Book Title: Sammetshikhar Vivad Kyo aur Kaisa
Author(s): Mohanraj Bhandari
Publisher: Vasupujya Swami Jain Shwetambar Mandir

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Page 119
________________ 32 श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय आचार्य राजतिलक सूरीश्वर सावरकुन्डला (गुजरात) 7 जून, 1997 धर्मानुरागी जी.आर. भण्डारी धर्मलाभ पूज्य श्री शाता में है ..... स्वास्थ्य ठीक है। 15.6.97 तक यहाँ पर ही है बाद में पालीताणा की ओर प्रस्थान ..... चातुर्मास तो पालीताणा ही है। ..... उपाश्रय हेतु जरूर ध्यान रखेंगे..... साधारण की राशि मिलना मुश्किल है। धर्म की मर्यादा में रहकर जो भी निर्माण कार्य हो रहा है ..... उसमें पूज्य श्री का आशीर्वाद आपके साथ है। -हर्ष तिलक विजय का धर्मलाभ। ***** आचार्य राजयश सूरीश्वर वेपेरी (चैन्नई) 7 मई, 1998 धर्मानुरागी श्रावक गनपतराजजी भण्डारी आदि योग्य धर्मलाभ आप पुष्कर रोड स्थित श्री वासुपूज्य स्वामी मन्दिर को तीर्थ बना रहे हैं। यह जानकर प्रसन्नता हुई। प्रत्येक मन्दिर तीर्थ स्वरूप बने यह तो प्रत्येक जैन की भावना होती है और होनी भी चाहिये।आप सभी की भावना साकार हो। बस उत्साह उमंग और शासन की भावना से भव्य मनोहर तीर्थ निर्माण करें। पूज्य साहेबजी की आज्ञा से -मुनि नन्दियश विजय का धर्मलाभ। ***** आज-कल बुद्धिवाद के युग में भक्तिवाद दब गया है। मानव परेशान है तो उसका यही कारण है कि वह भक्ति को भूल गया है, भगवान को उसने छोड़ दिया है। भक्ति आते ही जीवन आनंद से भरा बन जाता है। जहाँ भगवान है वहाँ आनंद है, समृद्धि है, कल्याण है। जहाँ भगवान नहीं है वहां धन आदि होने पर भी अंधेरा है. दुःख है। -आचार्य विजय कलापूर्ण सूरी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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