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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
गलत समाचारों के धोखे में न आवें तीर्थ व्यवस्था यथावत
श्री सम्मेद शिखरजी महातीर्थ के सम्बन्ध में प्रतिपक्ष की ओर से गलत समाचारों का प्रकाशन कर भोले-भाले श्रद्धालुओं को भ्रमित किया जा रहा है। झूठे समाचारों पर विश्वास न करें।
तीर्थ की व्यवस्था पूर्ववत है, अभी कोई परिवर्तन नहीं हुआ। कई केस न्यायालय में विचाराधीन हैं।
यह स्पष्ट है कि संविधान के तहत श्री सम्मेद शिखरजी तीर्थ की व्यवस्था और आधिपत्य सन् १९४७ के पूर्व से 'श्वेताम्बर जैन समाज का है, उसे परिवर्तन करने के लिए संविधान में परिवर्तन करना होगा। ऐसा करने से देश के पचासों धर्मस्थलों के विवाद पुनः उठ खड़े होंगे जिस पर काबू पाना शासन के लिए दुष्कर हो जायेगा।
-"श्वेताम्बर जैन"आगरा, 8 मई 98
सम्मेद शिखर तीर्थ के 10 लाख रु. किसने डकारे?
श्री सुभाष जैन केवल झूठ का पोषण ही नहीं करते स्वयं अपने क्रोध का पोषण भी करते रहते हैं। "णमो तित्थस्स" के दिसम्बर अंक से तिलमिलाए व अपने आप पर क्रोधित श्री सुभाषजी तीन महीने उपरान्त भी शान्त नहीं हो पाए। अपने क्रोध-पोषण के कारण असंतुलित मस्तिष्क से अनाप-शनाप व अनर्गल बातें हैंडबिल के माध्यम से छाप कर अपने कथित सर्वोच्च नेतृत्व को शर्मनाक स्थिति में ला खड़ा कर दिया। वे आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी से पर्वत राज के जंगलों की आय के लालच को त्यागने की बात कहते हैं जब कि उन्हें पता नहीं कि आनन्दजी कल्याणजी ने ही बिहार सरकार के जंगलात विभाग को जंगल न काटने का निवेदन कर 1980 से ही जंगल कटवाना बंद कर दिया। उससे पूर्व मात्र 17 लाख के लगभग की बांस व लकड़ी वहां से निकली, जिसमें 10 लाख की लकड़ी तो साहू अशोक जैन ने अपनी रोहताश इण्डस्ट्रीज के लिए ली, जिसका पैसा आज तक नहीं दिया। यह स्पष्ट उदाहरण है तीर्थराज का पैसा दिगम्बर समाज के कथित सर्वोच्च नेता द्वारा डकारने का। हम तो इन बातों को दोहराना नहीं चाहते थे पर विवशतावश हैण्डबिल का स्पष्टीकरण बिन्दुवार देने के कारण लिखना पड़ा।
के विद का हल तभी संभव है जब दिगम्बर समाज का नेतृत्व कुशल, सच्चे, ईमानदार व जैन धग के निमा का पालन करने वाले श्रावकों के हाथ में आए।
-अप्रेल 1998 के "मो तित्यस्स"नई दिल्ली से साभार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com