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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
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जब कि पुस्तक स्वयं पाठकों से परिचित होने उनके हाथों में पहुँच रही है। हां, मैं श्री मोहनराजजी भण्डारी को हार्दिक धर्मलाभ देना चाहूंगा कि उन्होंने स्थिति की नाजुकता को समझ कर यह पुस्तक लिखने का प्रशंसनीय कार्य, निस्वार्थ भावना से किया है।
अहमदाबाद ता. 28 जून 1998
-उपाध्याय धरणेन्द्रसागर . (कई धार्मिक पुस्तकों के विद्वान् लेखक)
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