Book Title: Sammetshikhar Vivad Kyo aur Kaisa
Author(s): Mohanraj Bhandari
Publisher: Vasupujya Swami Jain Shwetambar Mandir

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Page 125
________________ 38 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय दीक्षा नाम : मुनिश्री कलापूर्ण विजयजी दीक्षा गुरू :: मुनिश्री कंचन विजयजी प्रथम चार्तुमास : फलोदी (राजस्थान) पंन्यास पदवी : संवत् 2025 माघ सुदी 13, फलोदी (राजस्थान) आचार्य पदवी : वि.स. 2029 माघ सुदी 3, भद्रेश्वर तीर्थ (कच्छ) दादा गुरु : आचार्य कनक सूरीश्वरजी म.सा. पदयात्रा : राजस्थान, गुजरात (कच्छ), मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तामिलनाडु, कर्नाटक आदि, साधु-साध्वी परिवार : साधु 31, साध्वी 525 राष्ट्रसंत, अध्यात्म योगी, श्रमण संस्कृति के श्रेयस् संधानी आचार्य श्रीमद् विजय कलापूर्ण सूरीश्वरजी महाराज साहब, नितां- निस्पृह संत और भगवद्भक्ति व आराधना के अनन्य उपासक श्रमण-रत्न है । ऋषि परम्परा के ज्योतिर्मय नक्षत्र आचार्य भगवंत, आत्म विकास के शिखरगरी हिमालयी संकल्प के प्रतीक-पुरुष हैं । स्वभाव में सहजता, वाणी में मधुरता, प्रभु भक्ति में तल्लीनता और जीवनचर्या में निस्पृहता आपकी अभिन्न विशेषताएँ हैं। जिनशासन के पारसधर्मी व्यक्तित्व आचार्य श्री के परस से किसी भी आस्थावान व्यक्ति में प्रभुता व प्रभविष्णुता का सहज समावेश होने लगता है। जिस प्रकार बीज अंकुरित व पल्लवित होकर फल-फूल से भरा विशाल वृक्ष बन जाता है और बीज का अस्तित्व ही नहीं रह पाता, उसी प्रकार बूंद-बूंद से घट के भर जाने से ही बूंद का अस्तित्व मिट जाता है। वह पानी से भरे घट का आकार ले लेता है। समाज में या राष्ट्र में उसके व्यक्तिगत हित गौण हो जाते हैं, वह अपनी सीमाओं को छोड़कर 'मेत्ति में सत्व भूवेसू' और 'सर्वहिताय, सर्वसुखाय' की भावना से समृद्ध हो जाता है। आचार्य भगवंत, चेतना की ऐसी ही समग्रता के जीवंत उदाहरण हैं। वे समग्रता के चिन्तक, एकाग्रता के साधक और मानवीयता के पोषक है। आपको कीर्ति, सर्वत्र फैली हुई है। जप-तप करके जीवन और जगत् की सर्वसुख की कामना में निरत आचार्य भगवंत अद्भूत भक्ति, शक्ति, कांति और संपूर्णता में विश्व शांति के करुणामय, कलापूर्ण व्यक्तित्व हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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