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________________ 36 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय मंदिर का स्थापत्य तराशा गया है। ___आचार्य श्री मनोहरसूरीश्वर जी म.सा. ने यहां मंदिर बनाने के लिए सबसे पहले प्रस्ताव रखा था। इसके लिए पुखराज पोखरणा ने भूमि भेंट करवाई। 12 जनवरी, 83 को यहां मंदिर बनवाने का निर्णय लिया गया। फिर 20 जून, 85 को भूमि पूजन और 12 जून, 86 को शिलान्यास सम्पन्न हुआ। 11 मई, 88 को पंन्यास धरणेन्द्रसागर जी की प्रेरणा से मंदिर भूमि पर बनी एक कोठरी में वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा विराजमान की गई और मूल मंदिर निर्माण का कार्य उसके बाद तीव्र गति से आगे बढ़ा। इस प्रतिमा की 'अन्जनशालाका' राजनगर (अहमदाबाद) में श्री कैलाशसागर सूरीश्वरजी म.सा. द्वारा वीर सम्वत् 2501 माघ वदी तीज के दिन सम्पन्न हुई। मंदिर के प्रवेश द्वार, परिक्रमा स्थल, समवशरण एवं एक उपाश्रय का निर्माण कार्य फिलहाल प्रस्तावित है। अगले माह से प्रवेश द्वार निर्माण का कार्य आरम्भहो जाएगा। इस पर तीन लाख की राशि खर्च होगी जिसके लिए भगवान चन्द्रप्रभु मंदिर ट्रस्ट, मद्रास से स्वीकृति मिल गई है। इसी भांति परिक्रमा मार्ग में जैन तीर्थों के आठ संगमरमर वाले आठ शिला पट्ट लगाने का भी विचार है। एक चबूतरे पर समवशरण की रचना एवं उसमें चारों तरफ मूर्तियां स्थापित कराने की योजना भी है। इनके अलावा एक आराधना स्थल व उपाश्रय भी प्रस्तावित है। इसके लिए श्री जिनशासन सेवा समिति धोलका (अहमदाबाद) ने साठ हजार रुपए का आर्थिक सहयोग दिया है। यहां जैन पुस्तकालय, भोजनालय, धर्मशाला आदि के निर्माण की भी योजना है। इस मंदिर के सहयोग से रियांबाड़ी (नागौर) में पांच सौ वर्ष पुराने एक मंदिर की प्रतिष्ठा कराई गई। इसी के सहयोग से करकेड़ी में भी एक जिनालय का निर्माण प्रस्तावित है। इस मंदिर की यह भी विशेषता है कि निर्माण कार्य के लिए धन जुटाने व इसके निर्माण की देखभाल का सारा कार्य सम्बन्धित ट्रस्ट ही कर रहा है। - "राजस्थान पत्रिका", जयपुर के 27 अगस्त 1996 के अंक से साभार । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035236
Book TitleSammetshikhar Vivad Kyo aur Kaisa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanraj Bhandari
PublisherVasupujya Swami Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1998
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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