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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
सम्मेद शिखरजी पर मालिकाना हक मात्र श्वेताम्बर जैन
समाज का ही है भारत के सम्राट अकबर ने श्री विजय हीरविजय सूरीश्वरजी महाराज को दिल्ली आने का निमंत्रण दिया। उस प्रार्थना के अनुसार वे दिल्ली पधारें और वार्तालाप के दौरान उन्होंने सम्राट अकबर से पारसनाथ हिल के लिये श्वेताम्बर जैन समाज के पक्ष में एक फरमान जारी करने की प्रार्थना की। सम्राट अकबर ने श्वेताम्बरों के पक्ष में एक फरमान सोलहवीं शताब्दी में जारी किया। वह एक मिलकीयता का दस्तावेज है। कानून के अनुसार जो दस्तावेज तीस वर्ष पुराना हो और यदि वह उचित माध्यम द्वारा पेश किया जावे तो साक्ष्य के तौर पर मान्य होता है और साक्ष्य में बिना किसी सबूत के स्वीकार किया जाता है।
इसके अतिरिक्त राजा रामबहादुर सिंह और साथी व नगर सेठ कस्तूरभाई मनुभाई और साथियों की अपील संख्या 125 सन् 1930 में प्रिवी कौंसिल के निर्णय के अनुसार पारसनाथ हिल के बाबत पालगांग एस्टेट द्वारा दिनांक 9 मार्च, 1918 को श्वेताम्बरों के पक्ष में बेचान नामा कानून की दृष्टि में वैध है और सम्बन्धित पक्ष उसको मानने के लिये बाध्य है। रेस्ज्यूडिकेटा के सिद्धान्त के अनुसार यह प्रश्न फिर नहीं उठाया जा सकता है। जो निर्णय दिया गया है वह अन्तिम निर्णय है, इसका कोई विरोध मान्य नहीं हो सकता है।
पूजा-स्थान (स्पेशल प्रोवीजन) अधिनियम 1991 के
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