहाँ पर ही है बाद में पालीताणा की ओर प्रस्थान ..... चातुर्मास तो पालीताणा ही है। ..... उपाश्रय हेतु जरूर ध्यान रखेंगे..... साधारण की राशि मिलना मुश्किल है। धर्म की मर्यादा में रहकर जो भी निर्माण कार्य हो रहा है ..... उसमें पूज्य श्री का आशीर्वाद आपके साथ है। -हर्ष तिलक विजय का धर्मलाभ। ***** आचार्य राजयश सूरीश्वर वेपेरी (चैन्नई) 7 मई, 1998 धर्मानुरागी श्रावक गनपतराजजी भण्डारी आदि योग्य धर्मलाभ आप पुष्कर रोड स्थित श्री वासुपूज्य स्वामी मन्दिर को तीर्थ बना रहे हैं। यह जानकर प्रसन्नता हुई। प्रत्येक मन्दिर तीर्थ स्वरूप बने यह तो प्रत्येक जैन की भावना होती है और होनी भी चाहिये।आप सभी की भावना साकार हो। बस उत्साह उमंग और शासन की भावना से भव्य मनोहर तीर्थ निर्माण करें। पूज्य साहेबजी की आज्ञा से -मुनि नन्दियश विजय का धर्मलाभ। ***** आज-कल बुद्धिवाद के युग में भक्तिवाद दब गया है। मानव परेशान है तो उसका यही कारण है कि वह भक्ति को भूल गया है, भगवान को उसने छोड़ दिया है। भक्ति आते ही जीवन आनंद से भरा बन जाता है। जहाँ भगवान है वहाँ आनंद है, समृद्धि है, कल्याण है। जहाँ भगवान नहीं है वहां धन आदि होने पर भी अंधेरा है. दुःख है। -आचार्य विजय कलापूर्ण सूरी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय 33 वीर लोकाशाह कॉलोनी:प्रथम शिखरबन्द जैन मन्दिर ! अजमेर शहर में विभिन्न धर्म और समाज के हजारों मंदिर बने हुए हैं और जगह-जगह छोटे-छोटे मन्दिर बनते जा रहे हैं। काफी मन्दिर एक ही तरह के हैं। कुछ ही मन्दिरों में निरालापन है। जिन मन्दिरों की अपनी अलग शैली या कलाकृति है, वे मन्दिर प्रसिद्ध भी हैं। उन मन्दिरों के नाम लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं। अनूठा मन्दिर बनाने में इस बार अजमेर शहर का श्वेताम्बर जैन समाज भी आमे आया है। वैसे तो इस समाज की अजमेर में दादाबाड़ी है जो पूरे देश की तमाम दादाबाड़ियों में सबसे बड़ी है। अब इसी श्वेताम्बर जैन समाज ने अजमेर शहर में एक शिखरबन्द मन्दिर बनाया है। अजमेर शहर में फाईसागर रोड पर स्थित वीर लोकाशाह कॉलोनी में यह शिखरबन्द मंदिर बनाया गया है। इस मंदिर की सलाहकार-कमेटी के संयोजक एवं वरिष्ठ पत्रकार मोहनराज भण्डारी का कहना है कि अजमेर के जैन श्वेताम्बरों के इतिहास में यह पहला मन्दिर है जो कि शिखरबन्द है। इस मन्दिर के अलावा कोई भी मंदिर शिखरबन्द नहीं है। श्वेताम्बर समाज के तपस्वी संत आचार्य श्रीमद्विजय कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. के आशीर्वाद से सन् 1986 में इस वीर-लोकाशाह कॉलोनी में इस मन्दिर का निर्माण कार्य आरम्भ हुआ था और अब वह कार्य पूरा हो चुका है। अब मंदिर बनकर तैयार हो चुका है। श्री भण्डारी का कहना है कि देश भर से एकत्र जनसहयोग से निर्मित इस मन्दिर में श्री वासुपूज्य स्वामी की मूर्ति रखी हुई है। गणपतराज और नरूपतराज भंडारी के अनुसार मंदिर में इस भव्य मूर्ति के अलावा आदिनाथ भगवान, विमलनाथ भगवान, शांतिनाथ भगवान, चन्द्रप्रभु स्वामी और शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की मूर्तियां भी हैं। संगमरमर पत्थर से मंदिर में काफी काम कराया है। यह मंदिर आचार्यों के दिशाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय निर्देश एवं आशीर्वाद के फलस्वरूप ही अजमेर शहर में बना। अजमेर शहर में कोई भी शिखरबन्द मंदिर नहीं था। इस मन्दिर की अभी प्रतिष्ठा नहीं की गई है। यहां के श्रद्धालुओं की इच्छा है कि मंदिर की प्रतिष्ठाभी आचार्य श्रीमद्विजय कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. से ही कराई जाये । बस्ती के आसपास जो कॉलोनियां बसी हुई हैं वे भी जैन कॉलोनियों का संकेत कराती हैं जैसे महावीर कॉलोनी, अरिहन्त कॉलोनी और यह वीर लोकाशाह कॉलोनी इन सभी कॉलोनियों की आबादी से यह पूरा क्षेत्र एक तरह से जैन क्षेत्र बन गया। दूसरे शब्दों में यह जैन बाहुल्य क्षेत्र है। इस क्षेत्र में सभी मकान शहर के अन्य मकानों की अपेक्षा काफी अच्छे हैं। इस मंदिर पर करीब ग्यारह लाख खर्च हो चुके हैं और इतनी ही राशि और खर्च होनी है। - दैनिक "नवज्योति " अजमेर के 3 जनवरी 1996 के अंक से साभार । 34 श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर मालवीय नगर, जयपुर दर्शन-वन्दन हेतु सादर आमंत्रण हीराचन्द बैद 40, कल्याण कालोनी, मालवीय नगर, जयपुर-302017 फोन : 551291 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय 35 वासुपूज्य स्वामी का भव्य व कलात्मक मंदिर पुष्कर रोड पर दाहिनी तरफ महावीर कॉलोनी और उसके सामने 'वीर लोकाशाह कॉलोनी' बसी है। इसी कॉलोनी में श्वेताम्बर जैन समाज के 'श्रीवासुपूज्य स्वामी' का मंदिर है। पूरा मंदिर संगमरमर से निर्मित है। यह अजमेर श्वेताम्बर जैन समाज का पहला शिखरबन्द मंदिर है, शेष चार मंदिरों में शिखर नहीं है। माणकचन्द देसलड़ा और प्रकाश भण्डारी ने मंदिर की भलीभांति जानकारी देते हुए बताया कि मूलनायक प्रतिमा भगवान श्री वासुपूज्य स्वामी की है। इनके दोनों तरफ भगवान विमलनाथजी एवं शांतिनाथजी की प्रतिमाएं है। श्रीमद्विजय कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से ही वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा की स्थापना हुई। मंदिर के बाहर दोनों तरफ क्रमश: तीर्थकर आदिनाथजी व चन्द्रप्रभुजी की प्रतिमाएं विराजमान हैं। मंदिर में तीन सर्वधातु की प्रतिमाएं हैं- आदिनाथजी की एक एवं गट्टाजी की दो प्रतिमाएं हैं। मंदिर के रंग मण्डप में भगवान श्री आदिनाथजी, श्री चन्द्रप्रभुजी, श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी, श्री वासुपूज्य स्वामीजी, श्री मणिभद्रजी एवं देवी पद्मावतीजी की प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठित हैं। इस मंदिर को जैन लघुतीर्थ के रूप में विकसित करने वाली योजना के तहत ही यह कार्य कराया गया है। जी.आर. भण्डारी के अनुसार मंदिर में संगमरमर से निर्मित विविध जैन तीर्थों को दर्शाने वाले आठ नयनाभिराम शिला पट्ट लगे हुए हैं-श्री सम्मेदशिखरजी महातीर्थ, श्री शत्रुजय महातीर्थ, श्री गिरनारजी महातीर्थ, श्री अष्टापद महातीर्थ, श्री पावापुरी तीर्थ, श्री केशरियाजी तीर्थ, श्री राणकपुरजी तीर्थ, श्री चंपापुरी तीर्थ, श्री सिद्धचक्र महायंत्रम् आदि। मंदिर की भीतरी गोलाकर छत पर भी इन्द्रइन्द्राणियों की भव्य प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं। चारों तरफ संगमरमर के कलात्मक स्तम्भ हैं। छह कलात्मक मेहराब हैं। इस मंदिर की प्रतिष्ठा अभी शेष है। कलश एवं ध्वज चढ़ाने का धार्मिक कार्यक्रम शीघ्र सम्पन्न होगा। प्रकाश भण्डारी के अनुसार सादड़ी के जैन मंदिरों के कलात्मक सौन्दर्य के अनुसार ही इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय मंदिर का स्थापत्य तराशा गया है। ___आचार्य श्री मनोहरसूरीश्वर जी म.सा. ने यहां मंदिर बनाने के लिए सबसे पहले प्रस्ताव रखा था। इसके लिए पुखराज पोखरणा ने भूमि भेंट करवाई। 12 जनवरी, 83 को यहां मंदिर बनवाने का निर्णय लिया गया। फिर 20 जून, 85 को भूमि पूजन और 12 जून, 86 को शिलान्यास सम्पन्न हुआ। 11 मई, 88 को पंन्यास धरणेन्द्रसागर जी की प्रेरणा से मंदिर भूमि पर बनी एक कोठरी में वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा विराजमान की गई और मूल मंदिर निर्माण का कार्य उसके बाद तीव्र गति से आगे बढ़ा। इस प्रतिमा की 'अन्जनशालाका' राजनगर (अहमदाबाद) में श्री कैलाशसागर सूरीश्वरजी म.सा. द्वारा वीर सम्वत् 2501 माघ वदी तीज के दिन सम्पन्न हुई। मंदिर के प्रवेश द्वार, परिक्रमा स्थल, समवशरण एवं एक उपाश्रय का निर्माण कार्य फिलहाल प्रस्तावित है। अगले माह से प्रवेश द्वार निर्माण का कार्य आरम्भहो जाएगा। इस पर तीन लाख की राशि खर्च होगी जिसके लिए भगवान चन्द्रप्रभु मंदिर ट्रस्ट, मद्रास से स्वीकृति मिल गई है। इसी भांति परिक्रमा मार्ग में जैन तीर्थों के आठ संगमरमर वाले आठ शिला पट्ट लगाने का भी विचार है। एक चबूतरे पर समवशरण की रचना एवं उसमें चारों तरफ मूर्तियां स्थापित कराने की योजना भी है। इनके अलावा एक आराधना स्थल व उपाश्रय भी प्रस्तावित है। इसके लिए श्री जिनशासन सेवा समिति धोलका (अहमदाबाद) ने साठ हजार रुपए का आर्थिक सहयोग दिया है। यहां जैन पुस्तकालय, भोजनालय, धर्मशाला आदि के निर्माण की भी योजना है। इस मंदिर के सहयोग से रियांबाड़ी (नागौर) में पांच सौ वर्ष पुराने एक मंदिर की प्रतिष्ठा कराई गई। इसी के सहयोग से करकेड़ी में भी एक जिनालय का निर्माण प्रस्तावित है। इस मंदिर की यह भी विशेषता है कि निर्माण कार्य के लिए धन जुटाने व इसके निर्माण की देखभाल का सारा कार्य सम्बन्धित ट्रस्ट ही कर रहा है। - "राजस्थान पत्रिका", जयपुर के 27 अगस्त 1996 के अंक से साभार । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय 37 श्रेयस् संधानी आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. जन्म जन्म नाम पिता का नाम माता का नाम जन्म स्थल पत्नी का नाम ससुर का नाम पुत्रों के नाम धन्य जीवन; प्रणम्य व्यक्तित्व : वैशाख सुदी 2, विक्रम संवत् 1980 : अक्षयराज : पाबूदानजी लूंकड : क्षमादेवी : फलोदी (राजस्थान) : रतनदेवी (वर्तमान में साध्वी सुवर्णप्रभा श्री जी) : मिश्रीमलजी : (1) ज्ञानचंद (वर्तमान में पंन्यास प्रवर कलाप्रभ विजयजी) (2) आसकरण (वर्तमान में पू. मुनि कल्पतरू विजयजी) : राजनांदगांव (मध्यप्रदेश) : विक्रम संवत् 2010, वैशाख सुदी 10 व्यवसाय स्थल दीक्षा तिथि Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय दीक्षा नाम : मुनिश्री कलापूर्ण विजयजी दीक्षा गुरू :: मुनिश्री कंचन विजयजी प्रथम चार्तुमास : फलोदी (राजस्थान) पंन्यास पदवी : संवत् 2025 माघ सुदी 13, फलोदी (राजस्थान) आचार्य पदवी : वि.स. 2029 माघ सुदी 3, भद्रेश्वर तीर्थ (कच्छ) दादा गुरु : आचार्य कनक सूरीश्वरजी म.सा. पदयात्रा : राजस्थान, गुजरात (कच्छ), मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तामिलनाडु, कर्नाटक आदि, साधु-साध्वी परिवार : साधु 31, साध्वी 525 राष्ट्रसंत, अध्यात्म योगी, श्रमण संस्कृति के श्रेयस् संधानी आचार्य श्रीमद् विजय कलापूर्ण सूरीश्वरजी महाराज साहब, नितां- निस्पृह संत और भगवद्भक्ति व आराधना के अनन्य उपासक श्रमण-रत्न है । ऋषि परम्परा के ज्योतिर्मय नक्षत्र आचार्य भगवंत, आत्म विकास के शिखरगरी हिमालयी संकल्प के प्रतीक-पुरुष हैं । स्वभाव में सहजता, वाणी में मधुरता, प्रभु भक्ति में तल्लीनता और जीवनचर्या में निस्पृहता आपकी अभिन्न विशेषताएँ हैं। जिनशासन के पारसधर्मी व्यक्तित्व आचार्य श्री के परस से किसी भी आस्थावान व्यक्ति में प्रभुता व प्रभविष्णुता का सहज समावेश होने लगता है। जिस प्रकार बीज अंकुरित व पल्लवित होकर फल-फूल से भरा विशाल वृक्ष बन जाता है और बीज का अस्तित्व ही नहीं रह पाता, उसी प्रकार बूंद-बूंद से घट के भर जाने से ही बूंद का अस्तित्व मिट जाता है। वह पानी से भरे घट का आकार ले लेता है। समाज में या राष्ट्र में उसके व्यक्तिगत हित गौण हो जाते हैं, वह अपनी सीमाओं को छोड़कर 'मेत्ति में सत्व भूवेसू' और 'सर्वहिताय, सर्वसुखाय' की भावना से समृद्ध हो जाता है। आचार्य भगवंत, चेतना की ऐसी ही समग्रता के जीवंत उदाहरण हैं। वे समग्रता के चिन्तक, एकाग्रता के साधक और मानवीयता के पोषक है। आपको कीर्ति, सर्वत्र फैली हुई है। जप-तप करके जीवन और जगत् की सर्वसुख की कामना में निरत आचार्य भगवंत अद्भूत भक्ति, शक्ति, कांति और संपूर्णता में विश्व शांति के करुणामय, कलापूर्ण व्यक्तित्व हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय पूज्य गुरूदेव का संदेश क्ष्‌मा हीजिन धर्म का सार है, उस के हो प्रभाव से दिल में जलती हुई क्रोध की मा अग्निज्वाला शान्त होती है। पश्चिम प्रेम पैदा होता है मैची की सुवास उत्पन्न होती है. मैची को द्वारा हम-चैर विरोध को शान्त करके सभी जीवो के मित्र बनते हैं। सभी लोक हम को चाहते हैं। सब काहिल चाहना और हित परोपकार करना यही मनुष्य जीवन का सार है क्षमा- मैत्री और परोपकार से प्रभु कृपा को प्राप्त कर, जीवन सफल बनाओ यही शुभ कामना वि. कलापूर्ण सूरि का धर्मलाभ 39 वस्तुत: यही मैत्रीभाव, जैन दर्शन और भारतीय जीवन मूल्यों की धरोहर है । इसे आचार्य प्रवर ने जीवन में उतार लिया है। यही कारण है कि उनका क्षण-क्षण आत्मचेतना और परार्थ - भावना से धन्य हो रहा है । वे सदैव मानवजीवन की दुर्लभता तथा उसकी विराट संभावनाओं की ओर संकेत करते हैं, पश्चात् साधारण व्यक्ति भी ठहर नहीं जाता, आत्म-संधान में जुट जाता है। एक ऐसे मार्ग पर चलकर वह जीवन के उच्चतर लक्ष्यों की खोज में खो जाता है जहां खोने के लिए होता है सिर्फ संसार और पाने के लिए जीवन का शाश्वतआधार ! - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat - आचार, विचार, चिन्तन-मनन, भक्ति-शक्ति के साथ ही वाणी और मौन दोनों में मुखर आचार्य देव को कोटिशः नमन्. । - डॉ. चन्द्रकुमार जैन प्राध्यापक, शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगाँव (म.प्र.) www.umaragyanbhandar.com Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 40 TERRIGOLOFS સંનપાલભ વિ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय जन्म जन्म नाम दीक्षा गणीपद पंन्यासपद आचार्यपद HIND એ શા મ कोबी वर्धमान तपोनिधि विजय भुवनभानु सूरीश्वरजी म.सा. का जीवन-परिचय 19 अप्रेल 1911 (अहमदाबाद) श्री कान्तीलाल चाणस्मा 1935 में पूना 1956 में सुरेन्द्रनगर 1959 में अहमदाबाद 1973 में Jmara, Surat BOT www.umaragyanbhandar.com Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय पिता स्वर्गवास - अहमदाबाद 1993 में माता - श्रीमती भूरी बहन - श्रीमान् चिमनभाई श्री चिमनभाई के लाड़ले सुसंस्कारी कान्तीलाल जी के 3 भाई तथा 3 बहिनें थी, उस समय 21 वर्ष की आयु में आपने लन्दन की बैंकिग परीक्षा प्रथम स्थान से पास की। बैंक में नौकरी की तथा 23 वर्ष की उम्र में पूज्य आचार्य श्री विजय प्रेमसूरीश्वर जी महाराज साहब से भगवती दीक्षा अंगीकार कर संसार सागर पार करने के लिए संयम पथ पर अग्रसर हो गये। तप, त्याग, ज्ञान की साधना के बल पर आप आचार्य श्री प्रेम सूरीश्वरजी महाराज साहब के प्रधान शिष्य रत्न बन गये थे। आप का नाम लेते ही आप के साथ जुड़े ऐतिहासिक कीर्तिमान जैसे धार्मिक शिक्षण शिविर, संघ एकता, शासन सेवा, सादा जीवन उच्च विचार, तप-संयम-ज्ञान व वैराग्य की साक्षात् मूर्ति आँखों के सामने उतर आती है। न्याय शास्त्र का सांगोपांग अभ्यास कर न्याय विशारद बने तथा अनेक ग्रंथों का सृजन कर साहित्य को सुनहरा बनाया। 59 वर्ष के संयमी जीवन में आप श्री ने 400 भाई बहनों को दीक्षा अंगीकार करा जैन शासन की गरिमा बढ़ाई इनमें से अधिकांश संयमी, ज्ञानी, तपस्वी एवं विद्वान चरित्र आत्माओं को जैन शासन को समर्पित किये जिनमें वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री जयघोष सूरीश्वरजी एवं धनपाल सूरीश्वरजी, धर्मजीत सूरीश्वरजी, धर्मगुप्त विजयजी, भद्रगुप्त सूरीश्वरजी, जितेन्द्र सूरीश्वरजी, गुणरत्न सूरीश्वरजी, राजेन्द्र सूरीश्वरजी, हेमचन्द्र सूरीश्वरजी, जगचंद्र सूरीश्वरजी,जयशेखर सूरीश्वरजी, चन्द्रशेखर विजयजी, रत्नसुन्दर विजयजी, हेमरल विजयजी, जयसुन्दर विजयजी, अभयशेखर विजयजी, भुवन सुन्दर विजयजी आदि प्रमुख हैं। आपने उग्र विहार कर जैन पताका को राजस्थान, गुजरात, सौराष्ट्र, बिहार, बंगाल, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश आदि देश के कोने-कोने में फहराया। आपने 17 वर्ष तक आयंबिल तप कर जीवन को रसना विजेता बनाया, जीवन भर फलफूल, मिठाई, नमकीन का त्याग किया। आपने जीवन में एक ही लक्ष्य रखा था और वह था मोक्ष की प्राप्ति। अत: आप क्षण भर भी फालतू नहीं खोते थे। 83 वर्ष की उम्र में 59 वर्ष का निर्मल संयम जीवन पाला तथा नवपद की बेजोड़ आराधना की, वर्धमान तप की 108 ओलीजी करीब 6000 से भी अधिक आयंबिल किये आप में सूत्रों को कंठस्थ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय करने की अद्भुत क्षमता थी। आपने अपने गुरुदेव से संघ एकता का अद्भुत पाठ पढ़ा था और अपने जीवन में उसे चरितार्थ कर बताया। "परम तेज, महानग्रंथकार, हजारों युवाओं को सही दिशा में जागृत करने वाले जिनकी आँखों में था-आत्म भाव का अंजन जिनके हृदय में था-परमात्मा भक्ति का गुंजन जिनकी लेखनी में था-जिनवचन का अगाध चिंतन जिनके मस्तिष्क में था-विविध शास्त्रों का मंथन जिनके मन में था-संघ व शासन एकता के भाव ऐसे थे अनेक गुणवाले प्रतिभा सम्पन्न आचार्य श्री विजय भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराज।" पूज्य श्री की प्रथम स्वर्गारोहण तिथि पर दिसम्बर 1996 में पंकज सोसायटी अहमदाबाद में एक ऐतिहासिक 8 दिवसीय महोत्सव का आयोजन बहुत ही विशाल रूप में किया गया था जो बड़ा ही अनुमोदनीय एवं शासन प्रभावना युक्त रहा। करीब 250 मुनि भगवन्तों एवं 1150 साध्वीजी म.सा. ने इसमें भाग लिया। महोत्सव में भाग लेने के लिये देश के कोनेकोने से भक्त गण पधारे, विशाल पण्डाल में 10 हजार लोगों के ठहरने की, 50 हजार लोगों के बैठकर भक्ति भावना करने की तथा भोजन करने की व्यवस्था थी। 1150 साध्वी जी भगवन्तों की पावन निश्रा में 40 हजार श्राविकाओं ने सफेद वस्त्र धारण कर सामायिक की और बाद में एक विशाल शोभायात्रा का आयोजन पूज्य श्री के जन्म स्थल से किया गया जिसमें 50 आचार्यो, हजारों साधु-साध्वीजी लाखों की तादाद में लोगों ने भाग लिया। एक विशाल प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया जिसमें 141 से अधिक शिक्षाप्रद मॉडल दर्शाये गये थे। इस महान प्रेरणा दायक महोत्सव को देखकर हजारों अजैनों ने व्यसन मुक्ति तथा जैनों ने बारहवृत्त के नियम ग्रहण किये। इस प्रकार इस महोत्सव ने एक अमिट छाप छैन जगत में छोड़ी है। -पंन्यास श्री भुवनसुन्दर विजय, सूरत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय 42 भाषा-ज्ञान (राष्ट्रसंत, आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी म.सा.) मूल नाम : श्री प्रेमचन्द / श्री लब्धिचंद पिता का नाम श्री रामस्वरूपसिंहजी माता का नाम श्रीमती भवानीदेवी जन्म-तिथि 10 सितम्बर, 1935 (मंगलवार) जन्म-स्थल अजीमगंज (बंगाल) प्रारंभिक शिक्षा अजीमगंज में धार्मिक शिक्षा शिवपुरी संस्थान में बंगाली, हिन्दी, गुजराती, संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी व अंग्रेजी दीक्षा-तिथि 13 नवम्बर, 1954 (शनिवार) दीक्षा-स्थल साणंद (गुजरात) दीक्षा-प्रदाता आचार्य श्री कैलाशसागर सूरीश्वरजी म.सा. गुरुदेव आचार्य श्री कल्याणसागर सूरीश्वरजी म.सा. गणीपद 28 जनवरी, 1974 (सोमवार)को जैन नगर, अहमदाबाद में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय पंन्यासपद : 8 मार्च, 1976 (सोमवार)को जामनगर (गुजरात) में आचार्यपद 9 दिसम्बर, 1976 (गुरुवार) को मेहसाणा (गुजरात) में विचरण-क्षेत्र राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडू, बिहार, पं.बंगाल, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, गोआ, दिल्ली तथा नेपाल(विदेश) पद-यात्रा लगभग 1 लाख किलोमीटर से अधिक प्रग्क कार्य : श्री सम्मेद शिखर तीर्थ उद्धारक, जैन मंदिर हरिद्वार तथा काठमांडू (नेपाल) में प्रथम जैन मंदिर की प्रतिष्ठा, श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा (गुजरात) की स्थापना आदि। विशेष : आपकी वाणी में अद्भुत जादू एवं प्रभावशाली आकर्षण शक्ति है जिससे आपके सम्पर्क में आने वाला हमेशा के लिए आपका परम भक्त बन जाता है। आपका प्रभाव गरीबों-अमीरों, उच्च राजनेताओं तथा साधारण आम लोगों में बहुत ही गजब का है। विदेशों में भी आपका प्रभाव विद्यमान है। आप क्रांतिकारी संतरल है। विद्वता पर आपका पूर्ण अधिकार है। आपके उपदेश अमृत-वर्षा के समान है। पुष्कर रोड (अजमेर) स्थित जैन लघुतीर्थ निर्माण में आपका आशीर्वाद एवं आपके ही प्रथमशिष्य उपाध्याय श्री धरणेन्द्र सागरजी म.सा. की पहल से जो धार्मिक विकास इस क्षेत्र का हुआ है वह अविस्मरणीय रहेगा। पूज्य श्री के चरणों में कोटि-कोटि वन्दना। -प्रकाश भण्डारी (आर.ई.एस.) जिला शिक्षा अधिकारी, अजमेर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय (शान्तिदूत आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरीश्वरजी म.सा.) जन्म : श्रावण वदी 4 विक्रम सम्वत् 2015 जन्म-नाम : प्रवीण माता : श्रीमती राजरानीजी पिता : श्री चिमनलालजी जन्म-स्थल : दिल्ली दीक्षा : मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी, विक्रम सम्वत् 2024 दीक्षा-गुरु : आचार्य विजय समुद्र सूरीश्वरजी म.सा. गणीपद : थाणा(बम्बई) में पंन्यासपद : दिल्ली 1989 में आचार्यपद : पालीताना 1993 में प.पू. शान्तिदूत जीर्णोद्धार प्रेरक आचार्य भगवन्त श्री नित्यानन्द सूरीश्वरजी म.सा. के 41 वें जन्म दिवस(13 जुलाई 1998) पर हार्दिक शुभकामनाएं। चरणों की रज श्रीमती रानी भण्डारी एडवोकेट जयपुर (राज.) फोन नं. 0141-564348 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय | संतों की अद्भुत महिमा • संतों की महिमा बड़ी अपार है। संत जहां पैर रख देते हैं, वही स्थान तीर्थ बन जाता है। संत जो भगवद्विषयक बातें करते हैं, वही शास्त्र बन जाता है। संत का मिलना ही दुर्लभ है। यदि वे मिल गए तो काम बन गया। उनके वस्तु-गुण से ही काम बन जाता है। श्रद्धा होने पर काम हो इसमें कौनसी बड़ी बात है। जैसे अमृत का स्पर्श हुआ कि अमर बन गए, वैसे ही किसी प्रकार से भी संत-स्पर्श हो गया तो कल्याण हो ही गया। संत को पहचान कर उनकी सेवा करने से तो कल्याण होता ही है बल्कि उनके दर्शन से भी कल्याण होता है। संत-दर्शन होने पर ही भगवान की अनुभूति होती है। संत का मिलना अमोघ है यानि अचानक भी उनका संग हो गया तो वह खाली नहीं जाएगा। अन्त में कल्याण करके ही छोडेगा। संत और भगवान में भेद नहीं है, तभी तो नारदजी ने कहा- 'तस्मिस्तजने भेदाभावात्' यानि संत और भगवान में भेद का अभाव है, दोनों एक ही जिसे संत ने स्वीकार कर लिया वह भगवान के द्वारा भी अपना लिया गया, इसमें कभी भूलकर भी संदेह न करें। संतों की डांट-फटकार भी वरदान है क्योंकि डांट-फटकार माता केवल अपने बेटे पर ही कर सकती है, दूसरे पर नहीं। अत: वह संत मां हो गया। • जो संतों से हर हालत में जुड़ा ही रहता है वह अन्त में भगवान के हृदय का टुकड़ा बन जाता है, चाहे संत कैसा ही व्यवहार करें। संत की कही वाणी, आश्वासन कभी खाली नहीं जाता, वे जो कह देते हैं, भगवान को वह सहर्ष स्वीकार है। जिसने संत के हृदय का प्यार पा लिया उसके लिए तो भगवान मिलने के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय लिए लालायित-आतुर रहते हैं। संत और भगवान के हृदय दो नहीं है। जो बात संत के हृदय में आ गई, जैसे 'अमुक का कल्याण हो' तो भगवान उसको अवश्य ही पूरा करते हैं। भगवान की बड़ी भारी कृपा होने पर ही संत मिलते हैं, जैसे गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा – 'बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिं संता।' संत की आज्ञा कभी भूलकर भी नहीं टालें। संत के हाथ भगवान सदा बिके हुए ही रहते हैं । जो संत का प्यारा है वह वास्तव में भगवान का ही प्यारा है। संत का हृदय भगवान का घर है। संत विनोद में जो भी कह देते हैं, वह भगवान को मंजूर हो जाता है। • संत तीर्थ को भी महान् तीर्थत्व प्रदान करते हैं। -"दैनिक नवज्योति", अजमेर के 2 अक्टूबर, 1998 के अंक से साभार। *** ** ___ लोग कहते हैं कि समय धन है, लेकिन मेरी समझ में समय धन से भी ज्यादा मूल्यवान है। धन को हम पुनः पा सकते है, लेकिन समय को नहीं। अधिक धन को हम तिजोरी में रख सकते हैं, लेकिन समय के लिए कोई तिजोरी नहीं हैं। जीवन से अगर प्रेम है तो समय से भी प्रेम करो, क्योंकि जिंदगी समय की ही तो जोड़ है। जीवन का प्रत्येक क्षण भगवन्मय बना कर अपनी चेतना, विकास के उत्तुंग शिखर की ओर अग्रसर करो। -आचार्य विजय कलापूर्ण सूरी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मन्दिर, अजमेर सलाहकार बोर्ड के सदस्य श्री हीराचन्द बैद श्री मोहनराज भण्डारी श्री मिलापचन्द जैन श्री बादलचन्द भण्डारी श्री कुशलचन्द संचेती डा. जे.सी.बैद (अध्यक्ष-मन्दिर कमेटी) Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय (स्व. आचार्य श्री मनोहर सूरीश्वरजी म.सा.) हर दिल है सोगवार तो हर आँख अश्कवार । यह कौन आज अज्म से उठकर चला गया | श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मन्दिर निर्माण के प्रथम प्रेरक - स्व. राजस्थान केसरी, आचार्य श्री मनोहर सूरीश्वरजी म.सा. के चरण कमलों में कोटि-कोटि वन्दना। -मोहनराज भण्डारी अध्यक्ष - श्री जैन श्वेताम्बर श्री संघ (रजि.) अजमेर प्रादेशिक प्रतिनिधि - सेठ श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी, (अहमदाबाद) 62, महावीर कॉलोनी पुष्कर रोड, अजमेर (राज.) Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय (प.पू. तपस्वीसम्राट स्व. आचार्य श्री राजतिलक सूरीश्वरजी म.सा.) जीना और जन्म लेना तो उसी का सार्थक है, जिसके जीने और जन्म लेने से समाज गौरवान्वित होता हैं, शासन की प्रभावना होती है, दिव्यज्ञान से समाज को सरज्ञान का आलोक मिलता है......इसी क्रम के सिद्धहस्त जैनाचार्य है.....राष्ट्रसन्त, तपस्वीसम्राट प.पू. आचार्य भगवन्त 1008 श्रीमद् विजय राजतिलक सूरीश्वरजी म.सा. । स्वर्गवास 12 अगस्त 98, अहमदाबाद। ___“ऐ मौत! आखिर तुझ से नादानी हुई, फूल वो चुना, जिससे गुलशन की वीरानी हुई।" वाणी के जादूगर, भक्तों की परम आस्था के सिरमौर तपस्वी सम्राट आपके चरणों में कोटि-कोटि वन्दना। -एम. मंगलचन्द भण्डारी हिन्दी साहित्य-विशारद 30, महावीर काँचोनी, पुष्कर रोड, अजमेर (राज.) 305 001 फोन: 421771 Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय प.पू. उपाध्याय श्री धरणेन्द्र सागरजी म.सा. स्वर्गवास 8 अक्टूबर, 1998 को अहमदाबाद में पहले ही जख्म बहुत थे पर, विधि ने तो हार नहीं मानी। जो था जिन शासन का नायक, वह विदा हो गया हमसे। प.पू. राष्ट्रसन्त, आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी म.सा. के वरिष्ठ शिष्यरत्न, नूतन जैन लघुतीर्थ (अजमेर) के सहयोगी एवं आशीर्वाददाता, उपाध्याय श्री धरणेन्द्र सागरजी म.सा. सौम्य, शान्त-स्वभावी एवं स्पष्ट वक्ता थे।आप सदा अध्यनरत और प्रभु-भक्ति में सदैव निमग्न रहते थे। बड़े-छोटे का भेद आपके मन में नहीं था। सभी श्रावकों के साथ आत्मीयतापूर्ण और प्रभावित करने वाला मधुर-व्यवहार आपका श्रेष्ठ गुण था। प.पू. उपाध्याय श्री धरणेन्द्र सागरजी म.सा. को हार्दिक श्रद्धांजलि। -जिनेन्द्र भण्डारी द्वितीय वर्ष (वाणिज्य) राज महाविद्यालय, अजमेर Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नूतन जैन लघुतीर्थ, अजमेर ..... आशीर्वाददाता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com danbh Ik Lublitt billede 1831. LAŽIL'h hallelte 'klipeli Piib kujhe Elbhe, bb । भगवन्त श्री भुवनभानु सूरीश्वरजी म.सा. सूरीश्वरजी म.सा. Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ElcPbla વૈને ગ્રંથ. Lore! राजस्थान के धार्मिक नगर अजमेर का ऐतिहासिक प्रथम शिखरबन्द मन्दिर श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मन्दिर, पुष्कर रोड, मुद्रक: रतन स्क्रीन प्रिण्टर्स, अजमेर फोन: 621979 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com