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"सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?"
94 को सेठ आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ श्रेणिक भाई कस्तूर भाई को एक पत्र में लिखा है
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'मैं सोचता हूँ एक ओर दिगम्बर परम्परा के महामनीषी आचार्य श्री विद्यानन्दजी महाराज जो एकता के सजग प्रहरी हैं, दूसरी ओर श्वेताम्बर समाज के मूर्धन्य मनीषी आचार्य श्री पद्मसागरजी महाराज, इन दोनों महामनीषियों को मिलकर जो प्रश्न समुपस्थित किया गया है उस पर चिन्तन कर यह निर्णय लेना चाहिए कि एकदूसरे के कार्य में हस्तक्षेप न किया जाये तभी समाज की एकता सुरक्षित रह सकेगी।”
बिहार सरकार द्वारा प्रस्तावित अध्यादेश का दिगम्बर समाज की नेतागिरी करने वाले लोग जिस तरह की वकालात, स्वागत एवं प्रचार कर रहे हैं उससे स्वत: ही स्पष्ट होता है कि इस अध्यादेश को जारी करवाने में उन्होंने सभी प्रकार के हथकण्डों का प्रयोग किया है।
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श्वेताम्बर समाज के मुख्य तीन सम्प्रदाय हैं— मन्दिर मार्गी साधु मार्गी व तेरापंथी समाज, इनको भी अध्यादेश में प्रबन्ध और मालिकाना हक दिलाने का प्रलोभन दिया गया है लेकिन साधुमार्गी व तेरापंथी समाज भी, सम्मेत शिखर विवाद में सरकारी हस्तक्षेप के सख्त विरूद्ध हैं। फिर भी श्रमण संस्कृति रक्षा समिति (दिगम्बर समाज) के संयोजक श्री सुभाष जैन द्वारा प्रसारित 27 मई 1994 के एक, छः पृष्ठीय लिफलेट में तथ्यों एवं सत्यों को जिस तरह तोड़-मरोड के प्रस्तुत किया गया है
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