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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
प्रस्तावना
धार्मिक क्षेत्र में जब राजनीति का पदार्पण होता है तब विषम स्थितियों का जन्म स्वतः हो जाता है और यह विषम स्थितियां धर्म के अनुयायियों को आपस में इस तरह बांट गुजरती है कि धर्म की मूल भावना के प्रति भी हम जाने-अनजाने अपने कर्तव्य और दायित्व से भी मुंह मोड़ बैठते हैं । राजनीति में धर्म का वर्चस्व बढ़ता है तो सुख-शान्ति की लहर उत्पन्न होती है लेकिन धर्म में जब राजनीति अपने पांव पसारती है तो द्वेषकलह का जन्म होता है और उससे सभी को पीड़ित होना पड़ता
है।
महान् धार्मिक तीर्थ सम्मेद शिखर का तथाकथित विवाद जिस उलटे-सीधे रास्तों से उठाया गया और कानून के दायरे में ले जाया गया वह बहुत ही पीडाजनक बात है। इससे समूचे जैन समाज और जैन धर्म की प्रतिष्ठा को भारी आघात पहुँचना स्वाभाविक ही है। लेकिन इससे भी दो कदम आगे बढ़कर राजनीतिक प्रभाव और दुष्प्रचार के सहारे वर्षों से चली आ रही तीर्थ-व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर उसके प्रबन्ध में हक प्राप्त करने की कुटिल चालों का खेल-खेलने वाले यह न भूले कि इस धरती से ऊपर भी एक ऐसी अदालत है जहाँ न्याय, नैतिकता और ईमानदारी के अतिरिक्त किसी भी तरह की न तो पहुँच है
और न कोई स्थान। कम से कम धार्मिक मामलों में तो गलत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com