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________________ 44 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय पंन्यासपद : 8 मार्च, 1976 (सोमवार)को जामनगर (गुजरात) में आचार्यपद 9 दिसम्बर, 1976 (गुरुवार) को मेहसाणा (गुजरात) में विचरण-क्षेत्र राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडू, बिहार, पं.बंगाल, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, गोआ, दिल्ली तथा नेपाल(विदेश) पद-यात्रा लगभग 1 लाख किलोमीटर से अधिक प्रग्क कार्य : श्री सम्मेद शिखर तीर्थ उद्धारक, जैन मंदिर हरिद्वार तथा काठमांडू (नेपाल) में प्रथम जैन मंदिर की प्रतिष्ठा, श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा (गुजरात) की स्थापना आदि। विशेष : आपकी वाणी में अद्भुत जादू एवं प्रभावशाली आकर्षण शक्ति है जिससे आपके सम्पर्क में आने वाला हमेशा के लिए आपका परम भक्त बन जाता है। आपका प्रभाव गरीबों-अमीरों, उच्च राजनेताओं तथा साधारण आम लोगों में बहुत ही गजब का है। विदेशों में भी आपका प्रभाव विद्यमान है। आप क्रांतिकारी संतरल है। विद्वता पर आपका पूर्ण अधिकार है। आपके उपदेश अमृत-वर्षा के समान है। पुष्कर रोड (अजमेर) स्थित जैन लघुतीर्थ निर्माण में आपका आशीर्वाद एवं आपके ही प्रथमशिष्य उपाध्याय श्री धरणेन्द्र सागरजी म.सा. की पहल से जो धार्मिक विकास इस क्षेत्र का हुआ है वह अविस्मरणीय रहेगा। पूज्य श्री के चरणों में कोटि-कोटि वन्दना। -प्रकाश भण्डारी (आर.ई.एस.) जिला शिक्षा अधिकारी, अजमेर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035236
Book TitleSammetshikhar Vivad Kyo aur Kaisa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanraj Bhandari
PublisherVasupujya Swami Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1998
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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