Book Title: Sammetshikhar Vivad Kyo aur Kaisa
Author(s): Mohanraj Bhandari
Publisher: Vasupujya Swami Jain Shwetambar Mandir

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Page 95
________________ श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मन्दिर का संक्षिप्त परिचय म.सा. की प्रेरणा से.....श्री के.आर.सेठ अहमदाबाद के आर्थिक सहयोग से निर्माणाधीन मन्दिर स्थल पर एक कमरा बना और 25 जून, 88 को सर्वप्रथम श्री वासुपूज्यस्वामी की प्रतिमा विराजित की गई। स्थापित प्रतिमा वास्तव में भगवान श्री वासुपूज्यस्वामी की अद्भुत, अलौकिक प्रतिमा प्रमाणित हुई। 17 इंच की इस प्रतिमा की अन्जनशलाका गच्छाधिपति, आचार्य श्री कैलाशसागर सूरीश्वरजी म.सा. के द्वारा वीर संवत 2501 माघ बदी 3 को राजनगर (अहमदाबाद) में सम्पन्न हुई। 10 मई, 1989- मूलनायक श्री वासुपूज्यजी (25 इन्च), श्री शान्तिनाथजी (21 इन्च), श्री विमलनाथजी (21 इन्च), श्री ऋषभदेवजी (17 इन्च), श्री चन्द्रप्रभुजी (17 इन्च), यक्ष-यक्षणि (15 इन्च), दादा श्री मणिभद्रजी (15 इन्च), माता श्री पद्मावती देवी (15 इन्च) की प्रतिमाओं (पाषाण) की अन्जनशलाका .....प.पू. आध्यात्मयोगी, आचार्य श्री कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. की पावन-निश्रा में भचाऊ (कच्छ-गुजरात) में 10 मई, 89 वैशाख सुदी 5 वि.सं. 2045 को सम्पन्न 26 मई 1991- प.पू. गच्छाधिपति, आचार्य श्री हेमप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय की कार्य-कौशल, व्यवहार-कौशल, प्रवचन-कौशल, विदुषी सा. श्री महाप्रज्ञा श्रीजी म.सा. की पावननिश्रा में नूतन मन्दिर में प्रतिमा प्रवेशमहोत्सव 26 मई,91 को हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि ..... इतिहास के पृष्ठों के अनुसार एक सत्य यह भी है कि ..... तथ्यों से सुस्पष्ट है कि अजमेर प्रखण्ड जैन धर्म व संस्कृति का एक वैभवशाली क्षेत्र भगवान श्री महावीर स्वामी के समय में रहा है।..... और भगवान श्री महावीर स्वामी का इस क्षेत्र से अवश्य ही विहार हुआ है। ..... कालान्तर की इस भव्य नगरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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