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श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय
पूज्य गुरूदेव का संदेश
क्ष्मा हीजिन धर्म का सार है, उस के हो प्रभाव से दिल में जलती हुई क्रोध की मा अग्निज्वाला शान्त होती है। पश्चिम प्रेम पैदा होता है मैची की सुवास उत्पन्न होती है.
मैची को द्वारा हम-चैर विरोध को शान्त करके सभी जीवो के मित्र बनते हैं। सभी लोक हम को चाहते हैं। सब काहिल चाहना और हित परोपकार करना यही मनुष्य जीवन का सार है
क्षमा- मैत्री और परोपकार से प्रभु कृपा को
प्राप्त कर, जीवन सफल बनाओ यही शुभ कामना वि. कलापूर्ण सूरि का धर्मलाभ
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वस्तुत: यही मैत्रीभाव, जैन दर्शन और भारतीय जीवन मूल्यों की धरोहर है । इसे आचार्य प्रवर ने जीवन में उतार लिया है। यही कारण है कि उनका क्षण-क्षण आत्मचेतना और परार्थ - भावना से धन्य हो रहा है । वे सदैव मानवजीवन की दुर्लभता तथा उसकी विराट संभावनाओं की ओर संकेत करते हैं, पश्चात् साधारण व्यक्ति भी ठहर नहीं जाता, आत्म-संधान में जुट जाता है। एक ऐसे मार्ग पर चलकर वह जीवन के उच्चतर लक्ष्यों की खोज में खो जाता है जहां खोने के लिए होता है सिर्फ संसार और पाने के लिए जीवन का शाश्वतआधार !
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आचार, विचार, चिन्तन-मनन, भक्ति-शक्ति के साथ ही वाणी और मौन दोनों में मुखर आचार्य देव को कोटिशः नमन्. ।
- डॉ. चन्द्रकुमार जैन प्राध्यापक, शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय
राजनांदगाँव (म.प्र.) www.umaragyanbhandar.com