________________
12
"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
| प्रकाशक के दो शब्द
कई आचार्य भगवन्तों, विशेष रूप से शान्तिदूत आचार्य श्री नित्यानन्द सूरीश्वरजी म. सा. एवं विद्वान् पंन्यास भुवनसुन्दर विजयजी म.सा. की प्रेरणा और सलाह थी कि महान् पवित्र तीर्थ सम्मेद शिखर को लेकर उत्पन्न किये गये तथाकथित विवाद तथा बहु प्रचारित भ्रमकप्रचार का ठोस और न्याससंगत आधार पर निराकरण किया जाये।
प्रभु की कृपा और आचार्य भगवन्तों के शुभ आशीर्वाद से श्रद्धेय श्री मोहनराजजी साहब भण्डारी, जो पिछले लगभग 50 वर्षों से अपनी पुस्तकों और कई समाचार पत्रों के माध्यम से एक प्रशंसनीय और प्रतिष्ठित विशेष पहिचान बनाये हुए हैं, ने मेरे विशेष आग्रह भरे अनुरोध पर अपनी अस्त-व्यस्त दिनचर्या के बावजूद सम्मेद-शिखर के तथाकथित विवाद के बारे में पुस्तक लेखन-सम्पादन के भार को वहन करना स्वीकार कर मुझे एक प्रकार से उपकृत किया है। इसके लिए किन शब्दों में आभार व्यक्त करूं, मेरे पास शब्द नहीं हैं।
प्रस्तुत पुस्तक बहुत ही अल्प समय के बीच लेखन-सम्पादन से लगाकर मुद्रण तक अपना स्वरूप ले पाई है। ___मुझे तो इस बात की हार्दिक प्रसन्नता है कि हमारा यह लघु एवं सामयिक प्रयास प्रभु कृपा और भण्डारी साहब के कृपापूर्ण अमूल्य सहयोग से पूर्ण होकर पुस्तक रूप में आपके कर कमलों तक पहुँच रहा है।
मेरा विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक "सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा?" आम लोगों को विशेषकर समाज के प्रबुद्ध विचारशील लोगों को नये सिरे से पुनः सोचने-समझने की प्रेरणा देगी।
यह कटु सत्य है कि भ्रामक प्रचार और राजनीतिक दबाव के सहारे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com