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"सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?"
तीर्थंकर स्वरूप जो तीर्थ हैं उनकी पवित्रता की सुरक्षा एवं रक्षा करना समूचे जैन समाज का प्रथम एवं अन्तिम धर्म एवं दायित्व है। जैन समाज, समय रहते जागृत होगा तभी धर्म एवं पवित्र तीर्थ-स्थलों की रक्षा हो सकेगी।
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सम्मेद शिखर- विवाद न तो धर्म के अनुकूल है और न व्यवहारिक । कम से कम तीर्थंकरों के प्रति श्रद्धा और आस्था रखने वालों को ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जो तीर्थों की पवित्रता को नष्ट करने का कारण बने ।
मुझे प्रसन्नता है कि चिन्तनशील लोकप्रिय वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक श्री मोहनराजजी भण्डारी सम्मेद शिखरजी के पीड़ाजनक एवं समाज को विघटन करने वाले तथाकथित विवाद पर सारगर्भित पुस्तक लिख रहे हैं।
आशा है कि श्री भण्डारीजी के इस सद्प्रयत्न का समाज, सम्प्रदायवाद से ऊपर उठकर मूल्यांकन करेगा।
अजमेर
ता. 17 सितम्बर, 1998
- डा. जयचन्द बैद
एम.एस., एफ. ए. सी. एस.
अध्यक्ष- श्री वासुपूज्य स्वामी जैन रेक्ताम्बर मन्दिर, अजमेर
महान् त्यागी - तपस्वी मुनि श्री हितरूचि विजयजी महाराज साहब ने एक ऐसे विषय की ओर आम लोगों का ध्यान आकर्षित किया है जिसके बारे में भारी भ्रम फैला हुआ है । होमियोपथ की गोलियों को आयुर्वेदिक दवाओं की तरह शुद्ध और पवित्र समझ कर लोगों का झुकाव तेजी से होमियोपथ की ओर बढ़ता जा रहा है लेकिन होमियोपथ की दवाइयों के निर्माण में कितनी हिंसा और पाप छिपा हुआ है इसकी जानकारी आम जनता को प्रायः नहीं है ।
अहिंसा - प्रेमी और जैन समाज, होमियोपथ के बारे में वास्तविकता जानने के पश्चात् इसको प्रयोग में लेना तो दूर रहा इसे छूना भी पसन्द नहीं करेगा।
-मोहनराज भण्डारी पत्रकार
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